(An edited version of this Fact-Finding Report appeared in February issue of Samayantar)
गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमा से लगे हुए महाराष्ट्र के धुले जिले में 6 जनवरी को होटल में पैसे के लेन-देन के आपसी विवाद को लेकर शुरू हुआ झगड़ा जल्द ही हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के बीच पत्थर बाजी में तब्दील हो गया। इस हिंसा की परिणति पुलिस की गोली से मारे गए छः मुस्लिम नौजवानों (1) इमरान अली कमर अली (25) (2) असीम शेख नासिर (21) (3) सउद अहमद रईस पटेल (18) (4) हाफिज मो. आसीफ अब्दुल हलीम (22) (5) रिजवान हसन शाह (24) (6) युनुस अब्बास शाह (20) के रूप में हुई। लगभग 55 मुस्लिम नौजवानों, जिनमें से लगभग 40कोगोली लगी, पुलिस की हिंसा के शिकार हुए। 58ऐसे लोग हैं जिनके घर,वाहन, दुकान, ठेलागाड़ी को क्षतिग्रस्त किया गया। धुले में हुई इस साम्प्रदायिक हिंसा की खासियत यह है कि न तो पुलिस और न ही कोई साम्प्रदायिक संगठन झूठ बोल सकता है, क्योंकि धुले में लगभग 3 बजे के आसपास जब विवाद ने पत्थरबाजी का रूप ले लिया तब उसके बाद के ज्यादातर फुटेज वीडियोक्लिपिंग अथवा फोटोग्राफ के रूप में मौजूद हैं। धुले में हुई इस हिंसा की हकीकत जानने के लिए वर्धा के हिंदी विश्वविद्यालय के अध्यापक, छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता एवं पुणे के स्वतंत्र पत्रकार ने 19-20 जनवरी को धुले जिले का दौरा किया।
सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमि
शहर के माधवपुरा में स्थित एक होटल जिसके मालिक किशोर वाघ हैंजो किराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं इनकी भाभी NCP की नगर सेविका (Corporator) हैं, से मुस्लिम समाज के एक युवक का 20 अथवा 30 रूपये को लेकर कुछ विवाद हुआ। जिसपर होटल के लोगों ने उस मुस्लिम युवक को मारा-पीटा जिसके चलते युवक पास में ही स्थित मच्छी बाजार पुलिस चौकी अपनी शिकायत दर्ज कराने गया। पुलिस के द्वारा इस पूरे मामले को अगंभीरता से लेने के साथ ही उस युवक को आजादपुर के पुलिस थाने में जाने को कहा गया। पुलिस से न्याय न मिलने के बाद नौजवान अपने कुछ मुस्लिम मित्रों के साथ फिर से होटल में गया। जिसके कुछ देर बाद दोनों समुदायों में पत्थरबाजी शुरू हो गई। जाँच दल को स्थानीय लोगों ने बताया कि पुलिस ने आते ही बिना देर किए मुस्लिम समुदाय पर फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस के द्वारा ऐसा कोई भी प्रयास नहीं किया गया जिससे दोनों तरफ की भीड़ को हटाया जा सके। पुलिस ने भीड़ को चेतावनी देना तथा सार्वजनिक रूप से संबोधित करना भी उचित नहीं समझा। लोगों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज एवं आंसू गैस का भी सहारा नहीं लिया गया। पुलिस के द्वारा की गई इस कार्रवाई में मुस्लिम समुदाय के अंदर आक्रोश और तीखा हो गया एवं पुलिस द्वारा की गई फायरिंग लगभग 6.30 बजे तक चलती रही। पुलिस के द्वारा की गई फायरिंग का मकसद भी भीड़ को तितर-बितर करना नहीं था। बल्कि ज्यादातर फायरिंग कमर के ऊपरी हिस्से में ही की गई। पुलिस के द्वारा यह तर्क भी दिया गया कि फायरिंग इसलिये की गई कि मुस्लिम समुदाय की तरफ से हमला ‘एसिड बमों’से हो रहा था जिसके चलते भारी संख्या में पुलिस के जवान घायल हुए। लेकिन यह पूरी तरह से पुलिस के द्वारा प्रचारित किया जा रहा झूठ है। जिसकी पुष्टि वीडियों क्लिपिंग से भी होती है।सरकारी हास्पिटल के जो रिकार्ड हैं उसमें भी यह तथ्य देखने को आया कि पुलिस के जवानों को जो चोटें आयी वो बहुत कम हैं एवं प्राथमिक उपचार (first aid) के बाद अधिकांश जवानों को छुट्टी दे दी गई।


