
बीते शनिवार 11 जनवरी को इण्टरनेट की आज़ादी के कार्यकर्ता आरोन श्वार्त्झ की पहली बरसी थी। बीती 11 जनवरी को आरोन ने अपनी जीवनलीला खुद समाप्त की थी। मेसेच्युएटस इन्स्टिटयूट आफ टेक्नोलोजी के नेटवर्क का इस्तेमाल कर लाखों अकादमिक लेख डाउनलोड करने के लिए – जिन्हें वह मुफ्त उपलब्ध करना चाहता था – उस पर मुकदमा शुरू होनेवाला था। उसे 30 साल की कैद की सज़ा होती और काफी जुर्माना देना पड़ता। रविवार को हैकर ग्रुप ‘अनानिमस’ ने एमआईटी की कई वेबसाइटस् पर हमला कर उस पर आरोन पर मुकदमा चलाने के उसके निर्णय के खिलाफ मेसेज लिखे और इण्टरनेट नियमन में सुधार की मांग की। मेसेज में लिखा गया था ‘‘इस शोक की घड़ी में हम आवाहन करते हैं कि एक मुक्त एवं निर्बंधमुक्त इण्टरनेट के प्रति अपनी समझौताविहीन प्रतिबद्धता के लिए, जिसे किसी सेन्सरशिप का सामना न करना पड़े और जिस तक सभी की सुगम एवं आसान पहुंच हो, हम नए सिरेसे संकल्पबद्ध हों।’ सप्ताह के अन्त में श्वार्त्झ से जुड़े कार्यकर्ताओं के एक समूह ने ‘न्यू हैम्पशायर रिबेलियन’ की शुरूआत की जिसके तहत वह सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागृति हेतु दो सप्ताह की यात्रा करेंगे। इस मार्च का अन्त डोरिस ‘ग्रेनी डी’ हेडोक के जनमदिन पर समाप्त होगा जिन्होंने वित्तीय सुधार की मुहिम के तहत 90 साल के उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की पैदल यात्रा की थी।
यहां प्रस्तुत है वह आलेख जिसे मैंने ‘सूचना आन्दोलन के इस पहले शहीद’ के सम्मान में पिछले साल लिखा था :
थोड़े लम्बे बाल, अक्सर बिखरे हुए, आंखों पर चश्मा, गोरे गालों पर हल्की दाढी।
अपनी उम्र का पचीसवां बसन्त हालही में पार किए आरोन को देख कर यह अन्दाज़ा लगाना सहसा मुश्किल हो सकता था कि कार्पोरेट कर्णधारों एवं बड़ी बड़ी हुकूमतों ने सूचनाओं पर जो अपना एकाधिकार कायम किया है, उसे ‘आजाद’ करने की जो विश्वव्यापी मुहिम जारी है, उसकी अग्रिम पंक्तियों में रहनेवाले एक अलग किस्म के ‘योद्धा’ से आप मिल रहे हैं। यह कोई संयोग नहीं था कि इसने एक ऐसे अनोखे किस्म के प्रतिरोध को संगठित किया, जिसके बारे में पहले सोचा तक नहीं गया था और जिसकी परिणति थी कि महाकाय लगनेवाली अमेरिकी सरकार झुक गयी। और उसे एक विधेयक को वापस लेना पड़ा जो कहने के लिए कापीराइट उल्लंघन रोकने के लिए बनाया गया था, मगर जिसका मकसद इण्टरनेट पर अपना एकाधिकार कायम करना था।
वैसे दुनिया के इस हिस्से में इस संघर्ष की चर्चा कम हुई है। याद रहे कि अमेरिकी सरकार ने ‘सोपा’(स्टाप आनलाइन पायरसी एक्ट ‘) के नाम से एक विधेयक सीनेट में मंजूरी के लिए पेश किया था, जिसे अगर मंजूरी मिलती तो अमेरिका आसानी से दुनिया की किसी भी वेबसाइट को बन्द कर सकती थी। मालूम हो कि जिन दिनों यह बिल सीनेट में पेश होने वाला था तब दुनिया भर की हजारों हजार वेबसाइटों ने एक दिन की ‘हड़ताल’ की, जिनमें विकीपीडिया से लेकर गूगल सभी शामिल थे। इस अभूतपूर्व एकजुटता का परिणाम यह था कि विधेयक पेश होने के पहले ही ठण्डे बस्ते में भेज दिया गयार्।
