गांधी से नफरत, गोडसे से प्यार

 देश विभाजन के काफी पहले ही गांधीजी को मारने की साजिश रची गई थी।

( Photo by Mondadori Portfolio via Getty Images,  Courtesy – blogs.timesofindia.indiatimes.com

हिन्दू महासभा ने 15 नवंबर को बलिदान दिवस मनाने का फैसला किया है। इस दिन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी हुई थी। पिछले साल हिन्दू महासभा ने देश भर में नाथूराम गोडसे के मंदिरों का निर्माण करने का ऐलान किया था। काफी हो-हल्ला मचने के बाद यह अभियान रुक गया। इस बार केंद्र सरकार हिन्दू महासभा के प्रति क्या रुख अख्तियार करती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा। महात्मा गांधी की हत्या को लेकर एक बात अक्सर कही जाती है कि नाथूराम गोडसे गांधीजी से नाराज था, क्योंकि गांधीजी ने देश का बंटवारा होने दिया और वह पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने की बात किया करते थे।                                                                                                                                              

दरअसल इन दो तथ्यों की आड़ में उस लंबी साजिश पर पर्दा डाला जाता है जो हिन्दूवादी संगठनों ने रची थी। सचाई यह है कि गांधीजी को मारने की कोशिशें विभाजन के काफी पहले से शुरू हो गई थीं। आखिरी ‘सफल’ कोशिश के पहले उन पर चार बार हमले के प्रयास किए गए। चुन्नी भाई वैद्य जैसे सर्वोदयी के मुताबिक हिन्दूवादी संगठनों ने कुल छह बार उन्हें मारने की कोशिश की, जब न पाकिस्तान अस्तित्व में था और न ही पचपन करोड़ का मसला आया था। पिछले दिनों गांधीजी की हत्या पर ‘बियॉन्ड डाउट: ए डॉशियर ऑन गांधीज असेसिनेशन’ नाम से लेखों का संकलन (संपादन: तीस्ता सीतलवाड) प्रकाशित हुआ है, जो इस मामले की कई पर्ते खोलता है।

हमलों का सिलसिला

गांधीजी को मारने का पहला प्रयास पुणे में 25 जून 1934 को हुआ, जब वह कॉरपोरेशन के सभागार में भाषण देने जा रहे थे। कस्तूरबा गांधी उनके साथ थीं। इत्तेफाक से गांधी जिस कार में जा रहे थे, उसमें कोई खराबी आ गई और उन्हें पहुंचने में विलंब हो गया। उनके काफिले में शामिल अन्य गाड़ियां जब सभास्थल पर पहुंचीं, तब उन पर बम फेंका गया। (देखें, ‘प्रिजर्विंग द ट्रूथ बिहाइंड गांधीज मर्डर, द हिन्दू, 21 जून 2015)। बापू को मारने की दूसरी कोशिश में नाथूराम गोडसे भी शामिल था। मई 1944 की बात है। गांधी उस वक्त पंचगणी की यात्रा कर रहे थे। एक चार्टर्ड बस में सवार 15-20 युवकों का जत्था वहां पहुंचा। उन्होंने गांधी के खिलाफ दिन भर प्रदर्शन किया, मगर जब गांधी ने उन्हें बात करने के लिए बुलाया वे नहीं आए। शाम के वक्त प्रार्थना सभा में हाथ में खंजर लिए नाथूराम गांधीजी की तरफ भागा, जहां उसे पकड़ लिया गया। सितंबर 1944 में जब जिन्ना के साथ गांधीजी की वार्ता शुरू हुई, तब उन्हें मारने की तीसरी कोशिश हुई। सेवाग्राम आश्रम से निकलकर गांधीजी मुंबई जा रहे थे, तब नाथूराम की अगुआई में अतिवादी हिन्दू युवकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। उस वक्त भी नाथूराम के कब्जे से एक खंजर बरामद हुआ था। गांधीजी को मारने की चौथी कोशिश (20 जनवरी 1948) में लगभग वही समूह शामिल था, जिसने अंतत: 30 जनवरी को उनकी हत्या की। इसमें शामिल था मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे। योजना बनी थी कि महात्मा गांधी और हुसैन शहीद सुहरावर्दी पर हमला किया जाए। इस असफल प्रयास में मदनलाल पाहवा ने बिड़ला भवन स्थित मंच के पीछे की दीवार पर कपड़े में लपेट कर बम रखा था, जहां उन दिनों गांधी रुके थे। बम धमाका हुआ, मगर कोई दुर्घटना नहीं हुई, और पाहवा पकड़ा गया। समूह में शामिल अन्य लोग जिन्हें बाद के कोलाहल में गांधी पर गोलियां चलानी थीं, अचानक डर गए और उन्होंने कुछ नहीं किया।