इस सांप्रदायिक हिंसा में लगभग 50 लोग पुलिस की फायरिंग से तथा 10 लोग पुलिस की मार-पीट से घायल हुए। लेकिन कोई भी घायल व्यक्ति सरकारी हास्पिटल में अपना इलाज कराने के लिए नहीं गया। जांच दल को स्थानीय लोगों ने बताया 2008 में जब यहाँ दंगा हुआ था, तब मुस्लिम समाज के लोगों ने सरकारी हास्पिटल में इलाज के लिये जाने की कोशिश की थी। उस समय उन पर हिंदू सांप्रदायिक संगठनों के गुंडों ने हमला किया था। हास्पिटल के मुस्लिम कर्मचारियों को भी बुरी तरह पीटा गया था। अपने इसी कटु अनुभव के चलते इस बार की सांप्रदायिक हिंसा से घायल हुए मुस्लिम समाज के लोग अपने इलाज के लिये प्राइवेट हास्पिटल में गए। जांच दल को पीडि़त व्यक्तियों ने यह भी बताया कि किसी भी घायल व्यक्ति को पुलिस के द्वारा अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया। सभी पीडि़त व्यक्तियों को परिवार या उनके अपने समाज के लोगों के द्वारा ही भर्ती कराया गया। मारे गए व्यक्ति के घर के सदस्य एवं घायल व्यक्ति डर के चलते F.I.R. तक दर्ज कराने के लिये पुलिस थाने नहीं गए, क्योंकि उन्हें डर था कि उनको ही पुलिस के द्वारा दंगाई घोषित कर दिया जायेगा।
30 से ऊपर मुस्लिम घरों को लूटा एवं जलाया गया। हिंदू समुदाय के भी लगभग छ: घर जलाये गए। मुस्लिम यह बताने के लिये तैयार थे कि किन-किन लोगों (हिंदुओं) ने घरों को जलाया एवं लूट-पाट की। जांच दल को तस्लीम बी यूसूफ और मोहम्मद युसफ ने बताया कि शिवम टेलर के मालिक और मोहन राखा ने उनके घर को जलाया। लेकिन आज भी वे रोज अपनी दुकान खोलते हैं और पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।”
मुस्लिम घरों को लूटने, जलाने एवं तहस-नहस करने का काम हिंदू भीड़ के द्वारा पुलिस की आंखों के सामने हो रहा था। जांच दल को जो फोटोग्राफ और क्लिपिंग मिली है। उनसे भी साफ है कि मुस्लिम समुदाय के घर पुलिस के आने के बाद ही जलाये गए हैं। एक क्लिपिंग में बिल्कुल स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि पुलिस के जवान खुद ही कर्फ्यू के दरम्यान लूट-पाट एवं वाहनों को तोड़ रहे हैं।
जांचदल को स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि घटना स्थल और जिन –जिन जगहों पर फायरिंग हुई उसको बिना पंचनामा किए अगले ही दिन पानी से साफ कर दिया गया। पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन लोगों के आर्थिक नुकसान को कम करके दिखाने की कोशिश कर रहा है। पंचनामें में नुकसान हुए फ्रिज की कीमत 700/- रूपये तथा टी.वी. की कीमत 100/- रूपये दर्ज की गई है।
सांप्रदायिक हिंसा का मुस्लिम समाज पर प्रभाव –
