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जोश मलीहाबादी की एक नज़्म – आज के नाम

जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘रिश्वत’ के कुछ टुकड़े, इस स्वाधीनता दिवस के नाम.

[Apologies for some missing nuqtas, despite my best efforts.]

लोग हमसे रोज कहते हैं ये आदत छोडिये
ये तिजारत है खिलाफे-आदमियत छोडिये
इससे बदतर लत नहीं है कोई, ये लत छोडिये
रोज अखबारों में छपता है की रिश्वत छोडिये

भूल कर भी जो कोई लेता है रिश्वत, चोर है
आज कौमी पागलों में रात-दिन ये शोर है. Continue reading जोश मलीहाबादी की एक नज़्म – आज के नाम