ज़ुबां पर आंबेडकर, दिल में मनु

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एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ बुलाए गए भारत बंद का दृश्य. (फोटो: पीटीआई)

 

2 अप्रैल का ऐतिहासिक भारत बंद लंबे समय तक याद किया जाएगा. जब बिना किसी बड़ी पार्टी के आह्वान के लाखों लाख दलित एवं वंचित भारत की सड़कों पर उतरें और उन्होंने अपने संघर्ष एवं अपने जज्बे से एक नई नजीर कायम की.

आजादी के सत्तर सालों में यह पहला मौका था कि किसी अदालती आदेश ने ऐसी व्यापक प्रतिक्रिया को जन्म दिया था. ध्यान रहे कि इस आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और चंद निरपराधों की जानें गईं, उसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता!

मगर क्या इसी वजह से व्यापक जनाक्रोश की इस अभिव्यक्ति ने उजागर किए सवालों की अहमियत कम हो जाती है? निश्चित ही नहीं!

वैसे इन तथ्यों की पड़ताल करना भी समीचीन होगा कि (जैसा कि कई स्वतंत्र विश्लेषणों में स्पष्ट किया गया है) कई स्थानों पर इस हिंसा के पीछे दक्षिणपंथी संगठनों एवं उनके कारिंदों का हाथ था, जो दलित उभार को कुचलना चाहते थे तथा साथ ही साथ उसे बदनाम करना चाहते थे. ( Click here for the full article :http://thewirehindi.com/39182/sc-st-act-dalit-agitation-narendra-modi-government/)

 

2 thoughts on “ज़ुबां पर आंबेडकर, दिल में मनु”

  1. Ambedkar ka sahara lekar Manuvaad ka badhava
    Inn logon ki purani chaal hai
    Secularism ko gali dekar sampradaikta badhana
    Sochi samjhi rann niti hai

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  2. Mujhe woh nara yaad aata hai jo ki Railway Strike ke dardnaak din mein humein sunaya deta tha-
    ‘Ban kranti ke pujari, sirf siddhanth pe hatti!
    Bar dil mein umang aur dimagh mein tatti!’

    Is silsalay mein Sahir bhi yaad aata hai- hum jo Gandhi aur Ghalib ke pujari hain, unhein ke qaatil hain!

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