2008 के दंगें के बाद से ही मुस्लिम समाज काफी दहशत में है और अपने में ही काफी सीमित हुआ है। 2008 के पहले तक जो मुस्लिम हिंदू बस्तियों में रहते थे आज वे मुस्लिम बस्तियों में ही दहशत एवं असुरक्षा के चलते रहने को मजबूर हैं।
इस बार की सांप्रदायिक हिंसा के बाद जहां-जहां से मुस्लिम बस्तियां शुरू होती हैं वहां पर पुलिस के द्वारा बैरिकेट तथा अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई थी। मानो सांप्रदायिक हिंसा के लिए मुस्लिम समाज ही जिम्मेदार हो। पीडि़तों को ज्यादातर राहत उनके रिश्तेदारों, कुछ NGO तथा इस्लामिक संगठनों के द्वारा ही पहुंचायी जा रही है।
मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि पुलिस ने जानबूझकर एवं चुनकर मुस्लिमों पर ही फायरिंग की। जबकि पत्थरबाजी दोनों तरफ से हो रही थी। 2008 के दंगे तथा 6 जनवरी की हालिया घटना के बाद मुस्लिम समाज के सभी लोगों का यह मानना है कि दंगे के समय खास तौर पर पुलिस प्रोफेशनल तरीके से काम न करके हिन्दुओं की तरह व्यवहार करती है। जांच दल को पीडि़तों ने बताया कि पिछले कुछ समय से पुलिस इस मौके की तलाश में थी। खासकर 2008 के दंगे के बाद से। तब से ही पुलिस सबक सिखाने की धमकियां दे रही थी।
धुले जिले की कुल आबादी का 25% मुस्लिम समुदाय से आता है। ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग पावरलूम इण्डस्ट्री, गैरेज में काम, ठेला चलाना, मजदूरी तथा छोटी-छोटी दुकान चलाकर अपनी जीविका चलाते हैं। कुल मुस्लिम आबादी का 95% निम्न मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से है। धुले के मुस्लिम समाज में अंसारी तथा खानदेशी मुसलमान हैं। अंसारी ज्यादातर विस्थापित होकर उत्तरप्रदेश तथा बिहार से 19 वीं शताब्दी में यहां आकर बसे थे। ज्यादातर अंसारी मुसलमान यहां पर पावरलूम के पेशे से जुड़े है। पावरलूम का काम भी टेक्सटाइल मिल के बंद होने के बाद से लगातार संकट के दौर से गुजर रहा है। पावरलूम में काम करने वाला एक मुस्लिम मजदूर एक हफ्ते में लगभग 600/- से 700/- रूपये कमाता है। जितने दिन कर्फ्यू रहा, उतने दिन तक उनकी जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं था।
सांप्रदायिक हिंसा का सबसे बुरा प्रभाव मुस्लिम महिलाओं पर पड़ा है। महिलाएं एवं लड़कियां पूरी तरह से घर के अंदर कैद कर दी गई हैं। 2008 के पहले तक लड़कियां भी बाजार जाया करती थीं। लेकिन पूर्व में हुए दंगे के बाद से उनकी पूरी जिंदगी चहरदीवारी के अंदर सिमट गई है। घर की सबसे बुर्जुग महिला ही घर से बाहर किसी आवश्यक काम से निकलती है। मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और अब वे प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित हो गई हैं। ”धुले की कुल आबादी 3.7 लाख है और यहां 7 इंजिनियरिंग, दो मेडिकल तथा सात अन्य कालेज हैं। जिनकी कुल क्षमता 18000 सीट की है। जबकि आबादी का 25% मुसलमान में से केवल 25% या 915 मुस्लिम छात्र उच्च शिक्षा को प्राप्त कर रहे है।” इंडियन एक्सप्रेस में जिशान शेख की रिपोर्ट- 13 जनवरी 2013
हिंदू समाज एवं सांप्रदायिक हिंसा –
