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भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादत पर डा अम्बेडकर

(Dr. Ambedkar’s editorial on Bhagat Singh-Rajguru-Sukhdev execution on 13th April 1931-available in English here – http://www.bhagatsinghstudy.blogspot.in/2016/03/dr-ambedkars-editorial-on-bhagat-singh.html)
समसामयिक विचार
(जनता, 13 अप्रैल 1931)
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू इन तीनों को अन्ततः फांसी पर लटका दिया गया। इन तीनों पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने सान्डर्स नामक अंग्रेजी अफसर और चमनसिंह नामक सिख पुलिस अधिकारी की लाहौर में हत्या की। इसके अलावा बनारस में किसी पुलिस अधिकारी की हत्या का आरोप, असेम्ब्ली में बम फेंकने का आरोप और मौलमिया नामक गांव में एक मकान पर डकैती डाल कर वहां लूटपाट एवं मकानमालिक की हत्या करने जैसे तीन चार आरोप भी उन पर लगे। इनमें से असेम्ब्ली में बम फेंकने का आरोप भगतसिंह ने खुद कबूल किया था और इसके लिए उसे और बटुकेश्वर दत्त नामक उनके एक सहायक दोस्त को उमर कैद के तौर पर काला पानी की सज़ा सुनायी गयी। सांडर्स की हत्या भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों ने की ऐसी स्वीकारोक्ति जयगोपाल नामक भगतसिंह के दूसरे सहयोगी ने भी की थी और उसी बुनियाद पर सरकार ने भगतसिंह के खिलाफ मुकदमा कायम किया था। इस मुकदमें में तीनों ने भाग नहीं लिया था। हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों के स्पेशल ट्रीब्युनल का गठन करके  उनके सामने यह मुकदमा चला और उन तीनों ने इन्हें दोषी घोषित किया और उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी। इस सज़ा पर अमल न हो और फांसी के बजाय उन्हें अधिक से अधिक काला पानी की सज़ा सुनायी जाए ऐसी गुजारिश के साथ भगतसिंह के पिता ने राजा और वायसराय के यहां दरखास्त भी दी । अनेक बड़े बड़े नेताओं ने और तमाम अन्य लोगों ने भगतसिंह को इस तरह सज़ा न दी जाए इसे लेकर सरकार से अपील भी की। गांधीजी और लॉर्ड इरविन के बीच चली आपसी चर्चाओं में भी भगतसिंह की फांसी की सज़ा का मसला अवश्य उठा होगा और लार्ड इरविन ने भले ही मैं भगतसिंह की जान बचाउंगा ऐसा ठोस वायदा गांधीजी से न किया हो, मगर लार्ड इरविन इस सन्दर्भ में पूरी कोशिश करेंगे और अपने अधिकारों के दायरे में इन तीनों की जान बचाएंगे ऐसी उम्मीद गांधीजी के भाषण से पैदा हुई थी। मगर यह सभी उम्मीदें, अनुमान और गुजारिशें गलत साबित हुई और बीते 23 मार्च को शाम 7 बजे इन तीनांे को लाहौर सेन्ट्रल  जेल में फांसी दी गयी। ‘ हमारी जान बकश दें’ ऐसी दया की अपील इन तीनों में से किसी ने भी नहीं की थी; हां, फांसी की सूली पर चढ़ाने के बजाए हमें गोलियों से उड़ा दिया जाए ऐसी इच्छा भगतसिंह ने प्रगट की थी, ऐसी ख़बरें अवश्य आयी हैं। मगर उनकी इस आखरी इच्छा का भी सम्मान नहीं किया गया। न्यायाधीश के आदेश पर हुबहू अमल किया गया ! ‘अंतिम सांस तक फांसी पर लटका दें’ यही निर्णय जज ने सुनाया था। अगर गोलियों से उड़ा दिया जाता तो इस निर्णय पर शाब्दिक अमल नहीं माना जाता। न्यायदेवता के निर्णय पर बिल्कुल शाब्दिक अर्थों में हुबहू अमल किया गया और उसके कथनानुसार ही इन तीनों को शिकार बनाया गया।

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