(अक्सर लोग बातचीत में यह कहते पाये जाते हैं कि इस देश में सैनिक शासन लागू कर देना चाहिए. ऐसा कहते समय वे यह भूल जाते हैं कि उनके पड़ोसी देशों में यह सब होता रहा है और इसने उन देशों का जहाँ पीछे किया है वहीं लोगों के जीवन को भी संकट में जब-तब डाल दिया है. जिस देश ने अपने इतिहास का सबसे महान और बड़ा संघर्ष अहिंसा, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे विराट मानवीय मूल्यों से जीता हो. वहां हिटलर की बढ़ती लोकप्रियता चिंतित करती है.
क्यों हम हिटलर को पसंद करने लग गयें हैं, क्यों हम किसी तानाशाह की प्रतीक्षा कर रहें हैं ? जबकि यह भारत और मानवजाति के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं होगा.
प्रस्तुत आलेख इसी परिघटना की पड़ताल करता है .)
( मुंबई के एक रेस्तरां का दृश्य, फोटो आभार REUTERS)
“History teaches, but it has no pupils.”
Antonio Gramsci, (१)
एक भारतीय प्रकाशक को इस मसले पर वर्ष 2018 में आलोचना का शिकार होना पड़ा जब बच्चों के लिए तैयार की गयी एक किताब जिसका फोकस विश्व के नेताओं पर था ‘जिन्होंने अपने मुल्क और अपनी जनता की बेहतरी के लिए जिंदगी दी’ उसमें हिटलर को भी उसने शामिल किया.
जानकार लोग बता सकते हैं कि ऐसी घटनाएँ- कम-से-कम यहां अपवाद नहीं हैं. अपनी मौत के लगभग 75 साल बाद हिटलर भारत में बार-बार ‘नमूदार’ होता रहता है.
एक स्पैनिश फिल्म निर्माता अल्फ्रेडो डे ब्रागान्जा- जो एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता रहे हैं- और जिन्होंने कुछ साल पहले भारत में रह कर काम किया था, उन्होंने भारत में हिटलर की अलग किस्म की ‘मौजूदगी’ को लेकर एक फोटो निबंध तैयार किया था जिसमें बहुत कम लिखित सामग्री थी. वह हिटलर की उपस्थिति को लेकर इस कदर विचलित थे कि अपने इस निबंध की शुरूआत में उन्होंने पूछ ही डाला:
‘भारत हिटलर-प्रेम के गिरफ्त में है. हालांकि आबादी का बड़ा हिस्सा यह नहीं जानता कि आखिर ऐसा क्यों हैं, वे अपने निजी एवं पेशागत चिन्ताओं से परे सोचना भी नहीं चाहते कि क्यों भारत हिटलर से प्रेम करता है? क्या किसी लॉबी का हित इसके पीछे है.’ (2)
आज भारत में आलम यह है कि यहूदी विरोधी हिटलर की चर्चित रचना ‘माईन काम्फ’ (मेरा संघर्ष) को आप किसी किताब की दुकान में ‘डायरी ऑफ़ एन फ्रांक- जो उस यहूदी लड़की की आत्मकथा है जो खुद हिटलर की यहूदी विरोध की नीतियों का शिकार हुई थी, के बगल में देख सकते हैं.
हिटलर ने भारतीयों के बारे में काफी अपमानजनक टिप्पणियां की थीं और उसने भारत की आज़ादी के संग्राम का कतई समर्थन नहीं किया था. ‘डिअर हिटलर’ इस फिल्म पर- जिसमें यह दावा किया गया था कि ‘हिटलर भारत का दोस्त रहा है’ अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एक लेखक ने हिटलर के चित्रांकन पर आश्चर्य प्रकट करते हुए तथा निराशा जताते हुए लिखा था :
“हिटलर ने कभी भी भारतीय स्वशासन की हिमायत नहीं की. उसने ब्रिटिश राजनेताओं को सलाह दी कि गांधी और आज़ादी के आन्दोलन के सैकड़ों नेताओं को वह गोली से उड़ा दे. बार-बार उसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति अपना समर्थन दोहराया. वह यही सोचता था कि वह (ब्रिटिश शासन) उतना सख्त नहीं रहा है. ‘अगर हम भारत पर कब्जा जमा लेते हैं’ उसने कभी धमकाया था, तब भारतीय लोग ‘अंग्रेजी शासन के अच्छे दिनों को याद करते फिरेंगे.’ (3)
( Read the full article here : https://samalochan.blogspot.com/2021/02/blog-post_3.html)
The Brahmanical urban upwardly mobile class has all along despised our democracy and the constitutional right of universal suffrage. They would much rather like Pakistn restrict the voting right to the educated tax payer. Period.
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