त्रिलोकपुरी के कुछ सवाल

त्रिलोकपुरी की हिंसा की व्याख्या तरह-तरह से करने की कोशिश हो रही है. जो बात साफ है, वह यह कि हिंसा रोकी जा सकती थी, अगर प्रशासन ने वक्त पर सख्ती की होती. लेकिन दिल्ली में दीपावली के आस-पास जैसे कोई प्रशासन नहीं था.गनीमत यह थी कि त्रिलोकपुरी में रोड़ेबाजी तक ही हिंसा सीमित रही और दूसरे हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ. शायद उसका इरादा भी न था. मकसद एक सीमा तक तनाव और तापमान बढ़ा देना था जो उस इलाके के हिन्दुओं और मुसलमानों में शक और नफरत भर दे और दोनों को एक-दूसरे से दूर-दूर कर दे.

तरकीब जानी पहचानी थी. दो लोगों के बीच झगड़े की खबर आगे बढ़ते-बढ़ते तरह-तरह की शक्लें अख्तियार करती है और फिर एक बार हमला होता है.अगर झगड़ा बीस नंबर ब्लॉक का था तो वहाँ से दूर पंद्रह नंबर ब्लॉक या सताईस नंबर ब्लॉक में रोड़ेबाजी क्यों हुई.मोबाईल और व्हाट्स ऐप पर अफवाहें कौन उड़ा रहा था?

सवाल और भी हैं .इस तनाव में स्थानीय विधायक और सांसद की क्या भूमिका थी? विधायक दृश्य पटल से गायब थे. वे आम आदमी पार्टी के हैं.उनसे बार-बार संपर्क की कोशिशों के बावजूद वे सक्रिय नहीं हुए. सांसद भारतीय जनता पार्टी के हैं.उन्होंने जो बयान दिया, उसमें इशारे से हिंसा के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया गया था. उनके पूर्व विधायक का रोल तो आग लगाने का था.कुल मिला कर,दोनों की दिलचस्पी अमन के लिए हस्तक्षेप में न थी. दीपावाली के अगले दिन, जब रोड़ेबाजी ज़ोरों पर थी और कुछ भी घटने की आशंका थी, लगभग हर राजनीतिक दल से संपर्क की कोशिश हुई. नतीजा प्रायः सिफर था.

क्यों राजनीतिक दल इस तरह की हिंसा में शांति के लिए सामने आने से डरते हैं?क्या यही राजनीतिक निष्क्रियता बवाना, मुज़फ्फरनगर, कोकड़ाझार, बरोडा, आदि में नहीं थी?राजनीतिक दलों का लोगों से संपर्क मात्र चुनावों तक सिमट कर रह जाना इसका बड़ा कारण है. मात्र एक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, चुनाव से स्वतन्त्र अपने अलग-अलग संगठनों के जरिए, जिनमें कुछ स्थानीय, कुछ औपचारिक, कुछ अनौपचारिक, कुछ स्थाई, अस्थाई, लोगों से वैचारिक और भावनात्मक रूप से जुड़ी रहती है.इसलिए आश्चर्य नहीं कि संसदीय दलों को गाली दने वाली आम आदमी पार्टी का रवैया ठीक उन्हीं की तरह का था.लोगों से बात करने में भय उसे भी था.वह भी अधिकारियों, पुलिस से ही बात करने तक बाद में सीमित रह गई. कभी इस इलाके में कम्युनिस्ट पार्टियों की इकाइयां थीं. कभी!

इस तनाव में भी लेकिन कुछ लोग,जो स्वैच्छिक संस्थाओं में काम करते हैं,सड़क पर थे. वे लगातार प्रशासन से बात कर रहे थे और धारा एक सौ चवालीस लगाने को कह रहे थे जिससे भीड़ को सड़क से हटाया जा सके.. सैकड़ों फोन के बाद और प्रशासन पर कई तरह के दबाव के बाद शाम सात बजे धारा एक से चवालीस लगी. तब तक सड़कें रोड़ों और कांच से पट चुकी थीं. हिंसा के निशान साफ थे.

पुलिस दावा कर सकती है कि उसने हिंसा को काबू किया. लेकिन भारतीय पुलिस प्रायः हिंदू पुलिस की तरह ही बर्ताव करती है. दाढ़ी, टोपी देखते ही उसका पारा चढ़ जाता है.दीवाली खराब हो जाने का क्रोध अलग से. इसलिए सख्ती की मार अगर मुस्लिम समुदाय को ज़्यादा झेलनी पड़ी तो ताज्जुब नहीं.

अगर आप पत्रकार की तरह त्रिलोकपुरी जाएँ तो अभी भी हिंदू-मुसलमान कहते मिलेंगे कि हम तो साथ-साथ रहते आए हैं, जाने किसने यह आग लगा दी.लेकिन थोड़ा खुरचने पर हिन्दुओं में मुसलमानों को लेकर भरी नफरत फूट पड़ती है.यह क्या इस हिंसा के चलते पैदा हुई?उनका यह कहना कि इनके घर हथियार होते हैं, ये अपराधी प्रवृत्ति के होते ही हैं, अशुद्ध खाते-पीते हैं,इनके बच्चों  तक को हिंसा की आदत होती है, ये बातें क्या एक रात में  पैदा हो गईं?

