डिजिटल दुनिया के देशभक्त सैनिक और औसत आदमी : मनीष राज

Guest post by MANISH RAJ

चारों तरफ देशभक्ति का खुमार चढ़ा देख मैं सोच में पड़ गया. क्या मैं भी देखभक्त कहलाने लायक हूँ? क्या मेरे अन्दर भी देशभक्ति के वे सभी गुण मौजूद हैं जो एक भारतवासी में होने चाहिएं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले मुझे देशभक्ति के मायने समझने होंगे. आखिर देशभक्ति किसे कहते हैं?

सबसे पहले मैंने इस शब्द के शाब्दिक अर्थ पर गौर किया. देशभक्ति यानि देश की भक्ति. लेकिन भक्ति तो भगवान् की होती है न जी, जिसका गुणगान करना मोक्ष का मार्ग माना जाता है. या फिर उन बाबाओं की, जिनके एक आशीर्वाद, एक अंगूठी या एक ताबीज़ से आपका धंधा चल निकलता है, आपके बच्चों की शादियाँ हो जाती है और सारी बीमारियाँ ठीक हो जाती है. वैसे आजकल भक्ति शब्द अलग-अलग नामों से बहुत फैशन में है. एक समूह दुसरे समूह को किसी व्यक्ति विशेष का भक्त बता रहा है, तो वहीँ दूसरा समूह पहले समूह को पुरानी धारणाओं से ग्रसित और किसी दूसरे व्यक्ति का चमचा बता रहा है. सूचना के लिए बता दूं कि मैं अपनी गिनती इन दोनों समूहों में नहीं करता. इन दोनों में खचाखच भीड़ है, और भीड़ में मेरा दम घुटने लगता है.

शब्दों में उलझ गया तो फिर सोचा कि व्यस्तता से भरे आधुनिक जीवन में शब्दों की तितलियों के पीछे दौड़ने का क्या लाभ. इसलिए व्यावहारिक होते हुए मैंने देशभक्ति के प्रमाणिक सबूत तलाशना शुरू किया. देशभक्त किन्हें माना जाता है और उनमें क्या गुण होते हैं?

इस बारे में कोई शक नहीं कि देश की सबसे अधिक निस्वार्थ सेवा अगर कोई करता है तो वे हैं हमारी सेना के जवान, जो अपने परिवार की फ़िक्र न करते हुए हर वक़्त सीमा पर देश के लिए जान न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं. इन्हीं की बदौलत हम लोग सुरक्षित महसूस करते हुए अपनी ज़िन्दगी जी पाते हैं. ये लोग यक़ीनन सबसे अधिक सम्मान के काबिल हैं.

लेकिन ये गुण मुझ में नहीं है. मैं सेना में नहीं हूँ, और न ही कभी मेरे मन में यह निष्काम सेवा करने की भावना जागी. यह बात कभी-कभी मुझे कचोटती भी है, पर हर कोई इतना निर्भीक तो नहीं होता न? मेरा शरीर ख़ास बलशाली नहीं और मैं जल्दी घबरा जाने वाली तबियत का व्यक्ति हूँ. सो यही सोचकर दिल को तस्सली देता हूँ की मैं इस उत्तम सेवा के लायक नहीं हूँ.

अगर इस सर्वोच्च त्याग को ही देशभक्ति का पैमाना माना जाये तो केवल हमारे सैनिक ही देशभक्त कहलाने के लायक हैं. लेकिन अगर ऐसा होता तो मुझे गली-कूचे से लेकर टेलीविज़न और सोशल मीडिया पर अपना सीना चौड़ा किए देशभक्ति की बातें करते इतने लोग न मिलते. इसका मतलब देशभक्ति के लिए इतने कड़े मापदंड की ज़रुरत नहीं. तो देशभक्त होने के और क्या लक्षण होते हैं?

कई लोगों को कहते सुना है कि ‘मेरे लिए देश सबसे पहले है’. मुझे लगता है कि देशभक्ति के मामले में सैनिकों के बाद यही लोग आते होंगे. लेकिन यह कहने का मतलब क्या है? क्या इसका मतलब यह है कि हर काम करते वक़्त पहले देश के बारे में सोचा जाए और जिस काम से देश का भला होता हो, सिर्फ उसी काम को तरजीह दी जाए? मुझे नहीं पता कि जो लोग देश को पहले रखने की बात करते हैं, वो इसका क्या मतलब समझते हैं लेकिन मुझे तो इसका यही तात्पर्य दिखाई पड़ता है. और जब मैं अपने अन्दर झाँककर देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैं अपने अन्दर यह गुण होने का दावा नहीं कर सकता. मेरा स्वार्थी मन अधिकांश अपने या अपने प्रियजनों के विषय में ही सोचता है. 15 अगस्त या 26 जनवरी को छोड़कर ऐसे कम ही मौके आते हैं जब इसे देश के लिए सोचने की फुर्सत मिलती है.

