This is a guest post by ISHWAR DOST. Ishwar is a Left activist and journalist. He works with Jansatta.
एक वक़्त था जब नंदीग्राम माकपा के बर्ताव से अचंभे और सदमे में था। आज पूरे बंगाल में बुरी तरह खारिज कर दिए जाने पर माकपा की यही स्थिति है। कभी नंदीग्राम पीड़ित के रूप में उभरा था, आज माकपा और उसके साथ और पीछे खड़ी पार्टियों की पीड़ा समझी जा सकती है। नंदीग्राम और सिंगूर के एक स्थानीय घटना बन कर रह जाने की माकपाई उम्मीद अचानक खत्म हो गई। नतीजे बताते हैं कि नंदीग्राम की पीड़ा के साथ बंगाल के देहात ने ही नहीं, शहर कोलकाता ने भी साझा किया है। किसानों के साथ हुए हिंसक सलूक से कोलकाता के बुद्धिजीवी ही नहीं, आम लोग भी हिल गए थे।
नंदीग्राम अब माकपा की पीड़ा और छटपटाहट को समझ सके, इसमें शायद काफी देर हो गई है। ऐसा कभी हो सके, इसके लिए माकपा और उसके पीछे चलने वाली पार्टियों को सारे अहंकार छोड़ कर एक पुरानी पीढ़ी के किसी कम्युनिस्ट की तरह नंदीग्राम तक सिर झुकाए आना होगा। सत्ता और सफलता का अहंकार पीड़ा को समझने और उससे जुड़ने की क्षमता नष्ट कर देता है। इस अहंकार ने कम्युनिस्टों की एक वक्त की नैतिक, ईमानदार और जज्बाती होने की पहचान को कमजोर कर दिया है। Continue reading वाम के खिलाफ अवाम: ईश्वर दोस्त