133 संगठनों और 858 लोगों की तरफ़ से जारी बयान
Scrap the “Uttar Pradesh Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Ordinance” Immediately
इस बयान पर दस्तख़त करने वाले संगठनों और व्यक्तियों की फ़ेहरिस्त इसके अंग्रेज़ी वर्ज़न में देखें.
प्रिय मित्रों,
18 वर्ष की आयु में हम अपने पार्षदों, विधायकों, सांसदों को वोट दे सकते हैं। 18 की उम्र में, हम तय करते हैं कि कौन ऐसी नीतियां बनाएगा और लागू करेगा जो हमें, हमारे प्रियजनों, हमारे समुदाय, हमारे देश को प्रभावित करती हैं ।18 में, हमें अपने मताधिकार का जिम्मेदारी से प्रयोग करने के लिए पर्याप्त परिपक्व माना जाता है ।
हालांकि, चाहे 18 साल की उम्र में हो या 50 की उम्र में, हमें अपने रोमांटिक पार्टनर तय करने की या किससे शादी करनी है की, इजाज़त नहीं है!! अल्पसंख्यक धर्म, जातियों, दबी–कुचली जातियों, समलैंगिक ट्रांस और क्वीयर के साथ दोस्ती और रोमांटिक संबंध नहीं बनाने के लिए हमारे परिवारों द्वारा चेताया जाता है ।अगर कोई हिंदू महिला किसी मुस्लिम पुरुष से प्रेम करती है तो यह समाज में अपराध माना जाता है, अगर वे शादी करते हैं और महिला मुस्लिम धर्म में धर्मांतरण करती है तो यह मान लिया जाता है कि मुस्लिम पुरुष ने उसे धर्मांतरण के लिए मजबूर किया है। अंतर–विश्वास और अंतर–जाति विवाहों में भी, यह मान लिया जाता है कि दूसरा व्यक्ति महिला की इच्छा के विरुद्ध धोखा देकर उसे बाध्य कर रहा है और उसके इरादे गलत हैं। अक्सर हम सुनते हैं कि कैसे समलैंगिक जोड़ों को उनके जैविक परिवारों, समाज और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है जिसमें पुलिस कानूनी प्रक्रिया पूर्ण करने और संरक्षण देने के बजाए परिवार की आकांक्षा को ही पूरा कर रही होती है ।समलैंगिक महिलाओं, समलैंगिक पुरुषों, ट्रांस व्यक्तियों को तथा सिर्फ स्त्री–पुरुष सम्बन्धों पर विश्वास करने वाले ब्राह्मणवादी परिवार इस से परे, अंतरंग संबंधों और सामाजिक जीवन जीने के आकांक्षी, लोगों को घरों पर गंभीर दमन का सामना करना पड़ता है ।
27 नवंबर 2020 को पारित उत्तर प्रदेश सरकार के धर्मांतरण निषेध अध्यादेश में, रोमांटिक पार्टनर चुनने में धर्म, जाति, लिंग और लैंगिकता की सीमाओं का उल्लंघन करने वाले लोगों पर परिवार–धर्म–समुदायों द्वारा की गई हिंसा को मंजूरी देने की बात कही गई है।एक्ट के मुताबिक हर धर्मांतरण गैरकानूनी है। धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी से पूर्व मंजूरी जरूरी है।अधिनियम में यह भी कहा गया है कि किसी व्यक्ति के पिछले धर्म में पुनर्परिवर्तन अवैध नहीं है, भले ही जबरन किया जाए ।जबकि हिंदू दक्षिणपंथी समूहों और दक्षिणपंथी नेतृत्व वाली सरकारों ने अंतर–विश्वास रोमांटिक संबंधों के बारे में लोगों को ‘ लव–जिहाद ‘ के रूप में भड़काया, जहां ज्यादातर मामलों में मुस्लिम आदमी को आतंकवादी मान लिया जाता है, ऐसी कोई घटना या आंकड़े नहीं हैं जो यह साबित करें कि ऐसे रोमांटिक रिश्ते कभी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े मिले हों दूसरी ओर, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जहां राज्य और समुदाय ने अंतर–विश्वास प्रेम और विवाहित वयस्क जोड़ों पर गलत तरीके से हमले किये हैंI स्थानीय पंचायतों ने