This guest post by RAM KUMAR is a review of five years of Mayawati’s administration in Uttar Pradesh. An English translation has appeared in Fountain Ink magazine, here.
मुख्यमंत्री मायावती जी को 2007 में मिला स्पष्ट जनादेश महज मुलायम सिंह यादव के खिलाफ एन्टी-इनकमवंसी फैक्टर ही नहीं था, बलिक अराजकता और गुंडागर्दी के खिलाफ भी जनादेश था। सरकार का खुले रूप से एन्टी-दलित चरित्र और प्रदेश के अन्दर सरकार के एन्टी ब्राहम्ण टोन के चलते प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार के खिलाफ दलित अति पिछड़े हो गये थे। मुलायम सिंह के कल्याण सिंह प्रेम की वजह से माइनारिटी (अल्पसंख्यक) भी मुलायम से नाराज हो गए। बहन जी ने सर्वजन समाज का नारा देकर विक्षुब्द तबकों को समेटा। सभी को समेटने में रणनीति के तहत अपना नारा बदल “हाथी नहीं गणेष है ब्रम्हा, विष्णु, महेष है” का नारा लगाया। सर्वजन फार्मूला और मुलायम के खिलाफ गुस्सा बहन जी को पूर्ण बहुमत से सत्ता में लेकर के आया।
बहन जी एक सशक्त शासनकर्ता के रूप में जानी जाती थीं। इस बार भी बहन जी सत्ता में आयींऔर सत्ता में आते ही तुरन्त उन्होनें घोषणा की कि अराजकता और गुडागर्दी नहीं चलेगी, कानून का राज्य चलेगा। इसको सिद्ध करने के लिये उन्होंने सबसे पहले जो राजनेता अपने साथ बहुत सारे शस्त्रधारियों को लेकर चलते थे, उन पर प्रतिबंध लगाया और एलान किया कि कोई भी नेता सार्वजनिक स्थल पर तीन हथियार से ज्यादा में दिखे तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी। यही नहीं अपनी पार्टी के एम. पी. रमाकान्त यादव जो आजमगढ़ से हैं, एक गरीब मुसिलम के मकान पर जमीन कबजाने के चक्कर में जबरदस्ती बुलडोजर चलवाया इसकी खबर जब बहन जी को लगी उन्होंने रमाकान्त यादव को अपने मुख्यमंत्री आवास पर मिलने के लिये बुलाया और वहीं से उनको गिरफ्तार करवाया। यह संदेश देने की कोशिशकी कि सत्ताधारी दल के हों या विपक्षी पाटी के हों, कानून सबके लिये समान है। अपनी ही सरकार के खाधमंत्री और विधायक आनन्द सेन को एक महिला के अपहरण केस में बर्खास्त कर जेल भिजवाया और अभी तक 26 प्रभावशाली नेता एवं मंत्रियों को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। पिछली सरकार में हुयी 17,868 पुलिस जवानों की भर्ती में हुयी धांधली के चलते भर्ती प्रक्रिया को निरस्त किया और 25 आई .पी.एस. अधिकारियों को भी सस्पेन्ड किया।
बहन जी को 2007 में अभूतपूर्व बहुमत मिला जिसके चलते उनकी राजनैतिक महत्वाकाक्षां और बढ़ गयी और देश का प्रधानमंत्री बनने की उनकी लालसा जग गयी। अपनी इसी महत्वाकांक्षा के चलते प्रदेश में कानून व्यव्स्था ठीक करने की बात तो की थी, लेकिन दूसरी ओर एस.सी.एस.टी एक्ट को बेअसर करने की प्रक्रिया शुरू की। एस.सी. एस.टी एक्ट एक केंद्रीय कानून है और प्रदेश सरकार उसमें परिवर्तन नहीं कर सकती। लेकिन नयी सरकार बनते ही बहन जी ने एक गर्वमेन्ट आर्डर जारी किया। इस आर्डर के मुताबिक अब दलितो पर हुयी घटनाओं पर तुरन्त एफ.आइ.आर. न दर्ज की जाये बल्कि जाँच की जाये और शिकायत सही पाने पर ही एफ.आइ .आर. लगायी जाये। यह गर्वमेन्ट आर्डर एस.सी.एस.टी. एक्ट की मूल भावनाओं के खिलाफ था। इसका नतीजा यह हुआ कि प्रदेश के अन्दर दलित उत्पीड़न अचानक बढ़ गया और जब दलित थाने में अपनी एफ.आई. आर. लिखाने जाते थे तो थाने में एफ.आइ.