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विशालतम लोकतंत्र का संकीर्णतम इतिहास: धीरेश सैनी

(रामचंद्र गुहा की पुस्तक ‘इण्डिया आफ़्टर गांधी’ के हिंदी अनुवादों की धीरेश सैनी द्वारा की गई समीक्षा, समयांतर के अक्टूबर 2012 अंक में प्रकाशित)

रामचंद्र गुहा की बहुप्रचारित किताब `इंडिया आफ्टर गांधीः द हिस्ट्री ऑफ दी वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी` का हिंदी अनुवाद पेंगुइन बुक्स ने दो खंडों (`भारतः गांधी के बाद` और `भारतः नेहरू के बाद`) में प्रकाशित किया है। बकौल गुहा, उनका `संपूर्ण कैरियर `इंडिया आफ्टर गांधी` लिखने की एक वृहत (और तकलीफदेह) तैयारी रही है।` यह बात दीगर है कि उन्होंने इस तकलीफदेह तैयारी को बतौर `दुनिया के विशालतम लोकतंत्र का इतिहास` प्रस्तुत करते हुए `ऐतिहासिक किस्सागोई का पुराना तरीका अख्तियार` किया है। किताब के कवर पर इस बात का जिक्र है कि यह `एक `व्यापक शोध के बाद किए गए लेखन का नतीजा है जिसे रामचंद्र गुहा ने अपनी मखमली भाषा में रोचक तरीके से लिखा है।` सुशांत झा द्वारा किया गया अनुवाद भी किस्सागोई और भाषा की रोचकता को बरकरार रखता है। जाहिर है कि इतिहास की किताब का महत्व उसकी किस्सागोई की मखमली भाषा की रोचकता से ज्यादा उसमें कहे गए तथ्यों और उनके विश्लेषण और कहने से छोड़ दिए गए जरूरी तथ्यों पर ही निर्भर करता है। 1947 से छह दशकों के सफर को विभिन्न भागों और अध्यायों के जरिये तय करने वाली इस किताब का हर अध्याय उथलपुथल, हिंसा और दूसरे झंझावतों के बीच `एकीकृत भारत` के अस्तित्व को लेकर निरंतर आशंकाओं (प्रायः पश्चिमी जगत की) का उल्लेख करता है और उसका समापन प्रायः इस `खुशी` के साथ होता है कि देखो दुनिया वालो, यह फिर भी `साबुत` खड़ा है। Continue reading विशालतम लोकतंत्र का संकीर्णतम इतिहास: धीरेश सैनी