मुसलमान इस तरह की किसी भी हिंसा के बाद अपने ज़ख्म दिखाने, राहत की मांगने,गिरफ्तार लोगों को छुड़ाने, अपनी नौकरी बचाने के लिए की जुगत भिड़ाने में व्यस्त दिखाई पड़ते हैं.इस तरह वे प्रायः शिकायती जान पड़ते हैं.ऐसी हर हिंसा के बाद उनके सामने एक कठिन चुनाव का प्रश्न आ खड़ा होता है: अमन चाहिए या इन्साफ? दोनों एक साथ नहीं मिल सकते. यह भारत की गंगा-जमुनी साझा ज़िंदगी का कड़वा सच है जो हर कुछ वक्फे के बाद उन्हें पीना पड़ता है.

त्रिलोकपुरी की घटना ने शिक्षित समुदाय की स्वार्थपरता से फिर पर्दा हटाया है. इस इलाके के बगल में मयूर विहार, पटपड़गंज हैं, जिनके घरों में त्रिलोकपुरी से काम करने वालियां जाती हैं.ये घर दो रोज तक अफवाहें सुनते रहे, फोन पर यह सुन-सुनकर परेशान भी होते रहे कि पुलिस काम वालियों को आने नहीं दे रही लेकिन इनमें से शायद ही किसी ने अपनी शिक्षा, अपने सामाजिक रसूख  का इस्तेमाल अपने इस गरीब पड़ोस को राहत देने के लिए किया.

त्रिलोकपुरी की हिंसा के नतीजों का अधययन सावधानी से किया जाना चाहिए.इस हिंसा के बाद भी अगर कोई यह कहता है कि भारत में चुनाव इस बार समावेशी विकास के नारे पर जाति-धर्म को परे रख कर जीते गए हैं, तो उसके भोलेपन की क्रूरता पर हँसा या रोया जा सकता है. क्योंकि त्रिलोकपुरी के अंदर  या बाहर, इस हिंसा पर हर किसी की पहली टिप्पणी थी: ‘ओह! यह चुनाव की तैयारी है!”

3 thoughts on “त्रिलोकपुरी के कुछ सवाल”

  1. एक रात में ये ज़ज़्बे पैदा नही हुए ना होते हैं. कहीं बहुत गहरे तौर पे मुसलमानो के प्रति संदेह ज़्यादातर हिंदुओं में रहता है. अपूर्वनांदजी ने ठीक कहा ज़रा कुरेदीय तो नफ़रत या शायद अलगाव और भय. भय अपने से अलग मज़हब के लोगों से.इसके बहुत से एतिहासिक कारण हो सकते हैं लेकिन एक बात बहुत साफ है कि सेक्युलरिसेशन के प्रॉजेक्ट में हम बिल्कुल असफल रहे. 1920 में जिन बातों पर तनाव पैदा होता था हिंदू-मुस्लिम के बीच बिल्कुल वैसे ही वाकये आज भी नज़ार आते हैं. इसका मतलब क्या ये समझा जाए कि हिंदू-मुस्लिम सम्बंधो में कोई सकारात्मक बदलाव आया ही नही? क्या आपसी सौहाद्र और तनाव राज सत्ता की भलमांसियत के ही मोहताज़ हैं और रहेंगे?

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    1. Koi b aam admi ni chahta ke kisi b trah fasad ho.Q ke isme na to sirf muslim ka nuksan h blke hindu ka b nuksan h.bas zyada ya kam. kei sal ki dosti pal bhar me nafrat me badal jati h.Isme sabse bada hath media ka h.Q ke vo kbi kbi anti muslim kam krte h.jaise love jihad.me ek sawal puchta hu.kiya vo mudda itna bada tha ke teen char din headline bni rhe ya us pr itna debate. sb log jante h ke is trah ki bat phle zaat ko le kr hoti thi.ek uche zaat ka lagka niche zaat ki lagki ke saath bhag kr shadi kr leta tha.tb vo b ek bda issue tha.ab log thoda morden ho gye h ya ye kah lijye ke ye bat aam ho gai h to log itna issue ni bnate h ya dheyan ni dete h.ab do dharm ki bat h to to use uchala ja rha h.usme b koi ladki hindu h or ladka muslim h to wahi media dikha rhi h.ye h love jihad.lekin. ap aas paas ya school or colg me dekhege ki ye aam bat h.lekin zaruri ni h ke vo ladki sirf hindu hi ho,kie muslim lgki jo hundu ladke se b shadi krte h to use aap kiya kahe ge.vo love jihad ni h.aap bollywood me b is trah ki inter relegion shadi hoti h.or to or jo party is bat lo itna uchal rhi h usi ke kei neta ne inter relegion shadi ki h.kon ye faisla krega ki kon love jihad h ya ni.Q ke media ye serve krti hi ni ke kiya ghlat h kiya sahi.Bas trp kmana chahti h,Us debate me hindu ke neta ya guru aate h vo sidha QURAAN ko sidha ghalat bol dete h.kiya ye muslim ke dil ko chot ni pahucha rhe h.Me ye is liye ni keh rha ke me ek musleem hu.ap khud sochye ke aap ke janne wale jo muslim log h vo kiya itne bure h? ghlat log b hote h to ye muslim me hi h ye b sach ni h hindu me b h.agar ap in ghalat muslim ki wajah se sb ko ghalat bolege to ye ziyadti ni higi? ye aap khud sochye?agar aap musim ke ghro me hathyar rhta h,ya madarso me ghalat kam hota h.ap ke kam kre ki aap hr madarse me or ghar me jaye or pta kr le.aap ni kr pa rhe h to ek muslim sathi ke sath jaye or madarse me ja kr dekhle ke waha kiya hota h?
      sab bat ki ek bat ke agar aap ko kisi bat ka shak h to apne aap pta ke na ke log or media ka sahara le.

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