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अजेयता का मिथक: 2024 में मोदी की वापसी होगी या 2004 की होगी पुनरावृत्ति?

2024 की शुरूआत में भारत एक प्रचंड बदलाव की दहलीज पर खड़ा है। सभी जनतंत्र प्रेमी, इन्साफ पसंद और अमन के चाहने वालों के सामने यही बड़ा सवाल मुंह बाए खड़ा है कि 2024 के संसदीय चुनावों में- जो मई माह के अंत तक संपन्न होगा तथा नयी सरकार बन जाएगी (अगर उन्हें पहले नहीं कराया गया तो)- का नतीजा क्या होगा?

क्या वह सत्ता के विभिन्न इदारों पर भाजपा की जकड़ को ढीला कर देगा, क्या वह जनतंत्र की विभिन्न संस्थाओं को निष्प्रभावी करने की या उनका हथियारीकरण करने की सोची समझी रणनीति को बाधित कर देगा, क्या वह धर्म के नाम पर उन्मादी तक हो चुकी जनता में इस एहसास को फिर जगा देगा कि 21वीं सदी में धर्म और राजनीति का घोल किस तरह खतरनाक है या वह भारतीय जनतंत्र की अधिकाधिक ढलान की तरफ जारी यात्रा को और त्वरान्वित कर देगा, भारत के चुनावी अधिनायकतंत्र ( electoral autocracy) की तरफ बढ़ने की उसकी यात्रा आगे ही चलती रहेगी

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