जांच दल के लोग जब शहर के दूसरे हिस्से, जहां पर सांप्रदायिक हिंसा की घटना नहीं हुई थी, के हिंदू समुदाय के लोगों से मिले और घटना के बारे में जानना चाहा कि वे लोग हालिया घटनाक्रम और मुस्लिम समुदाय के बारे में क्या राय रखते हैं। तो मालूम पड़ा कि अधिकांश हिंदू समुदाय अफवाहों का शिकार है तथा 2008 के दंगे के बाद से खास तौर पर हिंदू समुदाय के बीच सांप्रदायिक विचारों का प्रचार-प्रसार और तेज हुआ है।
स्थानीय लोगों के अनुसार 6 जनवरी2013 के दिन भारत और पाकिस्तान का तीसरा एक दिवसीय मैच था और जब पाकिस्तान मैच जीत रहा था तो मुसलमान पटाखे छोड़ रहे थे। लेकिन जैसे ही पाकिस्तान मैच हारने लगा तो मुसलमानों ने पत्थर बाजी शुरू कर दी जिसके चलते पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। कुछ लोगों के अनुसार हैदराबाद के मुस्लिम नेता अकबरूद्दीन ओवासी के भाषण की वीडियों क्लिपिंग हर मुस्लिम नौजवान के मोबाईल में है और जिसके चलते मुसलमान एक जगह इकट्ठा हुए और पत्थरबाजी करने लगे। शिवसेना के शहर के मुखिया भूपेन्द्र लहामगे ने प्रशासन से कहा है कि इसका बेहद नकारात्मक असर धूले पर पड़ रहा है। जांच दल ने जब अकबरूद्दीन ओवासी की इन क्लिपिंग की हकीकत मुस्लिम समुदाय से जाननी चाही तो यह मालूम पड़ा कि अधिकांश लोग ओवासी के नाम से ही परिचित नहीं हैं तो वे उनकी क्लिपिंग को अपने मोबाईल में क्यों रखेगें।

2008 में जो दंगा धुले में हुआ था, उसके बाद बार एसोसिएशन ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के केस को लड़ने से मना कर दिया था। (ठीक इसी तरह की घटना यू.पी में भी हुई थी जब बार एसोसिएशन ने कथित आंतकी मुसलमानों के केस को लड़ने से मना किया था। मो. शोएब एडवोकेट मुस्लिम नौजवानों का केस लड़ने के लिए तैयार हुए तो उन पर सांप्रदायिक संगठन के लोगों द्वारा हमला किया गया था।) हम देखते हैं कि वकील खुद ही जज की भूमिका में आ गए थे। सांप्रदायिक संगठनों ने सरकारी हास्पिटल के डाक्टरों को भी धमकी दी थी कि मुसलमानों का इलाज न करें। मेडिकल स्टोर ओनर्स यूनियन ने भी 2008 में ही यह फरमान जारी किया था कि मुसलमानों को दुकान से कोई भी दवा न दी जाए। इस बार की हिंसा में भी वकीलों के एक बड़े तबके ने सार्वजनिक रूप से पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई को जायज ठहराया और उनकी प्रशंसा की। सांप्रदायिक संगठनों ने शैक्षणिक संस्थाओ, मीडिया तथा अन्य माध्यमों से हिंदू समुदाय के एक बड़े हिस्से का सांप्रदायिकरण पिछले कुछ वर्षों में किया है। 2008 के दंगे तथा 6 जनवरी 2013 की हिंसा के बाद यह साफ है कि नागरिक समाज का एक बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक हुआ है।
तथाकथित सेकुलर राजनीति
2008 के दंगे में जहां एक तरफ हिंदू रक्षा समिति, बजरंग दल, शिवसेना जैसे संगठनों की अहम भूमिका थी, वहीं दूसरी तरफ तथाकथित रूप से सेकुलर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेता सक्रिय रूप से दंगे में शामिल थे। इसका फायदा भी NCP को तीन माह बाद होने वाले नगर पालिका के चुनाव में मिला था। इस बार की सांप्रदायिक हिंसा में भी हिंदू भीड़ का नेतृत्व किशोर वाघ व उसका बेटा कर रहा था। (पुलिस के द्वारा दर्ज की गई प्राथमिक रिपोर्ट में भी यह बात दर्ज है)। इसके अलावा NCP के जमीनी कार्यकर्ता हिंदू भीड़ में शामिल थे तथा पुलिस के सांप्रदायिक मनोबल को ये सारे लोग और बढ़ा रहे थे।

