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तूफानों की जिद देखने का वक्त़

(‘नवउदारवाद के दौर में हिन्दुत्व’ विषय पर अहमदाबाद में प्रस्तुत व्याख्यान का संशोधित एवं विस्तारित रूप)

‘आम लोग धर्म को सच मानते हैं, समझदार लोग झूठ मानते हैं और शासक लोग उपयोगी समझते हैं।’

– सेनेका / ईसापूर्व 4 वर्ष से ईसवी 65 तक/

..अपनों के बीच होने की एक सुविधा यह होती है कि आप इस बात से निश्चिंत रहते हैं कि किसी प्रतिकूल वातावरण का सामना नहीं करना पड़ेगा, जो सवाल भी पूछे जाएंगे या जो बातें भी कहीं जाएंगी वह भी अपने ही दायरे की होंगी। मगर फिलवक्त़ मैं अपने आप को एक अलग तरह की मुश्किल से घिरा पा रहा हूं।

मुश्किल यह है कि जिस मसले पर – ‘नवउदारवाद के दौर में हिन्दुत्व’ -बात करनी है उस मसले को सदन में बैठे हर व्यक्ति ने ‘सुना है, धुना है और गुना है’। और खासकर जो नौजवान बैठे हैं, – जिनकी पैदाइश सम्भवतः बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके पहले लागू किए जा रहे ‘नए आर्थिक सुधारों’ के दौर में हुई थी – उनको फोकस करें तो कह सकते हैं कि उनकी सियासी जिन्दगी की शुरूआत से ही यह दोनों लब्ज और उससे जुड़ी तमाम बातें महाभारत के अभिमन्यु की तरह उनके साथ रही हैं।

निश्चित ही ऐसे वक्त़ उलझनसी हो जाती है कि कहां से शुरू किया जाए।  Continue reading तूफानों की जिद देखने का वक्त़

‘आप’ से मुलाक़ात

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जानेवाला हिन्दोस्तां और दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र में शुमार संयुक्त राज्य अमेरिका – जो पिछले दिनों बिल्कुल अलग कारणों से आपस में एक नूराकुश्ती में लगे हुए रहे हैं – के दो अहम शहर न्यूयॉर्क और दिल्ली, पिछले दिनों लगभग एक ही किस्म के कारणों से सूर्खियों में रहे। अगर न्यूयॉर्क में मेयर पद पर डी ब्लासिओ का चुनाव और उनका शपथग्रहण, जिन्होंने 12 साल से कायम रिपब्लिकन नेता को बेदखल किया, और सबसे बढ़ कर उनका प्रोग्रेसिव एजेण्डा सूर्खियों में रहा तो सूबा दिल्ली में एक साल पुरानी पार्टी ‘आप’ (आम आदमी पार्टी) के नेता अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने सूर्खियां बटोरी।

दोनों को एक तरह से आन्दोलन की ‘पैदाइश’ के तौर पर देखा गया।

दो साल पहले अमेरिका में ‘आक्युपाई वॉल स्ट्रीट’ के नाम से खड़े आन्दोलन ने आर्थिक विषमता पर बहस को एक नयी उंचाई दी थी, जब उसने 1 फीसदी बनाम 99 फीसदी का नारा दिया था, हजारों लोगों की सहभागिता ने और उनके अभिनव तौरतरीकों ने पूरी अमेरिका के मेहनतकशों में नयी ऊर्जा का संचार किया था। डेमोक्रेट पार्टी से जुड़े शहर के वकील डी ब्लासिओ ने आन्दोलन की हिमायत की थी, एक अस्पताल की बन्दी को लेकर चले विरोध प्रदर्शन में उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। मेयर पद के लिए चले चुनाव प्रचार के दिनों में ही उन्होंने रईसों पर अधिक कर लगाने की बात की थी और ‘रोको और तलाशी लो’ जैसे न्यूयॉर्क पुलिस के विवादास्पद कार्यक्रम को चुनौती दी थी। वहीं अरविंद केजरीवाल , जनलोकपाल के लिए चले आन्दोलन जिसे लोकप्रिय जुबां में ‘अण्णा आन्दोलन’ कहा गया, उसके शिल्पकार कहे गये Continue reading ‘आप’ से मुलाक़ात