अपनी बहुत छोटी उम्र में बहुत बड़े करतब दिखानेवाले इस नौजवान ने चन्द रोज पहले यानि 11 जनवरी को मौत को चूम लिया।
जब आरोन चौदह साल का था तब उसने सर टिम बर्नेस ली, जिन्होंने वर्ल्ड वाईड वेब का आविष्कार किया था, उनके साथ मिल कर आरएसएस (रिअली सिम्पल सिण्डिकेशन)बना कर दुनिया के तमाम लोगों के लिए इण्टरनेट तक पहुंचना अधिक सुगम किया। 19 साल की उम्र एक बड़ी कम्पनी जो रिडिट की सहस्थापना की, जो आज की तारीख में दुनिया का सबसे लोकप्रिय बुलेटिनबोर्ड है। गौरतलब था कि आरोन ने कभी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं की। स्कूल की पढ़ाई अधूरी छोड़ी। स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, मगर वहां दर्शन की किताबों को पढ़ने में मसरूफ था। बाद में रिडिट बेच कर उसने बहुत पैसे कमाए, मगर पैसों की उसके लिए अधिक अहमियत नहीं थी, वह ऐसी दुनिया का सपना देखता था जहां सूचनाएं आजाद हों, जनता तक आसानी से उपलब्ध हों और उसे पूरा करने के लिए अपने ज्ञान को झोंक देना उसका शगल था। हावर्ड विश्वविद्यालय के लॉ स्कूल के प्रोफेसर लैरी लैसिग के साथ मिल कर कापीराइट के विकल्प के तौर पर क्रिएटिव कामन्स लायसेन्स बनाने में – ताकि दुनिया भर के रचनाकारों की रचनाएं बिना किसी भुगतान के लोगों तक पहुंच सकें – भूमिका अदा की थी।
वर्ष 2006 में उसने अमेरिका की लाइब्रेेरी आफ कांग्रेस द्वारा संग्रहीत बुक कैटलोगिंग डाटा को हासिल किया, जिसे पाने के लिए भरपूर पैसे देने पड़ते थे और उसे ओपन लाइब्रेरी पर मुफ्त पोस्ट किया। वर्ष 2009 में उसने अमेरिका की पेसर सिस्टम में प्रवेश पाया, इसमें संघीय राज्य की अदालतों के तमाम फैसलों को रखा गया है। याद रहे कि किसी साधारण व्यक्ति या संस्था को इन फैसलों की प्रति चाहिए तो उसे एक पेज के लिए एक सेन्ट देना पड़ता था। उसने अपनी मेधा से इसमें से मौजूद लगभग 20 मिलियन पेज डाउनलोड किए जो इसके रेकार्ड का लगभग बीस फीसदी था और उसे भी जनता के लिए मुफ्त उपलब्ध करा दिया। इन दिनों आरन ‘डिमाण्डप्रोग्रेस’ नामक डिजिटल अधिकार संगठन संचालित कर रहे ताकि ज्ञान एवं जानकारी पर कार्पोरेट समूहों के बढ़ते नियंत्राण के खिलाफ नए नए अभिनव कदम उठाए जा सकें।
आखिर क्या वजह थी कि आरोन, जो चाहता तो बिल गेटस् या गूगल के मालिकानों को सम्पत्ति एकत्रित करने में कभी मात देता, सफलता जिसके पैरों को चूम रही थी और दुनिया के एक बड़े हिस्से में उसकी इस मुहिम के चर्चे थे, उसने ऐसा कदम उठाया ?