2014 में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ महाराष्ट्र के विधानसभा के चुनाव भी होने हैं तथा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तथाकथित सेकुलर तथा सांप्रदायिक दोनों तरह की पार्टियों के लिए फायदेमंद ही हैं। महाराष्ट्र में सांप्रदायिक खेल खेलने में कांग्रेस भी NCP और अन्य सांप्रदायिक पार्टियों से पीछे कैसे रह सकती है।प्रदेश में कांग्रेस ने साम्प्रदायिक ताकतों को काउन्टर करने के लिए हनुमान सेना का गठन किया है। (दैनिक भास्कर 24 अक्टूबर, 2012”हनुमान सेना को लेकर राजनीतिक हलचल” के शीर्षक से एक खबर प्रकाशित हुई है–“बजरंग दल के समानांतर कांग्रेस की हनुमान सेना भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकती है। शिवसेना के साथ भाजपा के संबंधों में मिठास का पैमाना घटते जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि हनुमान सेना को हथियार बना कर शिवसेना भाजपा को कुछ मामलों में नुकसान पहुंचा सकती है।.… बजरंग दल कार्यकर्ताओं के पाला बदलने की संभावना को देखते हुए पैनी नजर रखी जा रही है।.… दो दिन पहले पूर्व नागपुर में हनुमान सेना की घोषणा की गई। वित्त व ऊर्जा राज्यमंत्री राजेंद्र मुलक व शिवसेना के जिला प्रमुख शेखर सावरबांधे की उपस्थिति में पूर्व मंत्री सतीश चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस की हनुमान सेना जन विकास के मुद्दों पर आक्रामक भूमिका में रहेगी।…. लेकिन हनुमान सेना को लेकर कहा जा रहा है कि वह कांग्रेस के लिए ऐसा विकल्प बनाने के उद्देश्य के साथ गठित की गई है, जिसमें बजरंगियों के अलावा शिवसैनिकों का समायोजन किया जा सके।…. अब तक ये संगठन भाजपा के लिए मददगार बने हुए हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों संगठन असंतोष के दौर से गुजर रहे हैं।…. बजरंगियों की शिकायत रहती है कि उन्हें अनुशासन के नाम पर सक्रिय कार्य करने से रोका जा रहा है। भाजपा में पूछ-परख कम हो रही है। चर्चा है कि कुछ असंतुष्ट कार्यकर्ताओं ने ही मोबाइल संदेश भेजकर बजरंगदल कार्यकर्ताओं से हनुमान सेना में शामिल होने का निवेदन किया।”)
भ्रष्ट और सांप्रदायिक पुलिस :
धुले की पुलिस भ्रष्टाचार के मामले में देश के दूसरे तथा महाराष्ट्र के अन्य जिलों से भी आगे है। 2 अक्टूबर 2012 के लोकमत में छपी खबर के मुताबिक पुलिस कर्मचारी के सरकारी आवास में 300 दारू के खोखे (पेटी) बरामद हुई जिसकी कीमत 10 लाख 84 हजार 200 रू है। यह घटना तो एक नमूना भर है। अवैध शराब, कैरोसिन, केमिकल के जो भी अवैध धंधे यहां पर बड़े पैमाने पर चलते हैं। यह सब कुछ पुलिस के संरक्षण में ही होता है। ”2008 के दंगे के बाद धुले की पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की थी, उसमें यह दावा किया गया था कि पूरे भारत में जो आतंकवादी गतिविधियां है उसमें मुस्लिम ही मास्टर माइंड हैं।”- इंडियन एक्सप्रेस 31 जनवरी 2013

