महाराष्ट्र का नया कानून और ‘पुलिस राज’ का कसता शिकंजा

[भारत में 1 जुलाई से लागू हुई नई न्‍याय संहिताओं के साथ-साथ महाराष्‍ट्र में एक नया जनसुरक्षा कानून भी आया है। यह कानून उस ‘शहरी नक्‍सल’ के खतरे पर अंकुश के लिए बनाया गया है, जिसके बारे में इस देश का गृह राज्‍यमंत्री संसद में कह चुका है कि गृह मंत्रालय और सरकार की आधिकारिक शब्‍दावली में यह शब्‍द है ही नहीं। ऐसे अनधिकारिक और अपरिभाषित शब्‍दों के नाम पर बनाए जा रहे कानून और की जा रही कार्रवाइयों के मकसद और मंशा पर नजर ..]

ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं जब कोई साधारण सा ट्वीट सामने आ रही वास्तविकता को स्पष्ट शब्दों में रेखांकित कर दे। जानी-मानी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह का 30 जून को किया ट्वीट ऐसा ही था, जिसमें उन्‍होंने अगली सुबह से लागू होने वाले तीन नए फौजदारी कानूनों पर चिंता जाहिर की थी।

इंदिरा जयसिंह के ट्वीट में ‘पुलिस राज’ का रूपक इस बात का संकेत था कि सत्ताधारी केवल ताकत की भाषा समझते हैं। वे न तो संवाद में विश्वास करते हैं और न ही किसी के साथ संवाद करने को तैयार हैं- सिवाय अपने मित्रों के एक चुनिंदा गिरोह के।

इस चिंता में वे अकेली नहीं थीं। अन्य प्रमुख वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस बारे में समान रूप से चिंतित हैं।

ऐसे खतरों को समझते हुए भी उस वक्‍त शायद किसी को इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि इसके आगे भी कुछ और होने वाला है, जिसके संकेत आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने एक भाषण में दे दिए थे। ..उस समय किसी को भी यह अनुमान नहीं था कि इस भाषण के एक महीने के भीतर ही राज्‍य सरकार अर्बन नक्सल के ‘खतरे’ को रोकने के लिए एक विधेयक लेकर आ जाएगी। [ Read the full article here :https://followupstories.com/politics/a-police-state-in-the-becoming-the-maharashtra-special-psa-2024/]

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