भारत माता की जय बोल

‘भारत माता की जय बोलो’, अचानक तिरंगा झंडा लिए नौजवानों का एक समूह शिक्षकों की सभा के पास आ धमका.  “मुझे माइक पर भारत माता की जय बोलने दो”, उसने धमका कर कहा.

टी वी चैनेल का  एंकर चीख कर सामने बैठे नौजवान से बोला: भारत माता की जय का नारा लगा कर दिखाओ.

मुझे रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘घर-बाहर’ का बिमला का पति निखिल याद आ गया. बिमला उससे खफा है क्योंकि वह जुनूनी बंदे मातरम का नारा लगाने से इनकार करता है. वह भारत माता जैसी किसी देवी की वंदना  करने से इनकार करता है. वह याद करता है कि उसके मास्टर साहब ने बताया था कि देश का मतलब पांवों के नीचे की ज़मीन नहीं, उसके ऊपर के लोग हैं. क्या जो भारत माता की जय का नारा लगाते हैं, उन्होंने इन करोड़ों-करोड़ लोगों की ओर आँख उठाकर भी देखा है, क्या वे उनके दुःख-दर्द के साझीदार हैं?

और मुझे फिर नेहरू याद आए.

“कभी कभी जब मैं किसी सभा में पहुँचता तो ‘भारत माता की जय’ के ज़ोरदार नारे से मेरा स्वागत होता.मैं अचानक ही उनसे पूछ बैठता कि आखिरकार इस नारे का मतलब उनके लिए क्या है,वह भारत माता, जिसकी जय का वे नारा लगाते हैं, वह कौन है? मेरे प्रश्न से वे कुछ विस्मय और कुछ आश्चर्य में पड़ जाते और वे एक दूसरे का और फिर मेरा मुँह  देखने लगते.मैं अपने सवाल को दुहराता रहा. आखिरकार (कभी)एक जुझारू दीखता जाट, जो न जाने कितनी पीढ़ियों से धरती से जुड़ा हुआ है, उठ खड़ा हुआ और उसने कहा, यह धरती है, भारत की  प्यारी धरती. कौन सी धरती? उनके अपने गांव की धरती का टुकड़ा, या उनके जिले या प्रांत की धरती के सारे टुकड़े,या पूरे भारत की सारी धरती? और इस तरह सवाल-जवाब का सिलसिला तब तक चलता रहता जबतक उनमें से कोई अधीर होकर मुझसे इसके बारे में बताने को न कहता.

मैं उत्तर देने की कोशिश करता. भारत वह सब कुछ है जो उन्होंने सोचा है, लकिन यह इन सबसे कहीं ज़्यादा है.भारत के पर्वत और नदियाँ, और जंगल और विस्तृत खेत, जो हमें भोजन देते हैं, सब हमें प्यारे हैं. लकिन आखिरकार जो सबसे अहम हैं,वे हैं भारत के लोग, उनकी और हमारी तरह के लोग, जो इस विशाल भूभाग में हर जगह फैले हुए हैं.दरअसल वे करोड़ों लोग भारत माता हैं, और भारत माता की विजय का मतलब असल में उनकी विजय है.आप सब इस भारत माता के अंग हैं; मैंने उनसे कहा, बल्कि एक तरह से तो आप ही भारत माता हैं…”

खैबर पास से कन्या कुमारी तक अपनी अनवरत यात्रा में, एक सभा से दूसरी सभा में जाते हुए , किसानों से बातचीत करते हुए जवाहरलाल नेहरू अपने भारत की आत्मा की खोज कर रहे थे. क्या है वह भारत और भारत की आत्मा?कौन है वह भारत माता? निश्चय ही वह कोई शुभ्रवसना,श्वेतांगी नहीं है, जो सिंह की सवारी करती हुई अभयदान की मुद्रा में खडी है.

नेहरू कवि हृदय थे.भारत माता की उनकी कल्पना के निकट हिंदी के कवि सुमित्रानंदन पंत की भारत माता की कल्पना है: खेतों में फैला है श्यामल/ धूल भरा मैला-सा आँचल/ गंगा-जमुना में आँसू जल/ मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी,/भारत माता ग्रामवासिनी.”