शम्सुन्निसा (65 वर्ष) ने जांच दल को बताया कि अगले दिन कर्फ्यू था और पुलिस के लोग तोड़फोड़ एवं लूटपाट कर रहे थे तो महिलाओं ने सामूहिक रूप से अपने-अपने घरों से निकलकर पुलिसवालों को रोकने की कोशिश की। इस पर पुलिस ने कुछ महिला पुलिस कर्मियों, जो वर्दी में नहीं थी, से कहकर शम्सुन निशा की पिटाई करायी जिसके चलते उनका हाथ टूट गया तथा कई जगह जख्म भी आए।पुलिस के अधिकारी फायरिंग को जायज ठहराते हुए यह तर्क दे रहे हैं कि यदि फायरिंग न की गई होती तो फिर से 2008 वाला मंजर होता और दंगा पूरे शहर में फैल गया होता।
दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वारा सिविल सेवाओं के मार्गदर्शन के लिए संचालित ‘संकल्प’ नाम की संस्था, निम्न मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को लगभग नि:शुल्क हॉस्टल एवं कोचिंग की सुविधा उपलब्ध कराती है और यहां से प्रतिवर्ष ठीक-ठाक संख्या में भारतीय प्राशासनिक सेवाओं में छात्रों का चयन होता है। यह जरूरी नहीं है कि ”संकल्प’ से सुविधाएं लेने वाले सभी छात्र R.S.S. की विचारधारा को मानते हों। लेकिन जब उनका चयन हो जाता है तो निश्चित रूप से वे किसी भी पद पर रहें परन्तु R.S.S. के प्रति एक नरम रूख अवश्य रखते हैं।
ठीक इसी तर्ज पर महाराष्ट्र में भी शिवसेना के द्वारा पुलिस में भर्ती के लिए होने वाली परीक्षा के लिए ‘प्री-ट्रेनिंग कैम्प’ आयोजित किए जाते हैं। इन ट्रेनिंग कैम्प में शामिल होने वाले प्रतिभागी निश्चय रूप से शिवसेना जैसी पार्टियों के प्रति कृतज्ञ रहते हैं एवं ट्रेनिंग कैम्प के बहाने ही छात्रों के अंदरसांप्रदायिक जहर भी भरा जाता है। सांप्रदायिक हिंसा के समय में खासतौर पर पुलिस के अंदर की सांप्रदायिक चेतना जीवित हो जाती है।

शस्त्र पूजा का कार्यक्रम
धुले के ‘लोकमत’ मराठी समाचार पत्र के 26 अक्टूबर 2012 के अंक में विजय दशमी के अवसर पर तस्वीर के साथ ‘कैप्शन’ में एक खबर प्रकाशित हुई है कि एक तरफ R.S.S. के लोग विजय दशमी के दिन शस्त्रों की पूजा कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ धुले के पुलिस कार्यालय में पुलिस के सभी वरिष्ठ अधिकारी भी शस्त्र पूजा के कार्यक्रम को संचालित कर रहे हैं। धुले में ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में पुलिस का भयानक स्तर पर सांप्रदायिकरण हुआ है।
धुले के बारे में :
धुले महाराष्ट्र के खानदेश इलाके में आता है। धुले जिले की सीमाएं गुजरात और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों से सटी हुई हैं और इन दोनों प्रांतों में BJP की सरकार है। परिसीमन के बाद धुले के संसदीय क्षेत्र में मालेगांव का शहरी इलाका भी शामिल किया गया है। और मालेगांव वह इलाका भी है जहां पर मुस्लिम आबादी बड़े पैमाने पर रहती है और जिसे हिंदू चरमपंथी ताकतों के द्वारा 2006 और 2008 में निशाना बनाया गया था। असीमानंद जो मालेगांव बम ब्लास्ट का मुख्य अभियुक्त है, पुलिस के सामने अपनी स्वीकारोक्ति में कहा था कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के चलते ही मालेगांव को निशाना बनाया गया था। मालेगांव में दूसरा बम ब्लास्ट सितम्बर 2008 में किया गया तथा 5 अक्टूबर 2008 को ही हिंदू रक्षा समिति के नेतृत्व में धुले में दंगा कराया गया था।
