Guest post by RAJINDER CHAUDHARY

उच्चतम न्यायालय के बहुमत ने ‘आधार’ पर दिये गए हालिया फैसले में सरकारी योजनाओं, सब्सिडी इत्यादि का लाभ लेने के लिए आधार अनिवार्य करने के सरकारी फैसले को सही ठहराया है। इस के साथ ही आयकर दाता के लिए भी आधार अनिवार्य कर दिया है। इस के अलावा बाकी जगह इस के प्रयोग को अवैध ठहरा दिया है; अब न मोबाइल फोन और न बैंक खातों के लिए यह ज़रूरी रहेगा। न निजी कंपनियाँ इसे मांग या प्रयोग कर पाएँगी। यह सब अब बच्चा बच्चा जानता है। सवाल यह है कि इस परिस्थिति में अब आधार का क्या प्रयोजन बचा है?
सरकार ने अदालत में आधार को कर-चोरी, काले-धन और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक सशक्त हथियार के तौर पर प्रस्तुत किया है (बहुमत समेत तीनों फैसलों की एक संयुक्त फाइल का पृष्ठ 1095-6)। काले-धन के खिलाफ लड़ाई के लिए बैंक खातों और पैन को आधार से जोड़ना अनिवार्य किया गया था। आतंकवाद से लड़ने एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मोबाइल फोन के लिए आधार अनिवार्य किया गया था। अब जब बैंक खातों और मोबाइल फोन के लिए आधार अनिवार्य नहीं रहा, तो अब आधार इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किसी काम का नहीं रहा। लोगों के छद्म नाम से कई-कई खाते चलते रहेंगे और काले धंधे का कारोबार जैसे अब तक चलता रहा है, वैसे ही चलता रहेगा। आयकर दाता के लिए आधार अनिवार्य करने से काले धंधे और काली कमाई पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। अदालत के आधार को वैध ठहराने वाले एक जज ने भी अपने फैसले में कहा है कि बैंक खाता और पैन कार्ड दोनों का लिंक होना ही प्रभावी होगा (अकेला पैन कार्ड नहीं; इस लिए उन्होने बैंक खातों के लिए भी आधार को वैध ठहराया है हालांकि अल्पमत होने के चलते उन के फैसले का यह अंश प्रभावी नहीं होगा (पृष्ठ 55 माननीय जज अशोक भूषण के फैसले का/पृष्ठ 1103 तीनों फैसलों की संयुक्त फाइल का)।
Continue reading ‘आधार’ न बचा, न मरा, बचा केवल मदमस्त सफ़ेद हाथी : राजेन्द्र चौधरी