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आत्मा से मुठभेड़ की चुनौती: अपूर्वानंद

इशरत जहाँ एक उन्नीस साल की लड़की थी जब वह मारी गई.शायद उसके बारे में इसके अलावा इस निश्चितता के साथ हम कुछ और कभी नहीं जान पाएंगे. इसकी वजह सिर्फ यह है कि जिन्हें इस देश में सच का पता लगाने का काम दिया गया है वे एक लंबे अरसे से झूठ को सच की तरह पेश करने का आसान रास्ता चुनने के आदी हो गए हैं. उनके इस मिथ्याचार पर कभी सवाल न खड़ा किया जा सके इसका सबसे अच्छा तरीका है राष्ट्र रक्षक की अपनी छवि का दुरुपयोग निस्संकोच करना. जो राष्ट्र की रक्षा करता है उसे उसकी रक्षा के लिए किसी को मात्र संदेह के आधार पर मार डालने का हक है, यह हमारे देश का सहज बोध है. सिर्फ अशिक्षितों का नहीं, उसने कहीं ज़्यादा राजनीति शास्त्र की किताबों से नागरिक अधिकारों का ज्ञान प्राप्त किए हुए स्नातकों का. उन सबका जिन्हें देश की जनता के पैसे से संविधान की हिफ़ाजत के लिए अलग-अलग काम सौंपे जाते हैं. और भी साफ़ कर लें, इन स्नातकों में भी उनका जो प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी हैं, जासूसी के अलग-अलग महकमों से जुड़े ऑफिसर हैं, जिनकी असली पहचान कभी उजागर नहीं हो पाती. अगर दूसरे मुल्क में वे पकड़े जाएं तो वही देश उनसे हाथ धो लेता है जिसकी सुरक्षा में वे अपनी असली पहचान छिपाए फिरते हैं.

क्या कोई यह कहने की हिमाकत कर सकता है कि राष्ट्र-राज्य के खिलाफ साजिशें नहीं होतीं, कि राष्ट्र-विरोधी शक्तियों का अस्तित्व ही नहीं! यह बिलकुल अलग बात है कि राष्ट्र विरोधी का बिल्ला किन पर आसानी चस्पां किया जा सकता है और किन पर वह बिलकुल चिपकता ही नहीं. मसलन, इस्लामी राष्ट्र का तस्सवुर धर्मनिरपेक्ष भारतीय राष्ट्र के बिलकुल खिलाफ है, क्या इसके लिए किसी अतिरिक्त व्याख्या की आवश्यकता है? लेकिन यह समझना और समझाना टेढ़ी खीर है कि हिन्दू राष्ट्र की कल्पना भी उतनी ही राष्ट्रविरोधी है! आज से बीस साल पहले और आज भी   खालिस्तान का ख़याल इस्लामी राष्ट्र जितना ही राष्ट्र विरोधी माना जाता था. Continue reading आत्मा से मुठभेड़ की चुनौती: अपूर्वानंद