धुले, गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमा के साथ जलगांव एवं नंदूरबार जिले से भी लगा हुआ है। धुले तथा जलगांव का कुछ इलाका आदिवासी बहुल है तथा नंदूरबार जिला तो पूरी तरह से आदिवासी बहुल ही है, जहां पर हिंदूसांप्रदायिक संगठनों के द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण की गतिविधियां तथा शबरी मेला आदि नियमित एवं बड़े पैमाने पर आयोजित किए जाते हैं। इन इलाकों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (R.S.S.)ने अपना जनाधार काफी मजबूत कर लिया है। 2008 में दंगा धुले शहर में शुरू हुआ लेकिन ऐसे भी ग्रामीण इलाकों में उस समय हिंसा हुई थी जहां पर पूरे गांव में केवल 4 या 5 मुस्लिम परिवार ही रह रहे थे। धुले जिले से और मालेगांव से आंतकवादी गतिविधियों को संचालित करने के नाम पर, सिमी के नाम पर मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां हुई थी जिसके चलते पूरे इलाके में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ था।
धुले में शराब, केरोसिन, पेट्रोल, भंगार (कबाड़) का काम बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से होता है जिसमें दोनों समुदाय के बेरोजगार लोग शामिल हैं यह काम पूरी तरह से पुलिस के संरक्षण में तथा राजनैतिक पार्टी के नेताओं की मिली भगत से संपन्न होता है। दो राष्ट्रीय राजमार्ग धुले से होकर जाते हैं जिनसे सैकड़ो की संख्या में ट्रक रोज गुजरते हैं। इनसे अवैध वसूली करने के साथ-साथ जिन केमिकल्स को अवैध तरीके से हासिल किया जाता है, उनकी पहचान के लिये अब रसायन विज्ञान (Chemistry) में बी.एस.सी. होना जरूरी है तभी वे केमिकल की पहचान कर सकते हैं। जिनको पारिश्रमिक के तौर पर 4 से 5 हजार रूपये दिए जाते है।
अतीत में धुले जिले में काफी व्यापक पैमाने पर कपास की खेती होती थी और अंग्रेजी हुकूमत के दौर में यहां पर टेक्सटाइल मिल भी लगाई गयी थी। जिसमें काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ था। 50 के दशक में धुले के अंदर कम्युनिस्ट पार्टी का काफी अच्छा जनाधार था। 1957में धुले की 11 सीटों में 10 पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी जीत दर्ज की थी तथा 1 सीट आर.पी.आई. के लिये छोड़ी थी। जनता पर कम्युनिस्ट नेताओं का काफी प्रभाव था। हिंदू एवं मस्लिम समुदाय के बीच यदि कोई झगड़ा होता भी था तो उसको आपसी बातचीत करके ही हल कर लिया जाता था। कम्युनिस्ट पार्टी ने यहां पर तांगेवाले तथा रिक्शेवालों के बीच भी अपनी यूनियन बनायी थी तथा मुंबई के बाद सबसे बेहतर स्थिति में वामपंथी आंदोलन धुले में ही था। टेक्सटाइल मिल, बुनकर उद्योग जिसमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय (अंसारी) के लोग ही शामिल थे। हिन्दू समुदाय में खास तौर पर गवली जाति के लोग दुग्ध उत्पादन में संलग्न थे तथा प्रतिदिन एक लाख लीटर दूध मुंबई को सप्लाई किया जाता था। आस-पास खूब जंगल था जिसके चलते पानी का संरक्षण पर्याप्त मात्रा में होता था। चीनीमिल यहां पर सहकारिता के अंतर्गत थी। सहकारिता आंदोलन भी यहां पर काफी मजबूत था। 60 के दशक में टेक्सटाइल मिल का बन्द होना, कम्युनिस्ट पार्टी में डिवीजन, ट्रेड यूनियन आंदोलन का महाराष्ट्र में कमजोर पड़ना,फासीवादी ताकतों का उदय, तथा नई आर्थिक नीतियों का प्रवेश जिसने लघु उद्योग (पावरलूम उद्योग) तथा कृषि को पूरी तरह से हाशिये पर ढकेल दिया। जिसके परिणाम स्वरूप बेरोजगारी भयानक स्तर पर बढ़ी। ‘धुले में बेरोजगारी कीदर 26.17 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह बेरोजगारी 7.6 प्रतिशत की है एवं उसमें भी अधिकांश बेरोजगारी मुस्लिम समुदाय में ही है’। -इंडियन एक्सप्रेस में जिशान शेख की रिपोर्ट- 13 जनवरी 2013
