शब्द और विचार हर किस्म के कठमुल्लों को बहुत डराते हैं. विचारों से आतंकित लोगों ने अब शब्दों और विचारों के ख़िलाफ़ बंदूक उठा ली है.
Gauri, you are more than a memory
You are a direction
For a world that should not be!
– K P Sasi
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कुछ लोग जीते जी किवदंती बन जाते हैं. कन्नड़ भाषा के अग्रणी हस्ताक्षर पी लंकेश (जन्म 8 मार्च, 1935) ऐसे ही शख़्सियतों में शुमार किए जा सकते हैं. समाजवादी आंदोलन से ताउम्र सम्बद्ध रहे लंकेश, जो कुछ समय तक अंग्रेज़ी के प्रोफेसर भी रहे.
आज भी उनकी अपनी साप्ताहिक पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ के लिए याद किए जाते हैं, जो उत्पीड़ितों, दलितों, स्त्रियों और समाज में हाशिये के तबकों का एक मंच बनी थी, जिसने कन्नड़ भाषा में आज सक्रिय कई नाम जोड़े, जो उसूल के तहत विज्ञापन नहीं लेती थी और एक समय था जब उसकी खपत हज़ारों में थी और उसके पाठकों की संख्या लाखों में.
लंकेश के बारे में मालूम है कि 25 जनवरी, 2000 को अपने साप्ताहिक का संपादकीय लिख कर सोने चले गए तो फिर जगे ही नहीं. कर्नाटक का समूचा विचारजगत स्तब्ध था. इसे विचित्र संयोग कहा जाना चाहिए कि दिल का दौरा पड़ने से हुई उनकी मौत के सत्रह साल आठ महीने और दस दिन बाद महज कर्नाटक ही नहीं, पूरे देश का विचारजगत स्तब्ध है, जब उनकी बड़ी बेटी गौरी लंकेश की मौत की ख़बर लोगों ने सुनी है, जो हत्यारों की गोलियों का शिकार हुईं.
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