Guest post by VAIBHAV SINGH

पूरे हिंदी क्षेत्र में और विशेषकर उत्तरप्रदेश में ऐसे बडे, छोटे और मंझोले किस्म के नेताओं की बड़ी फौज पैदा हो गई है जिसकी नेतागिरी केवल सांप्रदायिक नारे लगाने और समाज में सांप्रदायिकता फैलाने पर टिकी है। सार्वजनिक जीवन पर इन संकीर्ण सोच वाले हिंदुत्व नेताओं की निरंतर मजबूत होती पकड़ ने सांप्रदायिक हिंसा को ‘न्यू नार्मल’ के रूप में मान्यता दिला दी है। हिंदू धर्म को कलंकित करने में इस नए जमाने के हिंदुत्व की क्या भूमिका है, यह अब किसी से छिपा नहीं है। एक समय था जब समाज पर समाजवादी और गांधीवादी विचारों के प्रभाव के कारण सांप्रदायिकता का सामना करना अपेक्षाकृत कम मुश्किल काम था। पर इन विचारधाराओं का प्रभाव कम हो जाने से सांप्रदायिक नेताओं-समूहों का तेजी से विस्तार हो रहा है। एबीवीपी, विहिप, हिंदू युवावाहिनी और बजरंग दल जैसे संगठन सामाजिक-राजनीतिक जीवन के पूरे परिदृश्य पर हावी हो चुके हैं।अक्सर साधारण परिवारों के युवक इन संगठनों की चपेट में इसलिए आ जाते हैं क्योंकि सांप्रदायिक संगठन समाज सेवा के मुखौटे के भीतर रहकर अपना काम करते हैं। वे दिखावे के तौर पर ब्लड डोनेशन या स्वच्छता मिशन या फिर शहीदों के सम्मान जैसी गतिविधियां करते हैं पर उनका असल मकसद समाज में सांप्रदायिकता का विचारधारा का विस्तार करना होता है। मुस्लिमों में भी सांप्रदायिकता है, पर वे उस प्रकार से संगठित सांप्रदायिकता को व्यक्त नहीं कर रहे हैं। Continue reading कासगंज हिंसा- तिरंगे को हड़प जाएगा भगवा? वैभव सिंह