8 जनवरी 2013 के ‘लोकमत समाचार’ ने संपादकीय कालम में ‘महाराष्ट्र में एफ.डी.आई.’ शीर्षक से एक संपादकीय लेख छापा है। ”प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में देश के अन्य राज्यों को महाराष्ट्र ने पीछे छोड़ दिया है, यहां तक कि नरेन्द्र मोदी का कथित वाइब्रेंट गुजरात भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में महाराष्ट्र से ही नहीं कई राज्यों से पीछे है। उद्योग मंत्रालय के आकड़ों के मुताबिक पिछले 12 वर्षों में जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है, उसका एक तिहाई हिस्सा महाराष्ट्र की झोली में आया है। इस दौरान महाराष्ट्र में 3366.43 अरब रू. का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ” इस खबर से ऐसा मालूम पड़ता है कि पूरे महाराष्ट्र में औद्योगिकीकरण बड़े जोर-शोर से चल रहा है जबकि हकीकत कुछ और ही है। औद्योगिकीकरण महाराष्ट्र के कुछ ही शहरों तक सीमित है। खासतौर से मुंबई, औरंगाबाद, पुणे, ठाणे, नासिक। जबकि काफी हिस्सा जिसमें विदर्भ, खानदेश का बड़ा हिस्सा आता है। आज भी प्राक्-औद्योगिक अवस्था से ही गुजर रहा है
महाराष्ट्र के अंदर इस तरह के औद्योगिकीकरण ने आंतरिक उपनिवेशवाद की स्थिति पैदा कर दी है। 2012 और जनवरी 2013 के माह में 3 बड़े दंगों को यहां की अवाम देख चुकी है। सांप्रदायिक हिंसा की ये सभी घटनायें महाराष्ट्र के उन इलाकों में हुयी हैं, जहां पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का शतांश भी नहीं आया है। धुले में नियमित रूप से छ: घंटे की बिजली कटौती बचे-खुचे पावरलूम उद्योग को भी नष्ट कर रही है। सांप्रदायिक हिंसा का इन इलाकों में होने का एक आशय यह भी निकलता है कि छोटी पूंजी से जुड़े व्यवसायों को सचेतन तरीके से क्षति पहुँचायी जा रही है। 1999 से ही यहां पर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की मिली-जुली सरकार है। इस सरकार ने दलित, स्त्री, अल्पसंख्यक (खासतौर पर मुस्लिम) किसान, मजदूर, समुदाय के सशक्तीकरण के लिये कोई भी प्रयास नहीं किए हैं, उल्टे विदर्भ में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं। सांप्रदायिक हिंसा की ये घटनायें निश्चित रूप से आने वाले 2014 के विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में शासकवर्गीय पार्टियों को फायदा पहुँचायेगीं।
जांच दल के सदस्य –भारत भूषण तिवारी (स्वतंत्र पत्रकार, पुणे), अमीर अली अजानी (सामाजिक कार्यकर्ता, वर्धा), लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह एवं शरद जायसवाल
शरद जायसवाल एवं गुंजन सिंह के द्वारा जारी
Shocking and terrifying report on the depth of Hindu communal organisations’ entry into the institutions of the state.
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