दिल्ली के करीब दादरी के बिसराड़ा गाँव की अस्करी गमी में है। अपने पचास साल के बेटे मोहम्मद इख़लाक़ की मौत का गम वह मना रही है। और साथ में उसका परिवार। बाईस साल का उसका पोता दानिश हस्पताल में मौत से जूझ रहा है।यह शोक मामूली नहीं है और न यह मौत साधारण है। यह आपको तब मालूम होता है जब आप देखते हैं कि गम की इस घड़ी में अस्करी के कंधे पर रखने वाला कोई पड़ोसी हाथ नहीं है।
अस्करी पूछती है, जहां कोई हमारा पुरसाहाल न हो, उसे हम अपना देस कैसे कहें! हमारे यहाँ गाँव को देस कहने का रिवाज है। अस्करी का सवाल वाजिब है: जहां गम बँटाने पड़ोसी न आएं, वह अपना देस कैसे हुआ!

इख़लाक़ की मौत का शोक कितना ही एकाकी क्यों न हो मौत उसकी एकाकी न थी. वह मारा गया, ऐलानिया, खुलेआम-शोर-शराबे के बीच।
बिसाराड़ा गाँव में मोहम्मद अखलाक़ की हत्या जितनी दिल दहलाने वाली है, उसके बाद की प्रतिक्रियाएं उस ह्त्या से अधिक चिंतित करने वाली हैं। सबसे ज़्यादा मुखर भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। मोहम्मद अखलाक़ के घर पर हमला करके उन्हें पीट-पीटकर मार डालने और उनके बेटे को गंभीर रूप घायल करने वाली भीड़ के छह लोगों को पुलिस ने नामजद किया है। लेकिन भाजपा के नेताओं ने इस पर गहरा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि यह इरादतन किया गया क़त्ल न था, इसलिए ह्त्या की धाराएँ न लगा कर गैर इरादतन ह्त्या की धारा लगानी चाहिए। तर्क यह यह है कि अखलाक़ की ह्त्या की कोई पूर्व योजना न थी, वह तो ‘गोवध’ और ‘ गोमांस’ खाने की खबर से हिंदू ग्रामीणों की धार्मिक भावनाएं भड़क उठीं। उन्होंने कुछ कड़े रूप में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, जिसके नतीजे में अलखलाक़ की मौत हो गयी। वे उलटे अखलाक़ के परिवार पर गोवध और गोमांस भक्षण के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग आकर रहे हैं। धमकी दी जा रही है की अगर ऐसा न किया गया तो महापंचायत की जाएगी।
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