Guest post by RAJINDER CHAUDHARY
एक छोटे से वाइरस ने तीन बाते दोबारा याद दिला दी हैं. सब से पहली तो यह कि इन्सान कुदरत का एक छोटा हिस्सा ही है. भले ही यह बहुत प्रभावी हिस्सा है; कुदरत को तोड़ मरोड़ सकता है, मरुस्थल को हराभरा कर सकता है. फिर भी यह कुदरत से ऊपर नहीं है, उस का मालिक नहीं है; यहे हरे भरे को मरुस्थल भी बना सकता है. कई वैज्ञानिकों के अनुसार घटते जंगलों और बढ़ती इंसानी बस्ती के चलते ही हमें करोना सरीखे वाइरस का इतना बड़ा डंक लगा है. भले ही आज सब का ध्यान करोना के कहर पर केन्द्रित है, और आशा है देर-सवेर उस का इलाज भी ढूंढ लेंगे, टीका बना लेंगे, पर जलवायु परिवर्तन और तेज़ी से ख़त्म होते पेट्रोल सरीखे नवीनीकरण-अयोग्य संसाधनों को भी न भूलें. यह भी न भूलें सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावज़ूद प्रदूषण से बचने के लिए वाहनों पर सम-विषम का नियम लगा कर बनी हुई कार को चलाने पर रोक लगानी पड़ती है, संयम अपनाना पड़ता है. उद्योग और निर्माण गतिविधि पर रोक लगानी पड़ती है.