आर. लिखने के बजाये उनको समझौता करने को कहा करता था। यह कहा जाता था कि अगर मुकदमा लिख देंगे तो सर्वजन समाज नराज हो जायेगा और बहन जी का प्रधानमंत्री बनने के मिशन को धक्का लगेगा। इसलिये समझौता कर लो, और 2009 में बहन जी को प्रधानमंत्री बनाने के मिशन में लग जाओ। इस आर्डर के चलते बहन जी के दलित वोट के अन्दर काफी हताशा आयी। 2009 में जब लोकसभा चुनाव आया तो में बहन जी ने 80 सीटों में से 60 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा विषिष्ट राजनैतिक सलाहकारों की सलाह मानकर, कानून व्यवस्था को दुरूस्त करने की अपनी बात को बेअसर करते हुये कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाने वाले 24 माफिया नेताओं, गुण्डों को टिकट दिया। जिनमें मुख्तार अंसारी, अफजार अंसारी, धनन्जय सिंह, डी.पी.यादव, अन्ना भइया जैसे प्रमुख माफिया हैं। उनके राजनैतिक सलहाकारों का आकलन था कि यह गुण्डे अपने बाहुबल के ऊपर चुनाव जीत करके आ जायेंगे, और लोकसभा में बसपा कम से कम 60 सीटों के साथ पहुचेगी। 24 में से 21 माफिया हार गये और कुल मिलाकर पिछले लोकसभा में जो 20 सदस्यों की स्थिति थी उसी स्थिति पर बहन जी को संतोष करना पड़ा। दलित इस कदर उदासीन हो गया था कि चुनाव के दौरान बहन जी के बारबार अपील करने के बावजूद भी लोग उनको वोट करने नहीं गये। और बहन जी की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा, इच्छा ही रह गयी।
लेकिन प्रशासक के रूप में बहन जी का तेवर हमेशा उग्र रहा है और उन्होंने समझौता नहीं किया। उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत द्वारा एक जन सभा में जिसमें, अजीत सिह भी मौजूद थे बहन जी को भददी-भददी गालियां दी। बहन जी ने टिकैत की गिरफ्तारी का आदेश दिया। टिकैत बिजनौर से मजबूत आधार वाले अपने गांव सिसौली (मुजफ्फर नगर) लौट आया। गांव की घेराबन्दी कर दी गयी। पानी बिजली काट दी गई। अन्त में टिकैत ने माफी मांगी और गिरफ्तार कर लिया गया।
बहन जी जब भी सत्ता में आती हैं सत्ता में आते ही उनके इर्दगिर्द एक चाटूकार ब्यूरोक्रेटों की जमात इकटठा हो जाती है. बहन जी का उन चाटूकार ब्यूरोक्रेट के प्रति अगाध विश्वास रहता है। जिसके चलते वो पूर्णरूप से पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं के पास जो सत्ता की ताकत रहनी चाहिये वो नहीं रहती है। हर नेता और कार्यकर्ता को यह आदेश रहता है कि किसी भी ब्यूरोक्रेट के साथ तेज आवाज में या अभद्रता से बात नहीं करेगा। जिसके चलते इनके कार्यकर्ता और नेता सब अफसरों के पिछलग्गू बने रहते हैं और जनता के बीच एक दलाली किया करते हैं। इसकी वजह यह है कि बहन जी अपनी पार्टी के अन्दर कोई दूसरी लाइन का सशक्त नेता खड़ा न होने पाये इसके प्रति सजग रहती हैं, ताकि उनको किसी प्रकार की कोई चुनौती न मिल पाये। उनको भरोसा है कि प्रदेश की जितनी भी जनता है वह सीधे हमारे साथ जुड़ी हुयी है। और जब जरूरत पड़ेगी हम बड़ी रैली बुलकार जनता से सीधे सम्वाद करेंगे। उनकी इस रणनीति के चलते ही बाबू सिंह कुशवाहा बहुत महत्वपूर्ण मंत्री होते हुये सत्ता से बाहर निकालने में एक सेकेण्ड का भी वक्त नहीं लगा। सत्ता से बाहर आते ही उनके पास सन्तावना देने के लिये कोई भी नहीं आया। कल तक जो बहुत करीबी थे सत्ता से बाहर निकलते ही वो सब अजनबी बन गये। अलग-अलग जातियों के संगठन बनाकर एक दूसरी जातियों के साथ इस बार भाईचारा को बनाये रखने के लिये भाईचारा कमेटियों का भी निर्माण उन्होंने किया ।
