नीतीश कुमार आलोचना से परे हैं. इतिहासकार, राजनीतिशास्त्री, समाजवैज्ञानिक या पत्रकार, अभी सब नीतीशजी के गुणगान में व्यस्त हैं. इसलिए आश्चर्य नहीं हुआ जब जे.पी. आन्दोलन से जुड़े लोगों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री ने पेंशन की घोषणा की, तो कहीं से आलोचना का कोई स्वर नहीं सुनाई पडा, एक जनसत्ता की सम्पादकीय टिप्पणी को छोड़कर. खबरों में यह बताया गया था कि कांग्रेस विरोधी उस आंदोलन में जो जेल गए या घायल हुए, उन्हें पेंशन दी जाएगी. जनसत्ता ने ठीक ही यह प्रश्न किया कि क्या जयप्रकाश के नेतृत्व वाले उस आन्दोलन को भारत के स्वाधीनता आंदोलन के समतुल्य माना जा सकता है. यह सवाल भी अपनी जगह ठीक था कि अगर बिहार अर्थ-संकट से जूझ रहा है, तो इस बेतुकी योजना के लिए पैसे कहाँ से निकल आए!
जे.पी. आन्दोलनकारियों के लिए पेंशन की इस योजना का लाभ किस एक दल या संगठन के लोगों को सबसे ज़्यादा मिलेगा, अंदाज करना कठिन नहीं है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या तत्कालीन जनसंघ और अब भारतीय जनता पार्टी के सदस्य इस आंदोलन में बड़ी संख्या में थे. बल्कि यह आंदोलन पहला ऐसा बड़ा मौका था, जिसने आर.एस..एस और जनसंघ को राजनीतिक मान्यता दिलाने का काम किया. जयप्रकाश आर.एस.एस. के खतरनाक स्वभाव से परिचित न रहे हों, यह आरोप उनपर नहीं लगाया जा सकता. फिर भी कांग्रेस विरोध की राजनीति के कारण जयप्रकाशजी को आर.एस.एस. के साथ काम करने में हिचक नहीं हुई. १९७४ के पहले १९६७ वह बिंदु है, जिसे आर.एस.एस. को राजनैतिक वैधता दिलाने के सन्दर्भ में याद रखना चाहिए. कांग्रेस विरोध के प्लेटफार्म पर समाजवादियों और वामपंथियों को जनसंघ के साथ आने में कोई परेशानी नहीं हुई थी. तात्कालिक राजनीतिक यथार्थ और बाध्यताओं की दुहाई दी जा सकती है और इस तरह के गठजोड़ के पक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं. लेकिन क्या हम यह मान लें कि जनसंघ को राजनीतिक और आर.एस.एस. को सामाजिक वैधता दिलाने का परिणाम भारत को आगे जा कर भुगतना था, इसकी कल्पना करने की क्षमता जयप्रकाशजी में नहीं थी! अभी इस आन्दोलन की सम्यक समीक्षा होना बाकी है, लकिन मैं २००३ के दिसम्बर महीने में एक साथ तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद रांची के अपने मित्र, जे.पी. आन्दोलन के पहले दौर के कार्यकर्ता, पत्रकार फैसल अनुराग की बात भूल नहीं पाता हूँ. उन्होंने बड़ी तकलीफ के साथ कहा कि मैं अब सार्वजनिक रूप से यह कहने को तैयार हूँ की जे.पी. आंदोलन एक बहुत बड़ी भूल का शिकार था.
Continue reading जे पी आन्दोलन की भूल