Guest post by VIVEK KUMAR
यह पोस्ट सोशल मीडिया पर कई लोगों ने साझा की थी । बताया जा रहा था कि इसके लेखक सरोज मिश्र हैं। इस बीच इसके असल लेखक से हमारा संपर्क हुआ है जिनका नाम विवेक कुमार उर्फ़ विवेक असरी है। मूल लेख 2010 में छपा था जिसे यहाँ पढ़ा का सकता है।
अंग्रेज़ी तर्जुमा क़ाफ़िला पर कुछ रोज पहले छपा था। कई लोगों ने मूल हिन्दी का लेख भी देखना चाहा है, लिहाज़ा पेश-ए-ख़िदमत है यह लेख।

कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे, वहीं खेले-कूदे, बड़े हुए, बनवास भेजे गये, लौटकर आये तो वहाँ राज भी किया। उनकी ज़िंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया। जहाँ खेले, वहाँ गुलेला मंदिर है। जहाँ पढ़ाई की, वहाँ वशिष्ठ मंदिर हैं। जहाँ बैठकर राज किया, वहाँ मंदिर है। जहाँ खाना खाया, वहाँ सीता रसोई है। जहाँ भरत रहे, वहाँ मंदिर है। हनुमान मंदिर है, कोप भवन है। सुमित्रा मंदिर है, दशरथ भवन है। ऐसे बीसियों मंदिर हैं, और इन सबकी उम्र 400-500 साल है। यानी ये मंदिर तब बने, जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा।
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