दरअसल सूचनाओं को आज़ाद करने के एक मामले में उस पर आपराधिक मुकदमा कायम किया गया था, जिसमें उसके लिए लगभग 30 साल की सज़ा तय थी और दस लाख डालर का जुर्माना भी देना पड़ता। यह मामला उभरा था, विश्वविख्यात शैक्षिक संस्थान मैसेच्युएटस इन्स्टिटयूट आफ टेक्नोलोजी (एमआईटी) एवं जेएसटीओआर – जो एक अकादमिक लेखों का आनलाइन भण्डार है -के चलते। मालूम हो कि जेएसटीओर के पास 42 लाख अकादमिक लेखों का संकलन है, जो उन्हीें लोगों को उपलब्ध हो सकता है, जिन्होंने उसके लिए भुगतान किया हो। याद रहे कि लम्बे समय से ऐसे अकादमिक प्रकाशनों को लेकर अकादमिशियनों के एक हिस्से एवं बड़े प्रतिष्ठानों या कार्पोरेट समूहों द्वारा संचालित जर्नल्स के बीच संघर्ष जारी है। जहां इनमें प्रकाशित आलेखों का चयन, समीक्षा, सम्पादन आदि सभी काम को अकादमिक समुदाय द्वारा बिना किसी भुगतान के किया जाता है, वहीं उसकी पहुंच आनलाइन चन्दा देने या नगदी भुगतान के जरिए हो सकती है। आरोन ने इस विरोधाभास को सीधी चुनौती देना तय किया। उसने एमआईटी से जुड़े नेटवर्क में अपने लैपटॉप को लगा कर जेएसटीओर के समूचे संग्रह को डाउनलोड कर लिया और इसी बात को लेकर उनके खिलाफ अमेरिकी सरकार की तरफ से मुकदमा कायम किया गया। गौरतलब था कि खुद जेएसटीओर ने इस मामले को आगे बढ़ाने से इन्कार कर दिया जब आरोन ने डाउनलोड किए इन तमाम लेखों को उन्हें लौटा दिया। मगर एमआईटी प्रशासन एवं अमेरिकी विधि विभाग अड़िग रहा।
स्पष्ट है कि आरोन एक ऐसी व्यवस्था का शिकार बना जिसमें ज्ञान का निजीकरण ही नियम है और इस नियम का उल्लंघन एक तरह से प्रतिरोध में शुमार किया जाता है, जिसका आप को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। आरोन की मृत्यु को सूचना को आजाद करने के खिलाफ अमेरिका द्वारा छेड़े गए युद्ध के परिणाम के तौर रेखांकित करते हुए बंगलौर स्थित ‘अल्टरनेटिव लॉ फोरम’ से जुड़े लारेन्स लियांग ‘मुक्त सूचना आन्दोलन का पहला शहीद’ नामक अपने वक्तव्य में बताते हैं कि दरअसल आरोन मुक्त ज्ञान के विचार के प्रति प्रतिबद्ध थे एवं उसके लिए सक्रिय थे। वह सूचना तक पहुंच का जनतांत्रिकीकरण करने की कोशिशों में, टेक्नोलोजी एवं ज्ञान के जनतांत्रिकीकरण को और सुगम बनाने की कोशिशों में मुब्तिला थे।’
आरोन के अन्तिम संस्कार में इण्टरनेट क्षेत्र की महारथियां एकत्रित थी जिन्होंने इस युवक को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। हावर्ड लॉ स्कूल के प्रोफेसर लैरी लेसिग ने उसे ‘अद्भुत शख्स’ कहा और सर टिम बर्नेस ली, जिन्होंने वर्ल्ड वाईड वेब का आविष्कार किया उनका कहना था ‘‘आरोन नहीं रहा। दुनिया के यायावरों, हमारे परिवार का बुजुर्ग आज चला गया। माता पिताओं, हमने एक बच्चे को खो दिया है और हम सबकी आंखें आज नम है।’
आरोन के जाने के ग़म को दुनिया भर में महसूस किया गया। दुनिया मे तमाम स्थानों पर आरन की याद में श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया गया। सुदूर बंगलौर में दिन में 2 बजे से शुरू हुआ कार्यक्रम अगली सुबह तक जारी रहा, जिसमें आरन के सपनों को आगे ले जाने के लिए सूचनाओं को मुक्त करने की मुहिम जारी रखने का संकल्प दोहराया गया। लोगों ने इस बात पर भी जोर दिया कि आरन के न रहने की इस त्रासदी को हमें कापीराइट एवं बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में उचित बदलाव लाने के लिए ताकि उसे साझे हित के सिद्धान्त की तरफ मोड़ा जा सके न कि गिनेचुने लोगों के फायदे के लिए। आरन पर मुकदमा कायम करने में एमआईटी जैसे विश्वविख्यात शिक्षा संस्थान की विवादास्पद भूमिका के खिलाफ चर्चित समूह ‘अनॉनिमस’ ने एमआईटी की वेबसाइट ठप की। तमाम विद्धानों ने अपने कापीराइट सामग्री को गूगन डॉक्स पर अपलोड किया और उसके जाने के चन्द घण्टों के अन्दर अमेरिकी सरकार के पास 25,000 लोगों द्वारा दस्तखत की गयी पीटिशन भेजी गयी जिसमें उसके खिलाफ बदले की भावना से मुकदमा कायम करनेवाले एटर्नी के खिलाफ मुकदमा चलाने एवं मामले की जांच करने की मांग की गयी थी।
आरोन की असामयिक मौत इसी कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि जनता के करों से एकत्रित अरबों डालर स्वाहा करनेवाले पूंजीपतियों का तो व्हाइट हाउस में स्वागत हो सकता है, मगर सूचनाओं को आज़ाद करने में मुब्तिला लोगों को जेल हो सकती है।
bahut hi badhia lekh…aaron ko shat shat shradhanjali….
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