Ishrat: Laltu’s poem

Laltu‘s poem written in 2004; published in Dainik Bhaskar in 2005.

‘इशरत’
एक 

इशरत!
सुबह अँधेरे सड़क की नसों ने आग उगली
तू क्या कर रही थी पगली !
लाखों दिलों की धड़कन बनेगी तू
इतना प्यार तेरे लिए बरसेगा
प्यार की बाढ़ में डूबेगी तू
यह जान ही होगी चली!
सो जा
अब सो जा पगली.

दो 

इन्तज़ार है गर्मी कम होगी
बारिश होगी
हवाएँ चलेंगी

उँगलियाँ चलेंगी
चलेगा मन

इन्तज़ार है
तकलीफें कागजों पर उतरेंगी
कहानियाँ लिखी जाएँगी
सपने देखे जाएँगे

इशरत तू भी जिएगी
गर्मी तो सरकार के साथ है .

तीन 

एक साथ चलती हैं कई सड़कें .
सड़के ढोती हैं कहानियाँ .
कहानियों में कई दुःख .
दुखों का स्नायुतंत्र .
दुखों की आकाशगंगा
प्रवाहमान.

इतने दुःख कैसे समेटूँ
सफ़ेद पन्ने फर-फर उड़ते .
स्याही फैल जाती है
शब्द नहीं उगते. इशरत रे !

***

7 thoughts on “Ishrat: Laltu’s poem”

  1. ishrat jahan ki hatyari Gujarat sarkar ke mukhyamantri modi aur jimmedar adhikariyon ko ajmal kasab ki tarah fansi honi chahiye.

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