भारत-पाकिस्तान की तनातनी पर सीएफडी का वक्तव्य

सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी ने निम्नलिखित बयान 17 मई को नई दिल्ली में जारी किया।

सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी ने पहलगाम में हुए भयानक आतंकी हमले के बाद अपनी चिंता व्यक्त की है कि यह हत्याकांड विश्व शांति के लिए खतरा है और इसके परिणाम स्वरूप, अंतर्राष्ट्रीय कानून के शासन में और अधिक गिरावट आने की संभावना है, इतना ही नहीं, भारत के  लोकतंत्र के लिए  भी गंभीर ख़तरा पैदा हुआ है।

पहलगाम में जो कुछ हुआ, वह निस्संदेह राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आतंक का उपयोग था और स्थानीय कश्मीरी मुसलमानों के नेतृत्व में भारतीय आबादी के सभी वर्गों ने इसकी निंदा की। कश्मीरी मुसलमान पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आए और इस कृत्य के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। हालाँकि, भारत सरकार की प्रतिक्रिया न तो संयमित थी और न ही संतुलित थी, बल्कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार की विचारधारा और घरेलू राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित थी। हालाँकि प्रधान मंत्री  सऊदी अरब की अपनी यात्रा  अधूरी छोड़ कर  वापस आ गए, लेकिन सरकार द्वारा बुलाई गई सभी दलों की बैठक में उपस्थित नहीं रहे। सर्वदलीय बैठक में पहलगाम में हुई सुरक्षा चूक के बारे में खुल कर जानकारी नहीं दी गई, न ही जांच की कोई रूपरेखा घोषित की गई। दोष का ठीकरा तुरंत पाकिस्तान पर फोड़ा गया, साथ ही सिंधु जल संधि को स्थगित करने जैसी कार्रवाई की गई, जिससे कुछ आतंकवादियों की कथित हरकतों के लिए सभी पाकिस्तानी लोगों को सामूहिक सजा दी गई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश करने के लिए आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की साँठगाँठ के  कोई ठोस सबूत जुटाने का प्रयास नहीं किया गया।

इसके बजाय, पाकिस्तान के खिलाफ एकतरफा सैन्य कार्रवाई का रास्ता अपनाया गया। यह बताया गया कि उसका उद्देश्य आतंकवादी ठिकानों पर हमला करना था, ताक़ि आतंकवादी गतिविधि आगे नहीं बढ़ पाए। अफसोस की बात है कि विपक्षी दल भी इस कार्रवाई में सरकार के साथ क़दमताल करने लगे। यहाँ तक ​​कि वामपंथी दल, जिनकी परंपरा युद्ध के विरोध की रही है, उन्होंने भी सरकार की हाँ में हाँ मिलाना मुनासिब समझा। दुनिया भर के अनुभवों से अब तक यह खुलकर सामने आया है कि आतंकवाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई कभी सफल नहीं होती। वास्तव में, भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के विफल युद्ध की नकल कर रही थी। अमेरिका ने आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर अफग़ानिस्तान और इराक पर आक्रमण किया और दोनों का विनाश किया, लेकिन आतंकवाद ख़त्म नहीं हुआ।। ऑपरेशन सिंदूर नाम इस लिए चुना गया कि यह धार्मिक और प्रतिगामी पितृसत्तात्मक सत्त्ता का प्रतीक है। इसका सीधासादा लक्ष्य भारतीय जनता पार्टी का घरेलू राजनीतिक क्षेत्र  था जहाँ देश में बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण बेचैनी पैदा हो रही है, और बिहार के चुनाव  सामने दिख रहे हैं।

शुरू से ही, सैन्य विकल्प खतरे से भरा था क्योंकि जब दो परमाणु शक्तियां एक-दूसरे से सैन्य रूप से भिड़ती हैं, तो न केवल लड़ाई फैलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, और यह फैलाव ही दोनों देशों और क्षेत्र के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है। भारत में  यह आम तौर पर महसूस किया जाता है कि  पाकिस्तान एक अखंड देश नहीं है। वह बुरी तरह से बँटा हुआ है। पाकिस्तान की अवाम और  व्यवसायी भारत के साथ शांति, सामान्य स्थिति और व्यापार चाहते हैं। लेकिन सेना और आईएसआई के कुछ लोग  गैर-राजकीय आतंकवादी समूहों का समर्थन करते हैं जो भारत में हमला करते हैं। अतीत का अनुभव यह रहा है कि जब भी भारत और पाकिस्तान शांति और सामान्य स्थिति बनाने की इच्छा के साथ बातचीत होती है और कुछ प्रगति दिखाई पड़ती है तो एक आतंकवादी घटना होती है जो पूरी प्रक्रिया को पटरी से उतार देती है और इसे फिर से वहीं ला खड़ा कर देती है, जहाँ पहले थे। लेकिन भाजपा-संघ परिवार ने पहलगाम आतंकी हमले का इस्तेमाल विशेष रूप से कश्मीरी मुसलमानों, और आम तौर पर मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक भावना को भड़काने के लिए किया, पूरे देश में उनके खिलाफ शाब्दिक और शारीरिक हमले हुए। युद्ध उन्माद पैदा करने के लिए टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया। इस मोड़ पर, नागरिक संगठनों और भारत-पाकिस्तान  मैत्री समूह विवेक की अकेली आवाज़ थे, जो युद्धविराम, संयम और शांति और संवाद की ओर वापस जाने की सलाह दे रहे थे। गैरजिम्मेदार टीवी एंकरों और सोशल मीडिया के ड्रामेबाज़ों पर लगाम लगाने की कोशिश करना तो दूर, सरकार ने यूट्यूब और कुछ एक्स अकाउंटों सहित उन डिजिटल मीडिया आउटलेट्स पर व्यापक सेंसरशिप की कार्रवाई की, जो गंभीर सवाल पूछ रहे थे और निष्पक्ष रूप से समाचार प्रस्तुत कर रहे थे। युद्ध के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के बहाने यह सेंसरशिप लगाई गई थी।

