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हममें से देशद्रोही कौन नहीं है?

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राष्ट्रवाद या यूं कहें कि ऑफिशियल राष्ट्रवाद इन दिनों सुर्खियों में है. एक तरफ ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए और दूसरे ही सुर में मां-बहनों के नाम अपशब्दों की बौछार करते हुए लंपटों के गिरोह हर स्वतंत्रमना व्यक्ति को लातों-मुक्कों से, या जैसा कि बीते दिनों इलाहाबाद की कचहरी में देखने को मिला, लोग लाठियों की मार से राष्ट्रवाद का असली मतलब समझा रहे हैं. शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़ते दिख रहे इन निक्करधारी गिरोहों के साथ जगह-जगह खाकी वर्दीधारियों की भी मौन सहमति नजर आ रही है. और दिख रहा है कि आप अगर किसी को मार भी डालें और सफाई में यह कह दें कि वह पाकिस्तान जिंदाबाद कह रहा था तो उसे माफ कर दिया जाएगा.

विडंबना ही है कि इन दिनों देश की किस्मत के आका कहे जाने वाले लोग नकली ट्वीट की बैसाखी के सहारे ऐसे तमाम उत्पातों, उपद्रवों और उद्दंडता को वैधता का जामा पहनाते नजर आ रहे हैं. आए दिन हो रही संविधान की इस खुल्लमखुल्ला अनदेखी को लेकर संविधान को सबसे पवित्र किताब का दर्जा देने वाले वजीर-ए-आजम मोदी भी अपना मौन बनाए हुए हैं. अंधराष्ट्रवाद की आंधी चलाने की तेज होती कोशिशों को देखते हुए बरबस राजेश जोशी की बहुचर्चित कविता की पंक्तियां साकार होती दिख रही हैं कि ‘जो इस कोलाहल में शामिल नहीं होंगे मारे जाएंगे.’

(Read the rest of the article here : http://tehelkahindi.com/who-is-not-anti-national-among-us-opinion-by-social-scientist-subhash-gatade/?singlepage=1)

साम्प्रदायिक फासीवाद की चुनौती – नयी ज़मीन तोड़ते हुए

यहुदी तथा ईसाई, हिन्दू तथा मुस्लिम ‘मूलवादी/बुनियादपरस्त’ श्रेष्ठ भिन्नता (सुपीरिअर डिफरेन्स) की बात करते हैं। हरेक का मुक़ाबला एक कनिष्ठ और डरावने अन्य से होता है। हरेक असमावेश की राजनीति में सक्रिय रहता है। इसलिए हरेक अपने दायरे में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए खतरे के तौर पर उपस्थित होता है।.. मुस्लिम मिलिटेण्ट के लिए ‘अन्य’ यहुदी होते हैं, कभी ईसाई होते हैं और दक्षिण एशिया में हिन्दू, ईसाई और अहमदी होते हैं। मैं ऐसे किसी धार्मिक-राजनीतिक संगठन को आज नहीं जानता जिसके सामने एक दानवीकृत, डरावना अन्य नहीं है।

अन्य हमेशा एक सक्रिय निषेध (active negation) होता है। ऐसे तमाम आन्दोलन नफरत की लामबन्दी करते हैं और अक्सर इसके लिए अभूतपूर्व सांगठनिक प्रयास करते हैं।..
हिंसा का सम्प्रदाय और दुश्मनों का विस्तार भिन्नता की विचारधाराओं में निहित होता है। सभी अन्य के प्रति अपनी नफरत को संगठित ंिहंसा के जरिए अभिव्यक्त करते हैं। सभी धर्म और इतिहास की दुहाई देते हुए अपनी हिंसा को वैधता प्रदान करते हैं। लगभग सभी मामलों में दुश्मनों की संख्या बढ़ती जाती है। पहले भारतीय परिवार के निशाने पर मुस्लिम अन्य रहता था और अब उसने ईसाइयों को उसमें शामिल किया है।
( प्रोफाइल आफ द रिलीजियस राइट – इकबाल अहमद, 1999)

1.
मुखौटा और आदमी

बच्चों की फन्तासियां अनन्त एवं अकल्पनीय होती हैं।

वह शेर का मुखौटा पहनेगा और अपने आत्मीयों को अपनी गुर्राहट से ‘डराने’ लगेगा और दूसरे ही क्षण वह स्पाइडरमैन का मुखौटा पहन कर कल्पना करेगा कि वह हवा में उड़ रहा है। आप ने किसी वयस्क को शायद ही कहीं देखा हो जो बच्चे की उन शैतानियों से परेशान हो उठे, भले ही उसके लिए वह बच्चा बिल्कुल अजनबी हो।

क्या होगा कि किसी अलसुबह आप को वयस्कों का एक समूह या उसी तरह शरीर से दृष्टपुष्ट लोग सड़कों पर घुमते मिलें जिन्होंने उसी किस्म के या वही मुखौटे पहनें हों ? आप निश्चित ही उन बुजुर्गों की मानसिक स्थिति को लेकर चिन्तित होंगे और उन्हें यह सलाह देना चाहेंगे कि वह नजदीकी मनोवैज्ञानिक से अवश्य मिल लें।

जनाब नरेन्द्र मोदी के सियासत में आगमन – पहले गुजराती हिन्दुओं के एक नेता के तौर पर, जिस वक्त ‘गुजरात का शेर’ के तौर पर उन्हें सम्बोधित किया जाता था और बाद में ‘भारत माता के शेर’ के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण – के साथ हम ऐसे ही मुखौटा पहननेवाले वयस्कों से रूबरू हैं जो एक ऐसे चेहरे में अपनी पहचान ‘विलीन’ कर देना चाहते हैं जो 21 वीं सदी में सबसे ध्रुवीकृत करनेवाली छवियों में शुमार की जाती है। Continue reading साम्प्रदायिक फासीवाद की चुनौती – नयी ज़मीन तोड़ते हुए