This is the text of a pamphlet released by the PASMANDA INTELLECTUALS FORUM, Lucknow. It comes to us via Khalid Anis Ansari
पसमांदा समाज की मुख्य माँगें
हमने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव, 2012 के मद्देनज़र पसमांदा (दलित और पिछड़े) मुसलमानों की पांच बड़ी मांगें तय की हैं. आइए, आगे बढ़ने से पहले हम इन मांगों पर नज़र डालें:
- पसमांदा मुसलमानों की उत्तर प्रदेश में 15% आबादी है. इस कारण सारी पार्टियां उनकी आबादी के हिसाब से टिकट दें;
- सवर्ण (अशराफ) मुसलमानों को सर्वोच्च न्यायालय के मंडल (इंदिरा साहनी) फैसले (1992) के तहत आरक्षण की परिधि से बाहर रखा जाये क्योंकि वह संविधान केअनुच्छेद 16 (4) और 15 (4) के तहत ‘सामाजिक और शैक्षिक’ तौर पर पिछड़े तबके नहीं माने जा सकते हैं;
- केन्द्र और उत्तर प्रदेश की ओबीसी लिस्ट को बिहार फार्मूले के तहत पिछड़ा वर्ग और अति-पिछड़ा वर्ग में विभाजित किया जाये और सारे पिछड़े मुसलमानों को सामानांतर रूप से पिछड़ी हिंदू जातियों के साथ अति-पिछड़ा श्रेणी में विधिवत शामिल किया जाये;
- दलित मुसलमानों / ईसाइयों को 1950 के राष्ट्रपति आदेश (पैरा 3) को रद्द कर के एससी लिस्ट में शामिल किया जाये;
- भूमंडलीकरण और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते पसमांदा समाज के कारीगर/दस्तकार/मजदूर तबकों और लघु-उद्योग की बर्बादी को रोका जाए और उनको फिर से पटरी पर लाने वास्ते उचित नीतियां बनाई जाएँ.
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