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तूफानों की जिद देखने का वक्त़

(‘नवउदारवाद के दौर में हिन्दुत्व’ विषय पर अहमदाबाद में प्रस्तुत व्याख्यान का संशोधित एवं विस्तारित रूप)

‘आम लोग धर्म को सच मानते हैं, समझदार लोग झूठ मानते हैं और शासक लोग उपयोगी समझते हैं।’

– सेनेका / ईसापूर्व 4 वर्ष से ईसवी 65 तक/

..अपनों के बीच होने की एक सुविधा यह होती है कि आप इस बात से निश्चिंत रहते हैं कि किसी प्रतिकूल वातावरण का सामना नहीं करना पड़ेगा, जो सवाल भी पूछे जाएंगे या जो बातें भी कहीं जाएंगी वह भी अपने ही दायरे की होंगी। मगर फिलवक्त़ मैं अपने आप को एक अलग तरह की मुश्किल से घिरा पा रहा हूं।

मुश्किल यह है कि जिस मसले पर – ‘नवउदारवाद के दौर में हिन्दुत्व’ -बात करनी है उस मसले को सदन में बैठे हर व्यक्ति ने ‘सुना है, धुना है और गुना है’। और खासकर जो नौजवान बैठे हैं, – जिनकी पैदाइश सम्भवतः बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके पहले लागू किए जा रहे ‘नए आर्थिक सुधारों’ के दौर में हुई थी – उनको फोकस करें तो कह सकते हैं कि उनकी सियासी जिन्दगी की शुरूआत से ही यह दोनों लब्ज और उससे जुड़ी तमाम बातें महाभारत के अभिमन्यु की तरह उनके साथ रही हैं।

निश्चित ही ऐसे वक्त़ उलझनसी हो जाती है कि कहां से शुरू किया जाए।  Continue reading तूफानों की जिद देखने का वक्त़