भी समुदाय के मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए युवा जोड़ों को मौत के घाट उतार दिया है। हाल ही में शेफिनजहां मामले 2018, में, जहां अंत में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास बदलने का अधिकार माना, और कहा कि विश्वास बदलने का अधिकार पसंद का मौलिक अधिकार है और यह भी देखा गया है कि, एक बार दो वयस्क व्यक्ति रोमांटिक साझेदारी में प्रवेश करने के लिए सहमत होते हैं तो परिवार, समुदाय, कबीले की सहमति आवश्यक नहीं है ।
यूपी अध्यादेश किसी व्यक्ति या नागरिक की निजता के अधिकार के लिए सीधा खतरा है।जिलाधिकारी को सार्वजनिक रूप से सूचित करना और पुलिस जांच और उसके बाद जांच की भूमिका के अधीन होने के कारण, यूपी में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार नागरिकों को न केवल व्यक्तिगत स्वायत्तता से वंचित कर रही है बल्कि अंतरंग संबंधों और धर्म के मामले में पसंद की स्वतंत्रता को भी खत्म कर रही है ।अंतर–विश्वास विवाह और किसी भी धर्मांतरण को राज्य द्वारा स्वीकृत किए जाने वाले सार्वजनिक मामले बनाकर सरकार सीधे व्यक्तियों के निजी जीवन में प्रवेश कर रही है और लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आकांक्षाओं को भी नियंत्रित कर रही है ।
धर्मांतरण एक धर्म से दूसरे धर्म में होने से प्रशासनिक और सार्वजनिक जांच का मामला नहीं हो सकता।यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करता है जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के मुक्त पेशे, अभ्यास और प्रचार की रक्षा करता है ।इन मौलिक अधिकारों पर बाधा डालकर राज्य लोगों के आत्मनिर्णय पर हमला कर रहा है ।यह कानून दलित और अंबेडकरवादी समुदायों की आस्था, भावना और राजनीतिक इच्छाशक्ति के खिलाफ है, जहां बौद्ध धर्म में धर्मांतरण एक आम प्रथा है ।गाजियाबाद में वाल्मीकि समुदाय का बौद्ध धर्म में सामूहिक धर्मांतरण, हाथरस में सामूहिक बलात्कार का विरोध कानून के सीधे विरोधाभास में खड़ा है ।
ऐसा क्यों है कि जो सत्ता में हैं और जिनके पास अधिकार हैं वे प्यार से इस कदर नफरत करते है? वे दिल के मामलों में अविश्वास से क्यों भरे हुए हैं?यह हिंदू वर्चस्व की धारणा है जो घृणा की राजनीति को बढ़ावा देती है ।यह माना जाता है कि मुस्लिम भारत में एक दूसरे दर्जे का नागरिक है, जैसा कि पिछले साल नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने में स्पष्ट है ।हमने उन लोगों पर फैलाया दमन देखा जो इन कठोर उपायों की अवहेलना करने के लिए खड़े थे जिनका उद्देश्य हजारों और हजारों भारतीयों से नागरिकता के अधिकार छीन लेना है ।यूपी एक्ट मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए एक और नियंत्रण तंत्र है, जिसे हर दिन फैलाया जा रहा है, विडंबना यह है कि जब दो लोग जो मुस्लिम हैं, शादी कर रहे हैं तब भी ,केवल इसलिए कि वहां एक समुदाय को आतंकित करने के लिए एक हथियार उपलब्ध है ।
