
(Photo : Courtesy – Outlook Magazine)
इत्तेफाक ऐसा था कि 2 दिसम्बर को ही उन्हें सुनने का मौका मिला था।
जोशी अधिकारी इन्स्टिटयूट द्वारा ‘साम्प्रदायिकता की मुखालिफत और जनतंत्र की हिफाजत’ नामक मसले पर आयोजित एक सेमिनार की वह सदारत कर रहे थे। पहले सत्र में प्रोफेसर इरफान हबीब, सईद नकवी, जस्टिस राजिन्दर सच्चर आदि को बात रखनी थी। जब वह मंचासीन थे और बात कर रहे थे तब कुछ पता नहीं चलता था, मगर जब किसी वजह से उन्हें उठना होता था, तब संकेत पाकर पार्टी का कोई कामरेड दौड़ पड़ता था और उनके साथ चलता था।
पहली बार मैंने महसूस किया था कि जिन्दगी के 91 बसन्त पूरे कर चुके उन पर उम्र की छाया अब दिख रही है।