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न्यायपालिका और हिन्दुत्व वर्चस्ववादी परियोजना 

दुनिया में जनतंत्र पर मंडराते खतरों की तरफ हाल के समय में बार-बार लिखा गया है। जानकारों ने इस बात को साफ किया है कि किस तरह जनतंत्र का कवच साबित होने वाली उसकी संस्थाओं को अंदर से कमजोर करके, कार्यपालिका, विधायिका या न्यायपालिका को अंदर से खोखला करके या इन सुरक्षा कवच ( guardrails of democracy) का अपहरण करके भी इसे बखूबी अंजाम दिया जा सकता है।

भारत में जहां हम कार्यपालिका का, अर्थात उसकी विभिन्न संस्थाओं को प्रभावहीन बनाने या उन्हें सत्ताधारी पार्टियों के मातहत करने की परिघटना को बारीकी से देख रहे हैं, मगर अभी तक न्यायपालिका में आ रहे बदलावों की तरफ हमारी निगाहें कम गई हैं।

गौरतलब है कि भारत में ऐसे बहुत कम कानून के विद्वान हैं या वकील हैं जिन्होंने भारत की न्यायपालिका के गति विज्ञान को बारीकी से देखा है और उसके रास्ते हमारे सामने रफ्ता-रफ्ता नमूदार हो रहे ख़तरों की तरफ इशारा किया है। जनाब डॉ. मोहन गोपाल, का नाम ऐसे लोगों में शुमार है।

कानून के यह आलिम और प्रैक्टिशनर हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकतों के नज़रिये के बारे में और उनकी रणनीतियों के बारे में बारीक समझ रखते हैं और संविधान के हिसाब से एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समाजवादी और संप्रभु भारत को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करने के उनके इरादों के बारे में बताते हैं कि ‘वह संविधान को उखाड़ फेंक कर नहीं बल्कि सर्वोच्च अदालत द्वारा उसकी एक हिन्दू दस्तावेज के रूप में व्याख्या करके’ अमल में लाना चाहते हैं।

कुछ वक्फ़ा पहले ‘लाईव लॉ’ द्वारा आयोजित एक प्रोग्राम में बोलते हुए उन्होंने उसके गतिविज्ञान को साफ किया था। ( Read the full article here : https://janchowk.com/beech-bahas/judiciary-and-scheme-of-hindu-dominance/)