Guest post by DARAB FAROOQUI
जी हाँ मैं भैंस हूँ और करीब 5000 साल से लगातार पानी में जा रही हूँ. जब भी किसी का कुछ भी बुरा हो रहा होता है तो हमेशा मुझे ही पानी में जाना पड़ता है. ना उस वक़्त मेरे नहाने की इच्छा होती और ना तैरने का मन. पर मुझे ना चाहते हुवे भी पानी में जाना पड़ता है.
तुम लोग कभी उस सफ़ेदमूही गाय को पानी में क्यों नहीं भेजते हो. और वैसे भी हम अल्पसंख्य हैं, हमसे कहीं ज्यादा गायें हैं भारत में. और शायद तुम्हे याद न हो, हमारे संविधान में सब बराबर हैं. पर इतना सब कुछ करने के बाद भी तुम लोगों ने हमें कभी अपना नहीं समझा. हमने क्या नहीं किया तुम्हारे लिये, तुम्हे अपने बच्चों का दूध दिया, तुम्हारे खेत जोते, तुम्हारे चूल्हे जलाये. कितने बलिदान दिए हमने पर तुम्हारे तो कान पर भैंस तक नहीं रेंगी.
सबसे पहला बटर पनीर किसके दूध का बना था? हमारे दूध का, पंजाब में हम ही हैं. और वो जो तुम हमेशा पंजाबी ढाबे पे खाने की रट लगाये रहते हो वहां जाके पूछना, उस खाने का स्वाद कहाँ से आता है? हमारे दूध के असली घी से. चले हैं बड़े गाय की पैरवी करने. कभी अच्छे वक़्त पर हमें याद मत करना. पर जब भी किसी का कुछ बुरा हो, चाहे हम सोती हों या जगती, चाहे हम खाती हों या पीती, हमें ही पानी में भेज देना. तुम्हारे बाप का राज है ना, सरकार तुम्हारी, तुम माई बाप हो, हम तो जानवर हैं. किसी ने सही कहा है जिसकी लाठी उसी की भैंस. Continue reading गयी भैंस पानी में…. : दाराब फ़ारूक़ी