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क्या राम मंदिर की आड़ में अपनी विफलताएं छिपा रही है मोदी सरकार

यह मानने के पर्याप्त आधार हैं कि राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए चुना गया यह समय एक छोटी रेखा के बगल में बड़ी रेखा खींचने की क़वायद है, ताकि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की बढ़ती असफलताएं जैसे- कोविड कुप्रबंधन, बदहाल होती अर्थव्यवस्था और गलवान घाटी प्रसंग- इस परदे के पीछे चले जाएं.

Ayodhya: A hoarding of PM Narendra Modi and other leaders put up beside a statue of Lord Hanuman, ahead of the foundation laying ceremony of Ram Temple, in Ayodhya, Thursday, July 30, 2020. (PTI Photo)(PTI30-07-2020 000044B)

अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले लगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं का एक होर्डिंग. (फोटो: पीटीआई)

बीते दिनों जनाब उद्धव ठाकरे द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के प्रस्तावित भूमि पूजन को लेकर जो सुझाव दिया गया है, वह गौरतलब है.

मालूम हो कि आयोजकों की तरफ से जिन लोगों को इसके लिए न्योता दिया गया है, उसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का नाम भी शामिल है, उसी संदर्भ में उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि ‘ई-भूमि पूजन किया जा सकता है और भूमि पूजन समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये भी अंजाम दिया जा सकता है.’

उनका कहना है कि इस कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल होना चाहेंगे और क्या उन्हें वहां पहुंचने से रोका जा सकता है? कोरोना महामारी को लेकर देश-दुनिया भर में जो संघर्ष अभी जारी है और जहां धार्मिक सम्मेलनों पर पाबंदी बनी हुई है, ऐसे में उनकी बात गौरतलब है.

गौर करें कि ऐसा आयोजन जिसका लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा, कोई चाहे न चाहे देश में जगह जगह जनता के अच्छे-खासे हिस्से को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित करेगा.

और अगर दक्षिणपंथी जमातें इस बारे में अतिसक्रियता दिखा दें तो फिर जगह जगह भीड़ बेकाबू भी हो सकती है और केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस की भी धज्जियां उड़ सकती हैं.

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मोदीनामा : हिंदुत्व का उन्माद

 

मई 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिंदुत्ववादी दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी ने शानदार चुनावी जीत हासिल की।

यह जीत सामान्य समझ को धता बताती है – जीवन और आजीविका जैसी आधारभूत बातें इस चुनाव का मुद्दा क्यों नहीं बन पाईं? ऐसा क्यों है कि सामान्य और सभ्य लोगों के लिए भी

हिंदुत्व के ठेकेदारों की गुंडागर्दी बेमानी हो गई? क्यों एक आक्रामक और मर्दवादी कट्टरवाद हमारे समाज के लिए सामान्य सी बात हो गई है? ऐसा क्यों है कि बेहद जरूरी मुद्दे आज गैरजरूरी हो गए हैं?

ये सवाल चुनावी समीकरणों और जोड़-तोड़ से कहीं आगे और गहरे हैं। असल में मोदी और भाजपा ने सिर्फ चुनावी नक्शों को ही नहीं बदला है बल्कि सामाजिकं मानदंडों के तोड़-फोड़ की भी शुरूआत कर दी है।

यह किताब प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के पिछले पांच वर्षों की यात्रा को देखते हुए आने वाले पांच वर्षों के लिए एक चेतावनी है।

978-81-940778-5-5

LeftWord Books, New Delhi, 2019

Language: Hindi, 131 pages, 5.5″ x 8.5″

Price INR 195.00 Book Club Price INR 137

(https://mayday.leftword.com/catalog/product/view/id/21471)

SUBHASH GATADE
Subhash Gatade is a left activist and author. He is the author of Charvak ke Vaaris (Hindi, 2018), Ambedkar ani Rashtriya Swayamsevak Sangh (Marathi, 2016), Godse’s Children: Hindutva Terror in India (2011) and The Saffron Condition (2011). His writings for children include Pahad Se Uncha Aadmi (2010).

ज़ुबां पर आंबेडकर, दिल में मनु

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एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ बुलाए गए भारत बंद का दृश्य. (फोटो: पीटीआई)

 

2 अप्रैल का ऐतिहासिक भारत बंद लंबे समय तक याद किया जाएगा. जब बिना किसी बड़ी पार्टी के आह्वान के लाखों लाख दलित एवं वंचित भारत की सड़कों पर उतरें और उन्होंने अपने संघर्ष एवं अपने जज्बे से एक नई नजीर कायम की.

आजादी के सत्तर सालों में यह पहला मौका था कि किसी अदालती आदेश ने ऐसी व्यापक प्रतिक्रिया को जन्म दिया था. ध्यान रहे कि इस आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और चंद निरपराधों की जानें गईं, उसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता!

