दुश्मन कौन है? : एक चिट्ठी विक्रम सिंह चौहान के नाम

अतिथि लेखक:सरोज गिरी और कमल नयन चौबे

प्रिय विक्रम सिंह चौहान जी,

हमने समाचार माध्यमों में आपके बारे में काफी पढ़ा है. आज के दौर में सब अपने बारे में सोचते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि  आप इन सब से ऊपर उठकर देश के बारे में सोच रहे हैं. आपने जो कुछ भी किया, अपने लिए नहीं किया। शायद आपको यह लग रहा है कि  हमारे देश और समाज में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। आपके गुस्से में हम सिर्फ गुस्सा नहीं देखते हैं बल्कि ऐसा लग रहा है कि आप बहुत छटपटाहट में हैं, आप बेचैन हैं।जो हो रहा है वो आपको बिलकुल मंजूर नहीं है. जब टीवी पत्रकार आपसे पूछ रहे थे कि क्या आपने कन्हैया की पिटाई की है तो आपने इस बिलकुल ही इंकार नहीं किया। आपने और ओपी शर्मा दोनों ने यह कहा कि अगर आप लोगों को दुबारा ऐसा करना पड़े तो आप फिर से ऐसा करेंगे।

ऐसा लगता है कि आप जो कर रहे हैं उसमें आपका दृढ़ विश्वास है. शायद आप यह भी महसूस करते हैं कि  देश में बहुत दिवालियापन है,भ्रष्टाचार है और राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का वंशवाद हावी है. आपको यह भी लगता होगा कि  देश में ऐसा बहुत सा काम हो रहा है जो देश के खिलाफ है; और यहाँ जो अंग्रेजी बोलने वाले और सूट बूट पहनने वाले लोग हैं वे  सिर्फ अपने स्वार्थ की बात करते हैं. शायद आपको यह लगता है कि  ये लोग अपने ही देश के विरुद्ध हैं. अधिकांश लोग आपके द्वारा की गई हिंसा को गैरकानूनी मानते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं , लेकिन हम सिर्फ इस आधार पर आपकी कार्रवाई को गलत नहीं मानते। इंसान कानून को बनता है न कि कानून इंसान को. इसलिए कानून का उल्लंघन किया जा सकता है. हम इंसानियत के नाते आपसे चंद बातें कहना चाहते हैं.

विक्रम जी, हमें आपके गुस्से से खास ऐतराज नहीं है. लेकिन असली सवाल यह है कि आप जिसे दुश्मन मान रहे हैं, वह कौन है? हम कैसे चिह्नित करेंगे कि किसके चलते इस देश की ऐसी दुर्दशा हुई है.हमें  ऐसा लगता है कि आपने जिसे दुश्मन माना है,वह दुश्मन नहीं है.दुश्मन कोई और है. यहीं हमारे और आपके बीच एक गंभीर और स्पष्ट फर्क हो जाता है.

आप लोगों  ने अदालत परिसर में जिस कन्हैया की पिटाई की,वह एक गरीब परिवार से आता है और आपकी तरह उसे भी अपने देश से प्यार है. आप  “भारत की बर्बादी” के नारे नहीं सुन सकते और ऐसा नारा लगाने वालों को खुद ही सजा देने के लिए तैयार हो जाते हैं; कन्हैया और उसके जैसे कई अन्य भी देश में गरीबी, भुखमरी, निरक्षरता, छुआछूत, जाति आधारित भेदभाव और औरतों के साथ  होने वाली ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाते हैं. उनकी आज़ादी का नारा देश को तोड़ने के लिए नहीं बल्कि इसे हर तरह की बुराई से मुक्त करने के लिए है. कन्हैया जैसे युवा कचरा बीनते और किसी ढाबे में बर्तन साफ करते बच्चों को देखकर, भीख मांगती औरतों को देखकर और समाज में बढ़ रही विषमता को देखकर परेशान होते हैं. वे सरकार की गरीब विरोधी नीतियों की मुख़ालफ़त करते हैं- यू जी सी  द्वारा वजीफा बंद करने के खिलाफ उनका संघर्ष इसकी एक मिसाल है. वे हाशिए  पर पड़े हर समूह के गुस्से और शिकायत को अभियक्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करना चाहते हैं.

विक्रम जी, क्या आपने नवीन जिंदल का नाम सुना है? आप जरूर उनके बड़े प्रशंसक होंगे  क्योंकि उन्होंने अदालत में कानूनी लड़ाई लड़कर आम जनता को तिरंगा फहराने का हक़ दिलवाया. लेकिन शायद आपको यह खबर नहीं होगी कि उन्ही की कंपनियों ने देश के संसाधनों को जमकर लूटा है और आदिवासियों को विस्थापित किया है. वही आदिवासी जब इस  शोषण की खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उन्हें देशद्रोही करार दिया जाता है, देशभक्ति का नारा देकर उनके विरुद्ध हिंसा की जाती है और  आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है. क्या आपने छत्तीसगढ़ का नाम सुना है? जिंदल और उनके जैसे अन्य पूंजीपति गरीबों से गरीबों को लड़ते हैं. वे हनुमंत्थप्पा जैसे जवानों की क़ुरबानी का उपयोग विरोध की हर आवाज को दबाने के लिए करते हैं. क्या यह देश की बर्बादी नहीं है? क्या आपको इसका विरोध नहीं करना चाहिए?

