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आज़ादी की एक लड़ाई चम्बल की घाटी में : अंकित झा

Guest post by ANKIT JHA

आज़ादी किसे पसंद नहीं है? सभी मनुष्यों कीआत्मा में निहित एक अधिकार आज़ादी. सभी बंधनों से मुक्ति, ना कोई शासक ना कोई शासन. स्वयं का स्वयं पर अधिकार. एक आज़ादी की लड़ाई चम्बल से.जाति संघर्ष के परे,वर्ग संघर्ष के परे. परन्तु सब को समाहित किये एक अनोखा संघर्ष. मध्य प्रदेश के चम्बल संभाग में स्थित जिला श्योपुर.और सतत चला आ रहा ज़मीन संघर्ष.  इस देश में किसी गरीब व वंचित वर्ग के लिए ज़मीन का अधिकार पाना कभी आसान नहीं रहा.हालाँकि समय-समय पर सरकार, समाजसेवी संगठन तथा कुछ आन्दोलनों द्वारा इसका भरसक प्रयास किया गया है कि समाज में सभी के पास सामान रूप से ज़मीन हो. लेकिन हर बार यह प्रयास किसी न किसी कारण से असफल रहा.इन असफलताओं का कारण अधिकाँश समय उच्च वर्ग का अपनी ज़मीन से मोह तथा वंचित वर्ग का निरंतर शोषण रहा है.सरकार हो या अधिकांश समाजसेवी संस्थाएं, इसी ख़ास वर्ग की नुमाइंदगी करते रहे हैं. ना ही संघर्ष को सफलता मिली और ना ही कोई रास्ता. अब जिस व्यक्ति को अपनी जीविका हेतु संघर्ष करना पड़ता हो, उसके अन्दर ऐसी संघर्ष की चाह पैदा करना पाना मुश्किल कार्य है. फिर यदि शोषित वर्ग वनों में रहने वाले आदिवासी वर्ग हो तो कार्य नामुमकिन सा प्रतीत होता है.यह नामुमकिन ही है, जबतक इच्छा शक्ति एकता परिषद सी ना हो.

Ekta parishad leaders & administration demarcating formerly land for giving possession to the Sahariya tribal people
Ekta parishad leaders & administration demarcating formerly land for giving possession to the Sahariya tribal people

विगत 10 वर्षों से भी अधिक से श्योपुर में ज़मीन माफियाओं ने जबरन आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा था और कईयों ने तो इन ज़मीनों को हरियाणा, पंजाब तथा उत्तरी राजस्थान से आये बड़े किसानों को बेच दिया था. इन बाहरी किसानों ने आदिवासियों को उनकी ही ज़मीन पर मजदूर की नौकरी प्रदत्त करवा के उनपे शोषण का नया तरीका अपनाया.यह कतई किवदंती नहीं है कि खेत में कार्य कर रहा मजदूर उन बड़े किसानों के गुलाम से भी बदहाल स्थिति में कार्य करते हैं. ये दिहाड़ी मजदूर किसी संघर्ष की लालसा में अपने एक दिन के आय को नहीं खो सकते. ऐसे समय में एकता परिषद् ने संघर्ष को नया नाम दिया.उन्होंने इसे आज़ादी के लिए किये जाने वाला संघर्ष कहा. अपनी ज़मीन वापस पाने की आज़ादी. अपना अधिकार वापस लेने की आज़ादी.एकता परिषद् एक गांधीवादी संस्था है जो वंचित वर्ग के जल, जंगल व ज़मीन के लिए संघर्ष करती है. विगत 2 दशकों से भी अधिक समय से शोषित व वंचित वर्ग की सेवा तथा उनके सशक्तिकरण के लिए संस्था कार्यरत है.संस्था ने सबसे पहले ज़मीनी हकीकत पता किया तथा सभी जानकारी लेने के पश्चात सभी आदिवासी जिनकी ज़मीन पर कब्ज़ा था उन्हें आगे आने के लिए प्रेरित किया. जब आदिवासी तैयार हुए तो उन्होंने जिला कलेक्टर को तुरंत कार्रवाई तथा अपने स्वामित्व को पुनः प्राप्त करने हेतु ज्ञापन सौंपा. इस ज्ञापन का असर यह हुआ कि प्रशासन तुरंत हरकत में आया.

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