ये ताकतें कौन हैं जो एक दूसरे के खिलाफ समुदायों को खड़ा करते हुए महिलाओं को संरक्षण देने और उनकी रक्षा करने का दावा करती हैं? भाजपा शासित भारतीय राज्यों द्वारा भाजपा ने तीन तलाक अधिनियम के माध्यम से, मुस्लिम महिला को नवजात बच्चे की तरह पर आश्राई बनाने की कोशिश की है, अब यूपी अध्यादेश के माध्यम से यह हिंदू महिला को भी नवजात परनिरभर कर रहा है और उसकी स्वायत्त छवि को खत्म करता है।यह अधिनियम पीड़ित महिला को न्यायालय जाने की शक्ति नहीं देता है, बल्कि उसके माता–पिता, भाई–बहन आदि को उसके विरुद्ध कार्यवाही की अनुमति देता है I कहाँ हैं महिलाओं के मौलिक अधिकार और स्वायत्तता जो उन्हें उसके अंतरंग, सामाजिक और राजनीतिक जीवन का फैसला करने का अधिकार देती हैं ?यह अधिनियम इस विचार का प्रचार करता है कि महिलाएं समुदायों की संपत्तियां हैं और यह विशेष धार्मिक–जाति समुदाय केवल महिलाओं की कामुकता, इच्छाओं और आकांक्षाओं को नियंत्रित कर सकता है ।यह अधिनियम किसी मनुष्य के रूप में स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने के लिए छीन लेता है ।यह युवा महिलाओं और पुरुषों की जान खतरे में डालता है ।और इस अधिनियम को कई अन्य राज्यों में दोहराया जा सकता है, यदि युवाओं और अन्य समझदार लोगों द्वारा विरोध नहीं किया जाता है ।
हम वेलेंटाइन डे और अन्य सामाजिक आयोजनों पर पार्कों, सड़कों, शहर के सार्वजनिक स्थानों और गांवों में युवा लोगों पर एबीवीपी, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद जैसे दक्षिणपंथी सजग समूहों द्वारा नैतिक पुलिसिंग, अपमान और हिंसा को बढ़ाते हुए देख रहे हैं । Kiss of Love विरोध, 2014 केरल के कोझिकोडी में एक पार्क में एक युवा जोड़े के ऊपर हुए हमले के सार्वजनिक शर्मसार से उत्पन्न हुआ ।2018 में एंटी रोमियो दस्तों की तैनाती कर सभी की और विशेष रूप से युवा लोगों की स्वायत्तता, कामुकता, और गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का एक उन्मत्त कदम था ।यूपी अध्यादेश स्पष्ट रूप से समुदायों, गुटों, परिवारों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से स्वयं नियुक्त दक्षिणपंथी समूहों को युवा लोगों पर भीड़ के हमले शुरू करने, महिलाओं की गतिशीलता को प्रतिबंधित करने, उनकी दोस्ती और रिश्तों में हस्तक्षेप करने के लिए लाइसेंस देता है ।
महिलाओं, समलैंगिक और ट्रांस व्यक्तियों के रूप में जो ब्राह्मण, हेट्रो–मानकीय पारिवारिक संरचनाओं को चुनौती दे रहे हैं, जो कई दशकों से सांप्रदायिकता, जाति–पितृसत्ता के खिलाफ लड़ रहे हैं, हम सब भारतीय राज्य के सत्तावादी चरित्र को एक ऐसा अधिनियम पारित करने के लिए पुरजोर चुनौती देते हैं जो मौलिक मानवीय अधिकार और गरिमा को छीन रहा है ।हम हिंदू दक्षिणपंथी राज्य की ऐसी पितृसत्तात्मक तानाशाही की अवहेलना करते हैं जो यह कल्पना करता है कि यह हिंदू, मुस्लिम, अन्य अल्पसंख्यक समुदायों, दबे–कुचले जातियों, महिलाओं, समलैंगिक और ट्रांस व्यक्तियों को ऐसे प्रतिगामी कानूनों को पारित करके नियंत्रित कर सकता है ।हमें अपने इस मौलिक अधिकार पर हमले का विरोध करना चाहिए कि हम किससे प्यार करते हैं और हम किससे शादी करते हैं, चाहे वे विवाह में रहें या बाहर। हमें प्यार करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए । हमें उन्हें अपनी भावनाओं, हमारे जुनून, हमारी इच्छाओं, हमारी लैंगिकता को नियंत्रित करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए ।आज हम जो भी कदम उठाते हैं, वह हमारे आने वाले कल के समाज को बनाने की दिशा में एक कदम है, जहां सभी के लिए गरिमा हैI