बहन जी की सरकार ने अपने इस कार्यकाल में 484 विकास योजनाओं को प्रारम्भ किया। उनकी दो महत्वाकांक्षी योजनायें गंगा एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे किसानो के भारी प्रतिरोध के चलते सफल नहीं हो सकी । इसके साथ-साथ उन्होंने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले शहरी लोगों के लिये कांशीराम आवास योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना में सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को ही नही बलिक सभी जातियों को इसका लाभ मिला और इसकी काफी सराहना हुई। इसके अलावा प्रदेश में मांग और पूर्ति के बीच 600 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की आवश्यकता है इसके लिये उन्होंने बिजली परियोजना का भी शुभारंभ किया। अल्पसंख्यकों के लिये कांशीराम अरबी,फारसी विष्वविधालय खुलवाये। और लड़कियों के लिये सावित्री बाई फुले बालिका योजना की शुरूआत की जिसके अन्तर्गत 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्राओं को एक साइकिल और 10,000 रू0 दिये जाते हैं। और 12 वीं कक्षा में पहुंचते ही 15,000 दिये जाते हैं। इसके लिये प्रदेश में उन्होंने लगभग साढ़े 500 से जादा बालिका विधालय भी खुलवाये।
सुप्रिम कोर्ट द्वारा मिड-डे-मील में गांव की विधवा एवं दलित महिला को प्राथमिकता पर रखा जायेगा। दूसरे नं. पर पिछडी बिरादरी और तीसरे नं. पर सामान्य बिरादरी की महिला को रखा जायेगा। लेकिन उत्तर प्रदेष में बहन जी के सत्ता सम्भालने के बाद अचानक गांव में दलित महिलाओं के खाना पकाने को लेकर के पूरे प्रदेश में विरोध की बाढ़ आ गयी। जिसको लेकर उम्मीद थी कि बहन जी एक सशक्त शासन के रूप में सुप्रिम कोर्ट के आडर को लागू करेंगीं और लाखों दलित महिलाओं के रोजगार को सुरक्षित रखेंगी। लेकिन इस आशा के विपरीत बहन जी ने फिर एक सरकारी आदेश जारी किया जिसमें अनुसूचित जाति की महिला की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। बहन जी के इस कदम से बहुत बड़ा तबका अपने आपको ढगा सा महसूस करने लग गया।
पिछली सरकार भ्रष्टाचार में आकण्ठ तक डूबी थी पर उस सरकार में भ्रष्टाचार बहुकेनिद्रत था। बहन जी के सत्ता सम्भालने के बाद भ्रष्टाचार का और ब्यूरोके्रटों को खुले आम लूट का मौका मिल गया। जिसका उदाहरण एन.एच.आर.एम में बड़े पैमाने पर हुयी लूट का मामला सबके सामने है जिसमें सी.बी.आई. जांच चल रही है। उसमें कुछ महत्वपूर्ण नेताओं के साथ-साथ बड़ी लम्बी फेहरिस्त व्यूरोके्रटस की शामिल है। दूसरा उदाहरण मनरेगा से लिया जा सकता है कि 100 दिन रोजगार की गारण्टी की बात कही गयी। उत्तर प्रदेश में कर्मचारी और ब्यूरोक्रेटस ने मिलकर एक व्यकित को एक महीन में 150 दिन का रोजगार उपलब्ध करा दिया। यह जनता के लिये चलायी जा रही कल्याणकारी योजनायें और उनकी खुले आम लूट का उदाहरण है।
सर्वजन समाज के नाम पर उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सत्ता में, ब्राहम्ण समाज के समस्त अधिकारी, कर्मचारी और नेताओं को, पूरी तरह से लूट का लाइसेन्स मिल गया। यह सर्वजन समाज की एकता केवल सत्ता में भागीदारी और हिस्सेदारी के लिये हुयी, न कि यह सर्वजन समाज की एकता समाज में किसी प्रकार की एकता लाती हुयी नहीं दिख रही है।
इसके अलावा बहन जी लगातार देश के सभी राजनेताओं के निशाने पर पार्को के निर्माण को लेकर रही हैं। बहन जी पर बार-बार यह इल्जाम लगाया जाता है कि उन्होंने गरीबों का पैसा बड़े-बड़े पार्क निर्माण और हाथियों के निर्माण पर लगाया है। लेकिन बहन जी इस बात को लेकर बिलकुल भी विचलित नहीं हुयी। इन पार्को का निर्माण ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखा जाना चाहिये। मौर्य वंश के बाद, ब्राहम्णवादी सत्ता और शासन का दौर चला, जिसमें पूरी तौर से शूद्र शासन के अवशेषों को समाप्त करने की प्रकिया को चलाया गया, ताकि इतिहास में कहीं पर भी कोई अब्राहम्णवादी अवशेष न बचें । बहन जी इन पार्को के निर्माण में पुराने प्रतिबिम्बों की पुर्नस्थापना कर रहीं हैं जिसका ब्राहम्णवादी सोच के लोग खुलकर विरोध कर रहें हैं, क्योंकि यह इतिहास के पुर्नस्थापना का संघर्ष है। बहन जी अगर इस पैसों को विकास कार्यों में लगा दें तो कितना विकास होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। लेकिन प्रेरणा स्थलों का, इन ब्रहम्णवाद के खिलाफ लगातार संघर्ष के जो पुरोधा थे उनकी स्थापना करना, और सदियों से दबी कुचली और अपमानों में जी रही वंचित जनता के बीच एक स्वाभिमान पैदा करना यह स्थापित करना कि हमारा भी गौरवपूर्ण इतिहास रहा है और हम लगातार जो हीन भावना के शिकार है इससे मुक्त होकर अपनी गौरवशाली परम्परा की तरफ आगे बढ़े। बहन जी द्वारा किये गये इस कार्य से उनको इतिहास में भी याद रखा जायेगा और यह पार्क और मूर्तियां आने वाले दिनों में दलितों और वंचितों के सम्मान और स्वाभिमान के प्रेरणा केन्द्र के रूप में जाने जायेंगे।
कुल मिला कर बहन जी का पांच साल का शासन काल दुविधाओं और स्वविरोधी निर्णयों का रहा है। उन्हें एक तरफ वंचितों और दलितों की भावनात्मक मांग को पूरा करना तो दूसरी ओर उनकी आर्थिक सिथति को भी ठीक करना था। लेकिन सत्ता के सन्तुलन और ऊचे वर्गों के उस पर नियंत्रण ने उनको कई स्तर पर विरोधाभासी निर्णय लेने के लिये बाध्य किया लेकिन इतिहास में उनका काल एक महत्वपूर्ण घटना प्रधान काल के रूप में जाना जायेगा।
(राम कुमार लखनऊ स्थित डायनैमिक एक्षन ग्रुप (डग) के संयोजक है। Ram Kumar is convenor of the Lucknow-based Dynamic Action Group (DAG), a Dalit rights organisation.)
From Kafila archives:
- February 2012: An Election in Sarvajan Samaj
- December 2010: History in Stone and Metal
- May 2009: UP’s Dalits remind Mayawati – Democracy is a Beautiful Thing
- May 2009: Rahul Gandhi and the Dalit votebank in Uttar Pradesh
- June 2007: The meaning of Mayawati for the Dalit movement: Chittibabu Padavala
- May 2007: Why Hindol Sengupta Needn’t Fear Mayawati
See also:
- The untold stories of a political process
- September 2007: On the first three months of Mayawati’s government
- March 2007: The Elephant Paradox
- March 2007: On the BSP’s silence on atrocities against Dalits
- March 2007: In Praise of Idol Worship
- April 2007: Behenji’s Brahmin Gamble
- April 2009: The Edifice Complex
कृपया मायावती का प्रचार करना बंद करें, उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में तीन सीएम ओ की जेल में हत्या हुई और स्वस्थ्य विभाग में बड़ा घोटाला हुआ, राज्य भर में किसानों पर गोलियां चलायी गयी बार बार, सारे घोटालों में सिर्फ मंत्रियों-विधायकों को बर्खास्त करने से उनकी खुद की जिम्मेदारी या मिलीभगत खतम नहीं हो जाती. मायावती दलित पहचान की राजनीति करती हैं जिससे उनकी सरकार की अकर्मण्यता खतम नहीं हो जाती. उन्होंने किसी भी गरीब विरोधी नीति को खतम न करते हुए आगे बढ़ाया. काफिला को चाहिए कि सही मुद्दों पर ध्यान दे, यह मेरी दो टके की राय है.. यह तर्क भी मैं नहीं मानता कि चूंकि बाकी मीडिया कांग्रेसी है इसलिए काफिला को प्रो-बसपा हो जाना चाहिए.
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