Tag Archives: CSAT

Understanding the Neo-liberal Agenda of Knowledge: The Unexposed Dimensions of the CSAT Controversy: Ayan Guha

This is a guest post by AYAN GUHA

The Central Government’s decision, to make the Civil Services Aptitude Test (CSAT) a qualifying paper in the UPSC (Union Public Service Commission) Civil Services Examinationhas come as a huge boost to the morale and aspirations of the students of social science and vernacular background who have been badly bitten by the CSAT bug since introduction of the paper.Every time their counterparts from the science and technical fields raised the cut-off beyond their scoring reach. They have long been campaigning for scrapping the CSAT on the ground that it clearly favours the students of English medium and science and technical background. Continue reading Understanding the Neo-liberal Agenda of Knowledge: The Unexposed Dimensions of the CSAT Controversy: Ayan Guha

सीसैट के जरिये सरकारी नौकरियों में दाखिले के खिलाफ एक आवाज के खिलाफ एक और आवाज – रविकांत

Guest post by RAVIKANT

‘निकम्‍मों व गये-गुजरों’ के लोक सेवा आयोग और सीसैट के जरिये सरकारी नौकरियों में दाखिले के खिलाफ एक आवाज के खिलाफ एक और आवाज

(टीप मेरी- इसका यह मतलब नहीं कि सीसैट के खिलाफ बोलने व आंदोलन करने वाले बेहतरीन के समर्थन में नहीं हैं. उन्‍हें बेहतरीन के साथ संवेदनशील के समर्थन में भी होना चाहिये.)

इस वक्‍त जब देश के एक हिस्‍से में कई युवा इस बात पर आंदोलनरत हैं कि लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित की परीक्षाओं में चुने जाने वाले व्‍यक्तियों की जांच भारतीय भाषाओं की जानी चाहिये, उस वक्‍त 27.07.14 के टाइम्‍स ऑफ इंडिया अखबार में श्रीवत्‍स कृष्‍णा का एक लेख छपा है, जो कि खुद भी प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी हैं. इस लेख का प्रमुख तर्क यह है कि भारत की एक राजभाषा अंग्रेजी को छोड़ कर तमाम भारतीय भाषायें (दूसरी राजभाषा हिंदी सहित), भारत में राजकाज चलाने वाले लोगों की क्षमताओं की जांच करने के लिहाज से नाकाबिल है. लिहाजा यह हक अंग्रेजी के पास ही रहना चाहिये.

लेख के नाम व उसके साथ दी गयी टीप का मतलब कुछ यों बनता है – ‘‘फालतू की बात के लिये इतना शोरशराबा- संघ लोक सेवा आयोग और सीसैट के जरिये निकम्‍मों व गये गुजरों का नहीं, बेहतरीन का चयन होना चाहिये.’’

लेख के शीर्षक में ही आंदोलन को फालतू का बता दिये जाने के बाद अगली ही पंक्ति में आंदोलनकारियों के लिये हिकारत की झलक मिलती है, जब लेखक यह संकेत देता है कि यह आंदोलन गये-गुजरों या निकम्‍मों की पैरवी कर रहा है. वैसे मुझे लगता है कि लेखक को लगता है कि यह शोरशराबा फालतू का नहीं है इसलिये उन्‍हें यह लेख लिखने की जरूरत पड़ी. अगर फालतू के शोर शराबे  के खिलाफ किसी को लेख लिखने की जहमत उठानी पड़े तो यकीनन वह इतना फालतू भी नहीं है कि उसकी सफाई देने की जरूरत आन पड़े. Continue reading सीसैट के जरिये सरकारी नौकरियों में दाखिले के खिलाफ एक आवाज के खिलाफ एक और आवाज – रविकांत