जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय – जे. एन.यू. में एक छात्र द्वारा अपनी सहपाठिनी पर प्राणघातक हमले और आत्महत्या की घटना ने विश्वविद्यालय के अलावा बाहरी दुनिया को भी हिला दिया है.जे.एन.यू. के शिक्षक और छात्र आत्मनिरीक्षण कर रहे हैं.आखिर जे.एन.यू. में, जो उदारवादी, ‘कॉस्मोपौलिटन’मूल्यों का परिसर माना जाता है, ऐसी घटना हो ही कैसे सकती थी! अनेक लोगों को बरसों पहले लिखी उदय प्रकाश की कहानी ‘ रामसजीवन की प्रेम कथा’ की याद हो आई. कहानी की पृष्ठभूमि में जे.ने.यू. के परिसर का जीवन ही है. गाँव से आया और दिल्ली से चौंधियाया हुआ रामसजीवन एक अंग्रेज़ी माध्यम के परिवेश से आई छात्रा के इर्द-गिर्द प्रेम की एक फंतासी बुन लेता है और उसे सच मानने लगता है. कहानी के विस्तार में जाने की ज़रूरत यहाँ नहीं है, लेकिन उसमें एक चेतावनी तो थी जिसे ठीक से सुना नहीं गया. उसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है: परिसर को अपने आप में उदार, आधुनिक मूल्यों का वाहक मानना भ्रामक स्थितियों को जन्म दे सकता है. जे. एन.यू. में ही अनेक प्रकार के सामाजिक स्तर हैं और ऐसा नहीं कि वहाँ की शिक्षा इन्हें कमज़ोर ही करती हो. वे और सख्त भी होते जा सकते हैं. ये स्तर आर्थिक कारणों से लेकर भाषाई सम्पन्नता तक से जुड़े हुए हो सकते हैं. मसलन अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों का एक अलग वर्ग-स्वभाव अपने आप ही बन जाता है. उससे बाहर रह गए छात्रों में वंचित रह जाने की भावना हिंसा को जन्म दे सकती है. दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि अपनी भाषाई और वर्गपृष्ठभूमि का अतिक्रमण करने की सम्भावना यहाँ दिखलाई पड़ने लगती है और इसलिए उससे मुक्त होने की आकांक्षा उसी पृष्ठभूमि के छात्र मित्रों से अलगाव भी पैदा कर सकती है. इसके कारण भी हिंसा जन्म ले सकती है. हमेशा वह व्यक्त ही हो, आवश्यक नहीं. अव्यक्त रूप में रह कर भी वह व्यक्तित्व को विकृत कर सकती है. Continue reading परिसर, प्रेम और हिंसा : अपूर्वानंद