आतंकी ठिकानों पर तथाकथित सटीक हमले युद्ध में बदल गए, जिसके परिणामस्वरूप सीमा के दोनों ओर नागरिक मारे गये या ज़ख़्मी हुए और संपत्ति का नुकसान हुआ। यह समझ से परे है कि जब पूरे देश में मॉक ड्रिल हो रही थी,  और सरकार अच्छी तरह जानती थी कि हुए भी कि सीमा पार से गोलाबारी हो सकती है, इसके बावजूद, सीमावर्ती गांवों से नागरिक आबादी को क्यों नहीं हटाया गया। जब स्थिति काबू से बाहर जाने लगी, और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं पर हमला कर दिया, तब दोनों के सामने एक ही बात थी कि अपने घरेलू राजनीतिक क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा खोए बिना तनाव कम करने की पहल कौन करेगा। शुरू से ही भारत और पाकिस्तान दोनों ही अमेरिकी नेताओं के लगातार संपर्क में थे, और जो कुछ वे कर रहे थे उसकी क़दम-ब-क़दम अमेरिका को दे रहे थे और उन्हें अपने पक्ष में रखने के लिए खुश कर रहे थे। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, अमेरिका, जिसके उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कुछ देर पहले ही कहा था कि संघर्ष केवल दो देशों – भारत और पाकिस्तान – का मामला है, ने सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों के जरिए अचानक मोड़ ले लिया। राष्ट्रपति ट्रंप, हमेशा अवसरवादी और सच्चाई से हमेशा बचते रहे हैं। उन्होंने यह जानते हुए कि दोनों देशों के सैन्य नेता तनाव कम करने के लिए बातचीत करने जा रहे हैं, घोषणा कर दी कि अमेरिकी मध्यस्थता के जरिए युद्धविराम किया जा रहा है।

ट्रंप की घोषणा के इरादे और समय के कारण  भाजपा  सरकार के नेतृत्व की काफी बदनामी हुई क्योंकि जिस समस्या को हमेशा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षी मामला माना जाता था, उसमें अमेरिका को मध्यस्थ बना दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि युद्धोन्मादी भाजपा समर्थकों ने सोशल मीडिया पर विदेश सचिव और खुद प्रधानमंत्री पर भी निशाना साधा और उन पर भारतीय हितों के साथ गद्दारी करने का आरोप लगाया। इस नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को वापस नहीं लिया गया है, बल्कि उसे रोक दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने एक नया युद्ध सिद्धांत बनाया है कि जब भी भारत की धरती पर कोई आतंकी हमला होगा, तो में जवाबी कार्रवाई के रूप में पाकिस्तान पर हमले किये जाएंगे। इससे ऐसा लगता है कि भारत में निरंतर युद्ध एक ‘आम बात’ बनने जा रहा है, जिसका विश्व शांति और अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र के साथ-साथ भारत के लोकतंत्र पर भी गंभीर असर होगा। युद्ध से बचने और संघर्ष के समाधान के साधन के रूप में संयुक्त राष्ट्र संस्थागत प्रणाली के उपयोग के माध्यम से शांति बनाए रखने पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय सहमति हुई थी लेकिन कई देशों ने संयुक्त राष्ट्र को साथ में लिए बिना अन्य देशों में ग़ैरज़िम्मेदाराना सैनिक हस्तक्षेप कर के इस सहमति को तो बहुत पहले नाकाम बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप  ख़ुद संयुक्त राष्ट्र संगठन  कमजोर हो गया है और अब यूक्रेन में युद्ध और फिलिस्तीन में नरसंहार बिना किसी ओरछोर के चलते रहते हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में “शक्ति ही सत्य है” का सिद्धांत जोर पकड़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का नया  भारतीय युद्ध सिद्धांत वैश्विक संघर्ष के इस रास्ते पर हमें ले जाता है जहाँ शांतिपूर्ण समाधान के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा का निस्संदेह नागरिकों की नागरिक स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्र रूप से काम करने की स्वतंत्रता और विश्वविद्यालयों की आलोचनात्मक रूप से सोचने की स्वायत्तता पर और अधिक अंकुश लगाने के बहाने के रूप में उपयोग किया जाएगा। यह भारत के अंदरूनी लोकतंत्र को और कमजोर करेगा।

