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अलविदा किशोर ! उस दोस्त की याद में !

यारबाश दोस्त, जिन्दादिल साथी, समाजी बेहतरी और बदलाव को लेकर हमेशा पुरउम्मीद रहने वाले किशोर ने चुपचाप एक सुबह हमें अलविदा कहा। 13 सितम्बर 2024/
एक लाईलाज बीमारी के चलते , जिसे दुनिया cerebellar ataxia (multisystem atrophy) /अनुमस्तिष्क गतिभंग या मल्टीसिस्टम अपक्षय/ के तौर जानती है, जो निरंतर बढ़ते जानेवाला न्यूरोजनरेटिव विकार है  जो शरीर के एक एक अंग को बेकार करता जाता है और अंत में बिस्तर तक सिमट देता है  – उसकी जीजिविषा में कभी कोई कमी नहीं आयी, उसकी हंसी बरकरार रही, रौशनी की बातें करना उसने नहीं छोड़ा था.।

किशोर – जिसे शेष दुनिया किशोर झा के नाम से जानती थी, जो छात्र जीवन में वाम आंदोलन से जुड़ा – जिसने उसे एक नैतिक दिशा प्रदान की – अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध में दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘दिशा छात्र समुदाय’ के शुरूआती सदस्यों  वह था, जिसकी सक्रियताओने  ने उन दिनों अलग छाप छोड़ी थी। बाद में वह बाल अधिकारों के लिए सक्रिय विभिन्न संस्थाओं /एनजीओ के साथ भी सक्रिय रहा ; लेकिन आमूलचूल बदलाव के सपने को उसने कभी नहीं छोड़ा।
किशोर के मित्रों की पहल पर गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था, ( 5 अक्तूबर 2024 ) जिसका फोकस उसके जीवन को सेलिब्रेट करने पर था। प्रस्तुत नोट उस सभा में प्रस्तुत वक्तव्य का संशोधित रूप है
। (Read the full text here :https://janchowk.com/art-culture-society/adeu-kishore-in-memory-of-this-friend/)

धर्म का बोझ और बच्चे

आखिर जिन छोटे बच्चों को क़ानून वोट डालने का अधिकार नहीं देता, जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं देता, उन्हें आध्यात्मिकता के नाम पर इस तरह जान जोखिम में डालने की अनुमति कैसे दी जा सकती है?

Aradhna Varshil

17 साल का वर्षिल शाह – जिसने 12 वीं की परीक्षा में 99.93 परसेन्टाइल हासिल किए, अब इतिहास हो गया है.

दुनिया उसे सुविरा महाराज नाम से जानेगी और वह अपने गुरु कल्याण रत्न विजय की तरह बाल भिक्खु में शुमार किया जाएगा, ऐसे लोग जिन्होंने बचपन में ही जैन धर्म की दीक्षा ली और ताउम्र जैन धर्म के प्रचार में मुब्तिला रहे.

बताया जा रहा है कि इन्कम टैक्स आफिसर पिता जिगरभाई शाह और मां अमीबेन शाह ने अपनी सन्तान को बिल्कुल ‘धार्मिक’ वातावरण में पाला था, उनके घर में टीवी या रेफ्रिजरेटर भी नहीं था और बिजली का इस्तेमाल भी बहुत जरूरी होने पर किया जाता था क्योंकि शाह दंपति का मानना था कि उर्जा निर्माण के दौरान पानी में रहने वाले जीव मर जाते हैं, जो जैन धर्म के अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ पड़ता है.

वर्षिल-जो अभी कानून के हिसाब से वयस्क नहीं हुआ है, जो वोट भी डाल नहीं सकता है, यहां तक कि अख़बारों में प्रकाशित उसकी तस्वीरों में मासूमियत से भरे उसके चेहरे को भी देखा जा सकता है- के इस हालिया फैसले ने बरबस तेरह साल की जैन समुदाय में जन्मी हैदराबाद की आराधना (जो चार माह से व्रत कर रही थी) के बहाने उठी बहस को नए सिरे से जिंदा किया है, जो पिछले साल खड़ी हुई थी.

( Read the full article here : http://thewirehindi.com/11503/monk-jain-bal-diksha-fasting/)