नेहरू की तरह ही कवि का ध्यान उन करोड़ों-करोड़ लोगों पर है जो भारत माता की संतान हैं: ‘तीस कोटि संतान नग्न तन/ अर्ध क्षुधित,शोषित निरस्त्र जन….’

कवि के समक्ष उस भारत माता की मुद्रा  है: ‘चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित…’

आज फिर  भारत माता की भृकुटि कुंचित है और क्षितिज तिमिरांकित है.लेकिन वह उनके कृत्यों से जो उसका नाम जाप किया करते हैं लेकिन उसकी उन कोटि-कोटि संतानों पर निरंतर प्रहार करते हैं जो शोषित और निरस्त्र हैं.

भारत माता की जय का नारा जब हृदय को उल्लसित करने की जगह आतंकित करने लगे तो अपना मूलार्थ खो देता है.कोई पचीस साल पहले एक और सुन्दर नाम इसी तरह नफरत का औजार बना दिया गया था. वे दिन याद है जब भगवा पट्टा बाँधे, तरह-तरह के हथियारों से लैस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के सदस्य लोगों को रास्ते में रोक-रोककर जय श्री राम कहने का आदेश दे रहे थे.

एक समय था और कई जगह अभी भी है कि राम-राम  एक-दूसरे का अभिवान हुआ करता था.लेकिन कोई पचीस साल पहले राम को धमकी में बदल दिया गया. राम ने अपनी व्यापकता खो दी.ये तुलसी के या भवभूति के या कंबन के या वाल्मीकि के राम नहीं रह गए. राम का यह नारा सुनकर तुलसी की यह पंक्ति याद नहीं आती:
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम् | नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम .

वे सबके नहीं रह गए.उन्होंने अपनाअपना सौन्दर्य खो दिया.तय हो गया कि फिर कोई इकबाल राम को इमामे हिन्द नहीं कह पाएगा.क्योंकि राम को साधारण जन से छीन कर एक पार्टी ने अपना प्रचारक बना दिया.उसी तरह आज भारत माता को धमकी में बदला जा रहा है.

दिलचस्प यह है कि पचीस साल पहले जिनके हाथ में भगवा झंडे थे, आज उनके वारिसों के हाथ में भगवा की जगह तिरंगा है.यह तिरंगा देखते ही देश के प्रति स्नेह और प्रेम नहीं, भय जगाता है. इन हाथों में अगर तिरंगा लोगों को तीन रंगों का नहीं ,एकरंगा भगवा दिखने लगा है तो क्या ताज्जुब!

जब ‘भारत माता की जय’ के साथ ही ‘भारत के गद्दारों को, जूते मारो सालों को’ का नारा सुनाई दे तो भारत माता के प्रति श्रद्धा नहीं ,भय अवश्य पैदा होता है.

भारत माता का यह जय श्री राम क्षण है.क्या हम सब भारत माता की इस नई कल्पना को स्वीकार कर लेंगे? या हम कवि दिनकर को याद करेंगे? दिनकर ने भारत को इस प्रकार याद किया था:भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है.

आज होते तो दिनकर नर की जगह जन लिखते जिसमें नर और नारी दोनों शामिल हैं. लेकिन यह गुण विशेष क्या है? यह गुण दूसरों को डराने,धमकाने,उनपर कब्जा करने,अपना दबदबा कायम करने का कतई नहीं है. यह गुण सार्वदेशिकता का है,आपसी सद्भाव का है, विनम्रता का है.यह अहिंसा का गुण है, हिंसा का नहीं.

भारत माता अपनी इन संतानों को देखकर अवश्य ही दुखी होंगी.अपने नाम का ऐसा इस्तेमाल देखकर उन्हें निश्चय ही विषाद हो  रहा होगा.

भारत माता का आज अपहरण हो गया है. नेहरू का स्वागत भारत माता की जिस जयकार के साथ होता था, यह वह  जयकार नहीं है.इसमें कोटि-कोटि भारत माँ की संतानों की शुभेच्छा नहीं है, उनके विनाश की धमकी है.इस नारे को सुनिए, इसे लगाने वालों के घृणा से विकृत चेहरों को देखिए और विचार कीजिए क्या हम इस देश-प्रेम को स्वीकार करते हैं?

( पहले सत्याग्रह.कॉम पर साप्ताहिक स्तंभ प्रत्याशित के अंतर्गत 20 फरवरी,2016 को प्रकाशित)

 

 

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