भारतीय शासक वर्गों की लंबे समय से दुनिया के इस भाग में अमेरिका के अधीनस्थ सहयोगी के रूप में क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में पहचाने जाने की महत्वाकांक्षा है। यह भाजपा सरकार ने अमेरिकी नेतृत्व वाले क्वाड (QUAD) देशों के समूह के साथ गठबंधन किया है इसीसे यह साफ दिखता है। यह गठबंधन ज़ाहिराना तौर पर चीन का मुकाबला करने के लिए बना है। भाजपा सरकार द्वारा उठाया गया दूसरा महत्वपूर्ण कदम मिलिटरी और उद्योग का गठजोड़ अर्थव्यवस्था का और अधिक मिलिटरीकरण करना है। भारत न केवल हथियारों और आयुधों का सबसे बड़ा आयातक बन गया है, बल्कि भारतीय कॉरपोरेट और  इज़राएल की और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों, के बीच संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से घरेलू स्तर पर हथियारों और आयुधों का उत्पादन करने के लिए एक ठोस कदम भी उठाया जा रहा है। अनुभव से हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था का ऐसा मिलिटरीकरण हर मौक़े पर युद्ध और सैन्य साधनों का उपयोग करने की प्रवृत्ति को मजबूत करेगा। यह हिंदू धर्म का मिलिटरीकरण करना और भारतीय समाज और राज्य को हिंदूवादी बनाना भाजपा और संघ परिवार का लंबे समय से चला आ रहा वैचारिक एजेंडा है, इसके साथ  ये क़दम तालमेल में है। वास्तव में, इसका मतलब राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के नाम पर सभी लोकतांत्रिक असहमति को कुचलना होगा।

  • सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी कश्मीर में स्थिति को हल करने के लिए आतंक के किसी भी इस्तेमाल के खिलाफ दृढ़ता से खड़ा है। हम मानते हैं कि आतंकवाद कम तीव्रता वाला युद्ध है लेकिन इसे युद्ध नहीं है, ऐसा भी बताना आसान है। और हम मानते हैं कि इसका इस्तेमाल राज्य और गैर-राज्य दोनों ही तरह के नेता करते हैं। यह किसी भी तरह से वैध राजनीतिक तरीका नहीं है, बल्कि इसका बिल्कुल उल्टा है।
  • हम सरकार से मांग करते हैं कि वह ऑपरेशन सिंदूर को पूरी तरह से बंद करे, पहलगाम में आतंकी घटना में सुरक्षा चूक की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए  उच्च स्तरीय जांच कराए, और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे।
  • हम सभी नागरिक समाज संगठनों और सभी लोगों से अपील करते हैं कि वे एकतरफा सैन्य कार्रवाई के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाएं और कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में ही समाधान की मांग करें। भारत सरकार को पहलगाम में आतंकी हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के लिए ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ ठोस सबूत इकट्ठा करके पेश करने चाहिए। भारतीय धरती पर सैन्य बल का इस्तेमाल सिर्फ आत्मरक्षा में ही किया जाना चाहिए।
  • सरकार से मांग है कि डिजिटल और सोशल मीडिया पर लगाए गए सभी गैरकानूनी सेंसरशिप को तुरंत वापस लिया जाए और फर्जी खबरें और नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। हम टेलीविजन चैनलों से अपील करते हैं कि वे अपने माध्यम से फैलाए गए युद्ध उन्माद पर आत्मनिरीक्षण करें और अपने लिए एक नई आचार संहिता बनाएं।

आनंद कुमार, अध्यक्ष                                                                                      

शशि शेखर प्रसाद सिंह, महासचिव

सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी (सी एफ डी) का गठन  जयप्रकाश नारायण की अध्यक्षता में नई दिल्ली में अप्रैल, 1974  में आयोजित एक सम्मेलन में  किया गया था।  उस  वक़्त देश राजनीतिक, नैतिक और आर्थिक संकट से झूझ रहा था। सी एफ डी  देश में लोकतंत्र को बचाने और मजबूत करने का प्रयास करता है। यह एक व्यापक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के उच्च उद्देश्यों को  हासिल करने के लिए भी कटिबद्ध है। सी एफ डी उन तमाम लोगों को संगठित करना चाहता है जो सत्ता की राजनीति से दूर रह कर भी स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने में लगे हैं।

We look forward to your comments. Comments are subject to moderation as per our comments policy. They may take some time to appear.