गुजरात में हुए सामूहिक बलात्कार और हत्याओं के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को तुरंत रद्द किया जाए!

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न्याय के लिए बिलकिस बानो के 20 साल के संघर्ष  में हम उसके समर्थन में एकजुट हैं

हम मांग करते हैं कि सामूहिक बलात्कार और हत्या के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को तुरंत रद्द किया जाए!

न्याय के लिए संघर्ष  कर रहे सभी बलात्कार पीड़ितों पर इसका अत्यघिक नकारात्मक और बुरा असर पड़ेगा !

हम भारत के सर्वोच्च न्यायलय से इस फैसले को जो कि न्याय पर एक गंभीर आघात है, को पलटने की मांग करते हैं

हम भारत के सभी नागरिकों को अपील करते हैं कि वे इस अन्याय के खिलाफ और बलात्कार पीड़ितों के समर्थन में खड़े हो

15 अगस्त 2022 की सुबह, 75वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने महिला अधिकार, गौरव और नारी-शक्ति के बारे में बात की। उसी दिन दोपहर में ‘बिलकिस बानो’, एक महिला जो उसी ‘नारी – शक्ति ’ की मिसाल के रुप में पिछले 17 साल से न्याय की लम्बी लड़ाई लड़ रही है, को पता चलता है कि वे लोग जिन्होंने उसके परिवार के लोगों को मार डाला, उसकी 3 साल की मासूम बच्ची का कत्ल किया, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और फिर उसे मरने के लिए छोड़ दिया, वो सभी जेल से बाहर आ गए हैं और आज़ाद हो गए हैं। किसी ने उससे उसके विचार नहीं पूछे या उसकी सुरक्षा के बारे में जानने की कोशिश नहीं की। किसी ने उसे नोटिस भी नहीं भेजा, किसी ने नहीं पूछा कि एक सामूहिक बलात्कार की पीड़ा से निकली महिला को अपने बलात्कारियों की रिहाई के बारे में सुनकर कैसा मेहसूस हुआ।

बिलकिस ने हमेशा कहा है कि न्याय के लिए उसकी लड़ाई केवल उसकी अकेले की लड़ाई नहीं है बल्कि सभी महिलाओं की लड़ाई है जो न्याय के लिए लड़ रही हैं, और इसलिए 15 अगस्त को भारत में हर एक संघर्षील  बलात्कार पीड़िता को एक बड़ा झटका लगा है।

यह हमारे लिए बहुत ही शर्म के बात है कि जिस दिन हम भारतवासियों को अपनी आज़ादी की ख़ुशी मनानी चाहिए और अपनी स्वतंत्रता पर नाज़ करना चाहिए, उसी दिन भारत की महिला अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या करने वाले दोषियों को देश के कानून द्वारा बरी कर दिए जाने की साक्षी बनी। कानून द्वारा उन सभी 11 सामूहिक बलात्कार के दोषियों को छोड़ देने का आदेश उन सभी बलात्कार से पीड़ित महिलाओं को सुन्न कर देने वाला होगा जिन्हें यह कहा जाता है कि “देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखो……न्याय की मांग करो… विश्वास रखो’’। इन कातिलों/बलात्कारियों का सज़ा पूरी किए बिना, जल्दी छूटना इस बात को पुनः स्थापित और पुख्ता करता है कि वे सभी आदमी जो महिलाओं के साथ बलात्कार या अन्य किसी तरह की हिंसा करते है वे आसानी से दण्ड मुक्त हो सकते हैं। इस संदर्भ में यह और भी ज़रुरी है के इस रिहाई को निरस्त किया जाए। 2002 में बिलकिस मात्र 21 साल की थी और 5 महीने के गर्भ से थी जब उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। उसने अपनी 3 साल की बच्ची सलेहा के सिर को चट्टान पे पटकर फटते हुए देखा, अपने परिवार के 14 लोगों का कत्ल होते हुए देखा, अपने परिवार की कई औरतों के साथ बलात्कार और फिर कत्ल होते हुए देखा। ये बड़े जघन्य अपराध थे।

इस भयानक नरसंहार के बाद वहां एकमात्र बची बिलकिस बानो ने न्याय को पाने के लिए बहादुरी के साथ लंबी लड़ाई शुरू  की। उसने वही किया जो हम सभी बलात्कार पीड़ितों को करने के लिए कहते हैं-ंउचय उसने अपने अंदर की सारी शक्ति को जुटाया, सच्चाई की गवाही दी और अपराधिक न्याय प्रणाली पर भरोसा किया। यह एक लम्बी यात्रा थी लेकिन उसे न्याय मिला। इस मामले में सभी अपराधियों को 2008 में मुंबई में विशेष सीबीआई अदालत में दोषी ठहराया गया। मुंबई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इस फैसले को बरकरार रखा गया। जब मुंबई उच्च न्यायालय ने दोषियों की उम्रकैद की सज़ा को बरकरार रखा था तब बिलकिस ने खुद 2017 में कहा था कि ’’……इस फैसले का मतलब नफरत का अंत नहीं है बल्कि इसका मतलब है कि कहीं न कहीं न्याय की जीत होती है। यह मेरे लिए एक लंबा, कभी न खत्म होने वाला संघर्ष रहा है, लेकिन जब आप सच्चाई के पक्ष में होते हैं तो आपकी बात सुनी जाती है और अंततः आपके साथ न्याय होता है”।

आज उस न्याय को वापस छीन लिया गया है।

न्यायालयों द्वारा दिए गए इस फैसले में छूट देकर सज़ा में कटौती करना, न केवल अनैतिक और अनुचित है बल्कि यह गुजरात सरकार की अपनीछूट की नीति के खिलाफ है जिसमें यह साफ तौर  पर कहा गया है कि बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के दोषियों पर यह नीति लागू नहीं होती। साथ ही यह केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को कैदियों को रिहा करने दिए गए निर्देशोंें का भी उल्लंघन करता है जो कि आज़ादी का अमृत महोत्सव के संदर्भ में जारी किए गए। इसमें स्पष्ट लिखा गया है कि जिन कैदियों को इस नीति के तहत विशेष छूट नहीं मिल सकती उनमें ‘बलात्कार के दोषी’ शामिल हैं। एक और महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि सीबीआई द्वारा जांच और मुकदमा चलाए जाने वाले मामले में कि केंद्र सरकार की सहमति के बिना राज्य द्वारा कोई छूट दी ही नहीं जा सकती। और यदि केंद्र द्वारा इस तरह की छूट पर विचार किया गया और अनुमति दी गई है तो यह सरकार की नारी-शक्ति, महिलाओं के अधिकार और पीड़तों  के लिए न्याय के दिखावे और दावों के खोखलेपन को दर्शायेगा।

देश के कानून का उल्लंघन कर 11 कातिलों और सामूहिक बलात्कार करने वालों की रिहाई में मदद करने वालों से हम यह कहते हैंः आपने देश की हर महिला को कमतर महसूस कराया है। इससे हिंसा के खतरे  जिससे हम और अधिक असुरक्षित और डरे हुए हंै। आपने भारत की महिलाओं का न्याय व्यवस्था में विश्वास और कमज़ोर किया है।

हम बिलकिस बानो और यौन हिंसा की शिकार हर उस संघर्षशील महिला के साथ दृढ़ता से खड़े हैं जो न्याय के लिए लड़ने का साहस रखती है। हम बिलकिस और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं और हमें इस बात का दुःख है कि इस साहसी महिला को पिछले 20 सालों की पीड़ा को फिर से जीना पडेगा।

हम यह मांग करते हैं कि महिलाओं का न्याय में विश्वास को फिर से स्थापित किया जाए।

हम यह भी मांग करते हैं कि इन 11 दोषियों के लिए सजा की छूट को तुरंत वापस लिया जाए और उन्हें उनके शेष आजीवन कारावास की सज़ा के लिए वापस जेल भेजा जाय.

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