
आस्था और गंदगी सहयात्री रहते आए हैं। आस्था के तमाम जाने-माने केन्द्रों पर या अपनी आस्था को सेलिब्रेट करने के नाम पर मनाए जाने वाले समारोहों में-प्रचंड ध्वनि प्रदूषण और रौशनी का प्रदूषण आदि के माध्यम से-इसकी मिसाल अक्सर देखने को मिलती है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों से भरे गंदे जलाशय-जिनकी मौजूदगी पानी के ऑक्सीजन की मात्रा पर विपरीत असर डालती है, पानी में ही फेंकी गयी सूखे फूलों की मालाएं आदि आदि से महानगर भी अछूते नहीं रहते हैं।
इस सम्बन्ध में ताज़ी मिसाल महाकुंभ के बहाने से उजागर हुई है, जब केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट ने इस बात को उजागर किया कि किस तरह प्रयागराज के पानी में उन्हें उच्च स्तर पर मल के जीवाणु मिले हैं, जो किसी भी सूरत में नहाने योग्य नही है। इस सिलसिले में नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) के अधिकारियों को तलब भी किया है कि ‘प्रयागराज/इलाहाबाद में गंगा, यमुना के पानी की गुणवत्ता के उल्लंघन को लेकर-उन्होंने जो दिशानिर्दश जारी किए थे उस पर उन्होंने अमल नहीं किया है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय ग्रीन टिब्यूनल (NGT) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस बात के लिए भी आलोचना की है कि अपनी जो रिपोर्ट उन्होंने प्रस्तुत की है, उसके सैम्पल पुराने है और सभी 12 जनवरी के पहले के-अर्थात कुंभ मेला शुरू होने के पहले के है। ….
…निस्संदेह महाकुंभ के अवसर सीवेज युक्त पानी को लेकर उठे सवाल अब दबना मुश्किल है। सरकार जो भी प्रचार करे, अधिक से अधिक लोग अब इस बात का अनुभव करेंगे कि गंगा किनारे उन्होंने जो ‘पवित्र स्नान’ किया उस वक्त वह पानी कत्तई शुद्ध नहीं था। यात्रियों का एक छोटा सा हिस्सा अब यह कहने का साहस भी जुटाएगा कि किस तरह सत्ताधारी समूह ने उनकी धार्मिक आस्था का दोहन किया है। [ Read the full article here :https://janchowk.com/beech-bahas/the-other-aspect-of-the-holy-bath/]
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