जेपी से अण्णा : आख़िर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन किस तरह दक्षिणपंथ का रास्ता सुगम करता आया है

हम बारीकी से विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि वर्ष 2014 के बाद भारत में लिबरल जनतंत्र के बरअक्स हिन्दुत्व की जो बहुसंख्यकवादी सियासत हावी होती गयी, उसके कई तत्व इसी आंदोलन /सरगर्मी में मजबूती पाते गए हैं।

अण्णा
वर्ष 2011 के जनलोकपाल आंदोलन के दौरान अण्णा हजारे (फाइल फोटो)। साभार : गूगल

ग्रीक पुराणों में मिनर्वा को ज्ञान, विवेक या कला की देवी समझा जाता है, जिसका वाहन है उल्लू।

उन्नीसवीं सदी के महान आदर्शवादी दार्शनिक हेगेल का ‘फिलॉसाफी आफ राइट’ नामक किताब का चर्चित कथन है, ‘‘मिनर्वा का उल्लू तभी अपने पंख फैलाता है, जब शाम होने को होती है’’; (Only when the dusk starts to fall does the owl of Minerva spread its wings and fly.) – कहने का तात्पर्य दर्शन किसी ऐतिहासिक परिस्थिति को तभी समझ पाने के काबिल होता है, जब वह गुजर गयी होती है।]

अपनी अतीत की ग़लतियों की तहे दिल से आलोचना करना, साफ़गोई के साथ बात करना, यह ऐसा गुण है, जो सियासत में ही नहीं बल्कि सामाजिक जीवन में भी इन दिनों दुर्लभ होता जा रहा है। इसलिए अग्रणी वकील एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ता जनाब प्रशांत भूषण ने अपनी अतीत की ग़लतियों के लिए जब पश्चताप प्रगट किया तो लगा कुछ अपवाद भी मौजूद हैं।

दरअसल इंडिया टुडे से एक साक्षात्कार में उन्होंने ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ आंदोलन जिसका चेहरा बन कर अण्णा हजारे उभरे थे – जिसकी नेतृत्वकारी टीम में खुद प्रशांत शामिल थे – को लेकर एक अनपेक्षित सा बयान दिया। उनका कहना था कि यह आंदोलन ‘संघ-भाजपा’ द्वारा संचालित था। ईमानदारी के साथ उन्होंने यह भी जोड़ा कि उन्हें अगर इस बात का एहसास होता तो वह तुरंत अण्णा आंदोलन से तौबा करते, दूर हट जाते।

विडम्बना ही है इतने बड़े खुलासे के बावजूद छिटपुट प्रतिक्रियाओं के अलावा इसके बारे में मौन ही तारी है या बहुत कमजोर सी सफाई पेश की गयी है।

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