मगर क्या इसी वजह से व्यापक जनाक्रोश की इस अभिव्यक्ति ने उजागर किए सवालों की अहमियत कम हो जाती है? निश्चित ही नहीं!

वैसे इन तथ्यों की पड़ताल करना भी समीचीन होगा कि (जैसा कि कई स्वतंत्र विश्लेषणों में स्पष्ट किया गया है) कई स्थानों पर इस हिंसा के पीछे दक्षिणपंथी संगठनों एवं उनके कारिंदों का हाथ था, जो दलित उभार को कुचलना चाहते थे तथा साथ ही साथ उसे बदनाम करना चाहते थे. ( Click here for the full article :http://thewirehindi.com/39182/sc-st-act-dalit-agitation-narendra-modi-government/)

 

प्रधानसेवक का मौन

ऊपर से शांत दिखने वाली भीड़ का हिंसक बन जाना अब हमारे वक्त़ की पहचान बन रहा है. विडंबना यही है कि ऐसी घटनाएं इस क़दर आम हो चली हैं कि किसी को कोई हैरानी नहीं होती.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi participates in the mass yoga demonstration at the Ramabai Ambedkar Maidan, on the occasion of the 3rd International Day of Yoga - 2017, in Lucknow on June 21, 2017.

15 वर्ष का जुनैद ख़ान, जिसकी चाहत थी कि इस बार ईद पर नया कुर्ता पाजामा, नया जूता पहने और इत्र लगा कर चले, लेकिन सभी इरादे धरे के धरे रहे गए. उसे शायद ही गुमान रहा होगा कि ईद की मार्केटिंग के लिए दिल्ली की उसकी यात्रा ज़िंदगी की आख़िरी यात्रा साबित होगी. दिल्ली बल्लभगढ़ लोकल ट्रेन पर जिस तरह जुनैद तथा उसके भाइयों को भीड़ ने बुरी तरह पीटा और फिर ट्रेन के नीचे फेंक दिया, वह ख़बर सुर्ख़ियां बनी है.

दिल्ली के एम्स अस्पताल में भरती उसका भाई शाकिर बताता है कि किस तरह भीड़ ने पहले उन्हें उनके पहनावे पर छेड़ना शुरू किया, बाद में गाली गलौज करने लगे और उन्हें गोमांस भक्षक कहने लगे और बात बात में उनकी पिटाई करने लगे. विडम्बना है कि समूची ट्रेन खचाखच भरी थी, मगर चार निरपराधों के इस तरह पीटे जाने को लेकर किसी ने कुछ नहीं बोला, अपने कान गोया ऐसे बंद किए कि कुछ हुआ ही न हो.

ट्रेन जब बल्लभगढ़ स्टेशन पर पहुंची तो भीड़ में से किसी ने अपने जेब से चाकू निकाल कर उन्हें घोंप दिया और अगले स्टेशन पर उतर कर चले गए. एक चैनल से बात करते हुए हमले का शिकार रहे मोहसिन ने बताया कि उन्होंने ट्रेन की चेन भी खींची थी, मगर उनकी पुकार सुनी नहीं गई. इतना ही नहीं, रेलवे पुलिस ने भी मामले में दखल देने की उनकी गुजारिश की अनदेखी की.

विडंबना ही है कि उधर बल्लभगढ़ की यह ख़बर सुर्ख़ियां बन रही थी, उसी वक़्त कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की मस्जिद के बाहर सादी वर्दी में तैनात पुलिस अधिकारी को आक्रामक भीड़ द्वारा मारा जा रहा था. जुनैद अगर नए कपड़ों के लिए मुंतज़िर था तो अयूब पंडित को अपनी बेटी का इंतज़ार था जो बांगलादेश से पहुंचने वाली थी.

( Read the full article here : http://thewirehindi.com/12095/mob-lynching-and-india/)

फेंके जा, फेंके जा – ये तीन सौ टॉफी भी गुजरात मॉडल की देन हैं!

चला मुरारी हीरो बनने. मगर इत्ती जल्दी काहे की – टॉफी और ट्रॉफी का फ़र्क तो जान ले पहले. भक्तों और भक्तिनों से ही पूछ लिया होता तो वो भी बता देते. मगर इत्ता भी सब्र किसे जब सामने कुर्सी दिखाई दे रही हो. वो भी परधान मंत्री की. और जब सारे मुनादी करने वाले, बैंड बाजे वाले चुगलिया, फुगलिया, शर्मा, गुप्ता, कंवल, फंवल में बादशाह के नए लिबास की तारीफ़ों के पुल बांधने की होड़ लगी हो, तो कौन है सुसरा जो हमारे सामने बोल सके है? अब मुरारी बोलता है और बैंड बाजे वाले दाद देते हैं. लीजिये समाअत  फरमाइए उन्हीं की ज़ुबानी और आनंद लीजिये: