ये बिहार का मंज़र है, क्या किया जाए!
ये रिपोर्ट रेयाज़-उल-हक़ ने लिखी है। वे प्रभात खबर के पटना संस्करण से जुड़े हैं। परसों रविवार डॉट कॉम के संपादक और संवेदनशील पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल से जब बात हो रही थी, तो उन्होंने इस रिपोर्ट का ज़िक्र किया। रेयाज़ की इस रिपोर्ट में जो दृश्य हैं, वे आंकड़ों पर इसलिए भी भारी हैं, क्योंकि आंकड़े आपको हैरान तो करते हैं, आपकी आंखों के समंदर में तूफान नहीं लाते। ये कुछ वैसा ही है, जैसा एक जमाने में फणीश्वरनाथ रेणु ने दिनमान पत्रिका के लिए पटना बाढ़ की रिपोर्टिंग की थी। ये सत्तर के दशक की बात है। आधी सदी बीतने को आ रही है – हालात हद से बदतर हो गये हैं। रेयाज़ के शब्दचित्र में बाढ़ का दहशतनाक मंज़र
मौजूद है – आप देखें, ज़िंदगी की भीख मांगते लोगों का दर्द महसूस करें और जितना संभव हो सके – मदद पहुंचाएं। (अविनाश)
मधेपुरा से सिंहेश्वर की ओर जानेवाली सड़क पर पथराहा गांव में मिलते हैं जोगेंदर यादव। सड़क किनारे एक पान की दुकान के सामने मचान पर बैठे वे पानी को अपनी ‘खर छपरी’ में घुसते हुए देखते हैं। पानी ने सुबह ही पथराहा में प्रवेश किया है। कोसी का लाल पानी। एक दिन पहले की दोपहर में गांववालों ने उसकी रेख देखी थी, गांव के पूरब। आज वह उनके घरों से, आंगन से, बांस-फूस की दीवारों से होता हुआ बह रहा है। कौवे उसकी फेन में जाने क्या ढूंढ रहे हैं। कुत्ते उसे सूंघते हैं और भड़क कर भागते हैं। गोरू उसमें खुर रोपने से डरते हैं। एक-एक सीढी डुबोते हुए, एक-एक घर पार करते हुए, एक-एक गली से राह बनाते हुए सड़क पर आकर वह अपनी थूथन पटकता है। कहीं-कहीं कमर भर पानी है गांव में।