अहमदाबाद के जमालपुर के पास स्थित वसन्त-रजब चौक कितने लोगों ने देखा है? देखा तो कइयों ने होगा, और आज की तारीख में उससे रोज गुजरते भी होंगे, मगर अंगुली पर गिनने लायक लोग मिलेंगे जिन्होंने चौराहे के इस नामकरण का इतिहास जानने की कोशिश की होगी। मुमकिन है गुजरने वाले अधिकतर ने आज के इस इकहरे वक्त़ में- जबकि मनुष्य होने के बजाय उसकी खास सामुदायिक पहचान अहम बनायी जा रही है- इस ‘विचित्र’ नामकरण को लेकर नाक भौं भी सिकोड़े होंगे।
वह जून 1946 का वक़्त था जब आज़ादी करीब थी, मगर साम्प्रदायिक ताकतों की सक्रियता में भी अचानक तेज़ी आ गयी थी और उन्हीं दिनों यह दो युवा साम्प्रदायिक ताकतों से जूझते हुए मारे गए थे। वसंत राव हेगिश्ते का जन्म 1906 में अहमदाबाद के एक मराठी परिवार में हुआ था तो रजब अली लाखानी एक खोजा मुस्लिम परिवार में कराची में पैदा हुए थे (27 जुलाई 1919) और बाद में उनका परिवार अहमदाबाद में बस गया था। हमेशा की तरह उस साल रथयात्रा निकली थी और उसी बहाने समूचे शहर का माहौल तनावपूर्ण हो चला था।
कांग्रेस सेवा दल के कार्यकर्ता रहे इन जिगरी दोस्तों ने अपने ऊपर यह जिम्मा लिया कि वह अपने-अपने समुदायों को समझाएंगे कि वह उन्मादी न बनें, इसी काम में वह जी जान से जुटे थे, छोटी बैठकें कर रहे थे, लोगों को समझा रहे थे। 1 जुलाई को एक खांड नी शेरी के पास एक उग्र भीड़ ने – जो जुनूनी बन चुकी थी – उन्हें उनके रास्ते से हटने को कहा और उनके इन्कार करने पर उन दोनों को वहीं ढेर कर दिया। Continue reading साझी शहादत-साझी विरासत: वसंत राव और रजब अली को याद करना क्यों जरूरी है ?