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मोहन भागवत ‘वोक पीपल’ और ‘वोक़िज़्म’ को लेकर इतना ग़ुस्से में क्यों है?

कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘सांस्कृतिक मार्क्सवादी’ और ‘वोक पीपल’ (Woke People) को लेकर संघ सुप्रीमो की ललकार एक तरह से उत्पीड़ितों की दावेदारी और स्वतंत्र चिंतन के प्रति हिंदुत्व वर्चस्ववाद की बढ़ती बेचैनियों  को ही बेपर्द करती है.

मुल्क की दारूल हुकूमत अर्थात राजधानी दिल्ली- आए दिन कुछ न कुछ सेमिनार, संगोष्ठियां, विचारोें के अनौपचारिक आदान-प्रदान की मौन गवाह बनी रहती है. आम तौर पर वह ख़बर भी नहीं बन पाते, अलबत्ता कुछ तबादले खयालात कभी-कभी सुर्खियां बन जाते हैं.

पिछले दिनों यहां के भव्य ताज एम्बेसेडर होटल में एक विचार-विमर्श चला, जो अलग कारणों से सुर्खियां बना. आयोजक के चलते और जिस मसले पर वहां गुफ्तगू चली उसे लेकर. दरअसल इसका आयोजन भारतीय जनता युवा मोर्चा ने किया था, जो आम तौर पर ऐसी बौद्धिक गतिविधियों के लिए जाना नहीं जाता है.

दूसरी अहम बात थी कि इस विचार-विमर्श में अमेरिका, जर्मनी और चंद अन्य पश्चिमी मुल्कों के कई अनुदारवादी, रूढ़िवादी विचारक, अकादमिशियन जुटे थे और भारत के शिक्षा संस्थानों से जुड़े कई अकादमिशियन भी थे. बातचीत किन मसलों पर चली इसके आधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतना तो समाचार में सुनने को मिला है कि वहां ‘वोकवाद’ (Wokeism-वोक़िज़्म) पर भी बातचीत चली थी. ( Read the rest of the article here)

‘नफरत के गुरूजी’

गोलवलकर के महिमामंडन से उठते प्रश्न

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संघ के सुप्रीमो जनाब मोहन भागवत की सूबा मध्य प्रदेश की बैतुल की यात्रा पिछले दिनों सूर्खियों में रही, जहां वह हिन्दू सम्मेलन को संबोधित करने पहुंचे थे। सूर्खियों की असली वजह रही बैतुल जेल की उनकी भेंट जहां वह उस बैरक में विशेष तौर पर गए, जहां संघ के सुप्रीमो गोलवलकर कुछ माह तक बन्द रहे।  इस यात्रा की चन्द तस्वीरें भी शाया हुई हैं। इसमें वह दीवार पर टंगी गोलवलकर की तस्वीर का अभिवादन करते दिखे हैं। फोटो यह भी उजागर करता है कि भागवत के अगल बगल जेल के अधिकारी बैठै हैं।

विपक्षी पार्टियों ने – खासकर कांग्रेस ने – इस बात पर भी सवाल उठाया था कि आखिर किस हैसियत से उन्हें जेल के अन्दर जाने दिया गया। उनके मुताबिक यह उस गोलवलकर को महिमामंडित करने का प्रयास  है, जिसे ‘एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्य होने के नाते गिरफ्तार किया गया था। यह जेल मैनुअल का उल्लंघन भी है। केवल कैदी के ही परिजन एवं दोस्त ही जेल परिसर में जा सकते हैं और वह भी वहां जाने से पहले जेल प्रबंधन की अनुमति लेने जरूरी है।’

गौरतलब है कि संघ के तत्कालीन सुप्रीमो गोलवलकर की यह पहली तथा अंतिम गिरफतारी आज़ाद हिन्दोस्तां में गांधी हत्या के बाद हुई थी, जब संघ पर पाबन्दी लगायी गयी थी। प्रश्न उठता है कि आखिर गोलवलकर के इस कारावास प्रवास को महिमामंडित करके जनाब भागवत ने क्या संदेश देना चाहा।

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