आपकी तरह देश का निम्न मध्य वर्ग और गरीब तबका जिंदगी की तमाम मुश्किलों से जूझ रहा है. बच्चों की शिक्षा, परिवार के सेहत की देखभाल, दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती महंगाई से संघर्ष और अपनों के तमाम छोटे बड़े सपनों को पूरा करने की चाह- शायद यही उसकी जिंदगी का कुल सार है. अगर हम एक ऐसे समाज के लिए काम करें जहाँ अमीर और गरीब के बीच खाई काम हो,किसी उद्योगपति को करोड़ों रुपये के टैक्स की माफी न मिले, जहाँ पूँजीपतियों को प्राकृतिक संसाधनों की लूट और आदिवासियों के शोषण की छूट न हो, जहाँ कोई दलित छात्र इसलिए आत्महत्या न करे कि उसके साथ हर स्तर पर जातिगत भेदभाव किया जा रहा है, जहाँ लड़कियाँ भी पुरुषों की भांति अपने सपनों को साकार करने के लिए काम कर पाएँ, तो निश्चित रूप से यह आज की प्रचलित देशभक्ति के दायरे से बाहर होगा.

देशभक्ति सिर्फ देश को तोड़ने की बात पर आक्रोशित होने से ही सम्बंधित नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि  जिसे इस बात से नाराजगी है उसके भीतर देश प्रेम का कुछ तत्व जरूर है. जरुरत इस बात की है कि हम सब इस भावना की इज्जत करते हुए देशभक्ति को देश के लोगों और उनके दुःख दर्द को समझने के रूप में भी देखें।  अगर हमारे देश के लोग हमारे सामने अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करेंगे तो फिर कहाँ करेंगे? अगर हम उनसे सहमत न भी हों तो भी उन्हें बोलने का हक़ होना चाहिए और हमे उनकी बातें सुननी चाहिए। जेनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में कन्हैया कुमार और अन्य छात्रों ने कश्मीरी छात्रों के सभा करने के अधिकार की हिफाजत करने की कोशिश की.

क्या यह सच नहीं है कि कश्मीर का एक बड़ा तबका हम हिन्दुस्तानियों और हमारी सेना को शोषक के रूप में देखता है?क्या यह सच नहीं है कि कश्मीर घाटी के लोगों में भारत के प्रति नाराजगी है और उनमें से कई भारत से आजादी भी चाहते हैं? जो लोग किसी भी कारन से खुद को अलग-थलग पाते हैं और और देश से अलग होने की मांग करते हैं क्या उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करना जुर्म है? सोचिए, अगर हमारे देश से नाराज लोग इसलिए खामोश रहते हैं कि उन्हें बोलने पर सजा मिलेगी तो हमारे देश का स्वरूप कैसा हो जायेगा?

विक्रम जी, क्या देशभक्ति देश की ‘बर्बादी’ के लिए लगाए गए कुछ बुरे नारों का ठीकरा किसी अन्य के सर पर थोपे जाने का नाम है? क्या देशभक्ति का अर्थ यह है कि एक पूरे विश्वविद्यालय को देश विरोधी गतिविधियों का गढ़ घोषित करके उसके खिलाफत लगात्र जहर उगला जाये और पूरे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा की जाए? क्या देशभक्ति पारस्परिक सद्भाव, विद्रोही विचारों के प्रति एक न्यूनतम सहिष्णुता और माप कर देने की भावना से बिलकुल ही अलग है? देश को खतरा चंद नारों से नहीं है. निश्चित रूप से देश को तोड़ने की बात करने वाले नारे वाहियात हैं. लेकिन अब वक़्त आ चुका  है कि  देशभक्ति के नाम पर उद्वेलित होने वाले आप जैसे युवकों का समूह यह तय  करे कि देश के लिए बड़ा खतरा क्या है- दस-पंद्रह लोगों द्वारा लगाये गए नारे या देश में लूट और भ्रष्टाचार की संस्कृति?

हमारी यही कामना है कि आप अपनी देशभक्ति और बिहार, ओड़िसा, कश्मीर, आदि राज्यों से आपके जैसी या आपसे भी पिछड़ी आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि के  छात्र-छात्रों के साध्य और साधन पर फिर से विचार करें। हमें यह लगता है कि आप और आप जैसे युवाओं के भीतर भी एक  समतावादी समाज बनाने का सपना कुंडली मार कर बैठा हुआ है.

शुभकामनाओं के साथ,

सरोज गिरी

कमल नयन चौबे

 

(सरोज गिरी दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग  में और कमल नयन चौबे सिंह कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं )

 

 

 

 

 

3 thoughts on “दुश्मन कौन है? : एक चिट्ठी विक्रम सिंह चौहान के नाम”

  1. “…Yeh gumnam rahi … Yeh sikkon ki jhankaar
    Yeh badnam bazaar ….
    Yeh kismet ki saudey … Yeh saudoon ki takrar…
    Jinhey naaz hai woh hind par kaahan hair ”
    (Some lines from SAHIR lyrics in ‘Pyasa’ with minor alterations)’

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  2. l absolutely agree with the views of letter. But in my opinion Vikram ji unable to understand the views of the letter because of his biased selfish and ambitious thoughts .

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  3. बहुत खूब! काश विक्रम सिंह चौहान और उसके साथी इस चिट्ठी को पढ़ें। मैं उनके प्रशंसक कुछ वकीलों को यह लिंक भेज रही हूँ।

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