उन्हें मारने की आखिरी कोशिश 30 जनवरी को शाम पांच बज कर 17 मिनट पर हुई जब नाथूराम गोडसे ने उन्हें सामने से आकर तीन गोलियां मारीं। उनकी हत्या में शामिल सभी लोग पकड़े गए। उन पर मुकदमा चला और उन्हें सजा हुई। नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे को सजा-ए-मौत दी गई (15 नवंबर 1949) जबकि अन्य को उम्रकैद की सजा हुई। आरएसएस से नाथूराम गोडसे के संबंध का मसला अभी भी सुलझा नहीं है। दरअसल गांधीजी की हत्या की चर्चा जब भी छिड़ती है, आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन गोडसे और उसके आतंकी गिरोह को लेकर अगर-मगर करने लगते हैं। एक तरफ वे यह दिखाना चाहते हैं कि गांधीजी की हत्या में शामिल लोगों का संघ से कोई ताल्लुक नहीं था। साथ ही वे इस बात को भी रेखांकित करना नहीं भूलते कि किस तरह गांधीजी के कदमों ने लोगों में निराशा पैदा की थी। यानी वे हत्या को जायज ठहराते हुए उससे पल्ला झाड़ने की भी कोशिश करते हैं।

देश के तत्कालीन गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी को लिखा:

‘हमारी रिपोर्टें इस बात को पुष्ट करती हैं कि इन दो संगठनों की गतिविधियों के चलते खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चलते मुल्क में एक ऐसा वातावरण बना जिसमें ऐसी त्रासदी (गांधीजी की हत्या) मुमकिन हो सकी। मेरे मन में इस बात के प्रति तनिक संदेह नहीं कि इस षडयंत्र में हिन्दू महासभा का अतिवादी हिस्सा शामिल था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियां सरकार एवं राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा हैं…।’ (18 जुलाई 1948)

संघ का साथ

गोडसे से जुड़े लोग, जो खुद गांधीजी की हत्या की साजिश में शामिल थे, इस मुद्दे पर अलग ढंग से सोचते हैं। अपनी किताब ‘मैंने महात्मा गांधी को क्यों मारा’ (1993) में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे ने लिखा है: ‘उसने (नाथूराम) अपने बयान में कहा था कि उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को छोड़ा था। उसने यह बात इस वजह से कही क्योंकि गोलवलकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गांधी की हत्या के बाद बहुत परेशानी में थे। मगर यह बात सही है कि उसने संघ नहीं छोड़ा था।’अंग्रेजी पत्रिका फ्रंटलाइन को दिए साक्षात्कार (जनवरी 28, 1994, अरविन्द राजगोपाल) में गोपाल गोडसे ने वही बात दोहराई थी। संघ के लोग शायद ही इस बात को स्वीकार करेंगे।

( First Published in ‘Navbharat Times’ 13 th November 2015, http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/entry/hate-to-mahatma-and-love-with-godse)

5 thoughts on “गांधी से नफरत, गोडसे से प्यार”

  1. The truth of Patel should be made public so that his involvemeng with RSS will be clear. The rightist’s contention will be also come to the fore.

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  2. तथ्यों को सामने लाने के लिए शुक्रिया सुभाष. आज जब झूठ के आधार पर लोगों की भावनाओं को भड़काया जा रहा है तो इस समय यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं. शुक्रिया

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