मैं अपने अन्दर ये गुण न पाकर दुखी होने लगा था. तभी मुझे उन लोगों की याद आई जो भले ही कभी फ़ौज में भर्ती न हों, लेकिन जिनकी फ़ौज हर वक़्त सोशल मीडिया के कुरुक्षेत्र में देश के दुश्मनों पर चढ़ाई के लिए तैयार रहती है. जैसे ही कोई घुसपैठिया देश के तंत्र या सरकार की कार्यशैली पर सवाल दागते है, ये लोग उसपर टूट पड़ते हैं और शब्दों के बम और गोलों से उसका सीना छलनी कर देते हैं. दरअसल ये लोग डिजिटल सैनिक हैं. ट्विटर हो या फेसबुक, ये डिजिटल दुनिया के हर मोर्चे पर दिन-रात तैनात रहते है. इन्टरनेट की संभावनाओं की भले ही कोई सीमा न हो, पर हमारे डिजिटल इंडिया की सीमा-रेखा की रक्षा में ये लोग अपना खून नहीं तो कम से कम काफी पसीना और ‘बी.पी.’ तो बहाते ही हैं.

मैं ये काम करने की कोशिश तो कर सकता हूँ, पर इसमें भी मुझे इन लोगों जितनी दक्षता प्राप्त नहीं है. कारण यह कि इसके लिए आपको अपनी बात पर अडिग रहना होता है. दुश्मन चाहे कितने ही सवाल या तर्क दागे, आपको अपनी बात से टस से मस नहीं होना है, वर्ना शत्रु आपके कवच में सेंध लगा देगा. और मेरा मन इतना शंकावादी है कि कभी-कभी इसे अपने अस्तित्व पर ही संदेह होने लगता है. फिर यह भी है कि यदि कोई ढीठ समझाने पर न माने और बोलता चला जाए तो कभी-कभी रंगीन शब्दावली से उसका मुंह बंद कराना पड़ता है. और मेरी शब्दकोष में जो गिने-चुने खरी-खोटी के शब्द हैं, वे इतने नीरस और उबाऊ हैं कि सामने वाले को ही हंसी आ जाए.

अब मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा था. कोई तो ऐसी विशेषता हो मुझमें. मैं वो राजनेता भी नहीं जिसने समाज कल्याण में अपना पूरा जीवन और जमा-पूँजी लगा दी हो. मैं वो फिल्म कलाकार भी नहीं जो देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्में बनाकर और हमारे सैनिकों के नाम विडियो सन्देश बनाकर लोगों में देशभक्ति का अलख जगाये. मैं वो क्रिकेटर भी नहीं जो टीम इंडिया को जिताकर लोगों को देश का झंडा फ़हराने और उसपर गर्व करने का अवसर प्रदान करे. मैं वो टीवी एंकर भी नहीं हूँ जो देशभक्तों को छाँटकर देशद्रोहियों को लोगों के सामने बेनकाब कर दे.

दरअसल मैं एक साधारण नौकरीपेशा आदमी हूँ. राष्ट्र-निर्माण में मेरा इतना ही योगदान है कि मैं समय पर अपना टैक्स भर देता हूँ. लेकिन इसके बदले में मैं सार्वजनिक सुविधाओं और कानून-व्यवस्था का लाभ भी तो उठाता हूँ. कभी-कभी किसी गरीब की छोटी-मोटी मदद कर देता हूँ या कोई विपदा आने पर प्रधानमंत्री राहत कोष में कुछ धनराशि जमा करा देता हूँ. लेकिन इसकी तुलना हमारे सैनिकों के अतुल्य बलिदान से नहीं का जा सकती.

आप ये न समझें की मुझे अपने देश से कोई लगाव नहीं है. मुझे अपने देश की संस्कृति और हमारी जीवन-शैली से बेहद लगाव है. हमारी हजारों साल पुरानी सभ्यता और हमारे पूर्वजों की उपलब्धियां मुझे अचंभित करती है. हमारे खान-पान और रहन-सहन में जितनी विविधताएं हैं, वे आपको किसी और देश में नहीं मिलेंगी. लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे कि क्या तुम्हें अपने देश पर गर्व है या क्या हमारा देश महान है तो मैं सकुचाए बिना नहीं रह सकता. मैं यह नहीं कहता की कोई दूसरा देश महान है और हमारा नहीं. न ही मैं अपने देश को किसी दूसरे से कमतर मानता हूँ. पर इस सच्चाई से भी तो इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में आज भी करोंड़ों लोग गरीबी और भुखमरी की हालत में जी रहे हैं. हमारे सैकड़ों किसान कर्ज़े में डूबकर आत्महत्या करने पर मजबूर है. और यक़ीनन इस सबमें मेरी खुदगर्जी का भी कुछ न कुछ दोष है.

थक-हारकर मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मैं सच्चा देशभक्त कहलाने लायक नहीं हूँ. अजी सच्चा छोड़िये, मैं तो उन लोगों से भी गया-गुज़रा हूँ जो भले ही देश के लिए कोई और काम न करते हों, पर फिर भी देशभक्ति का चूल्हा जलाकर उसपे अपनी रोटियां सेकते हैं. क्योंकि उस चूल्हे की कुछ गर्मी से हमारे देश का मनोबल तो बना रहता है. बात अगर देश-प्रेम की होती तो कमज़ोर ही सही, लेकिन मैं कुछ दावा तो कर सकता था. लेकिन जब आज डिमांड ही देशभक्ति की है, तो इस बारे में बात करने से क्या फायदा?

लेखक सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करता हैं और सॉफ्टवेयर बनाते हैं.

One thought on “डिजिटल दुनिया के देशभक्त सैनिक और औसत आदमी : मनीष राज”

  1. An intertaining satire. Please do not feel remorse that you are not a ‘deshbhakta’, as per the the definition recently imposed on the word by some in our beloved nation. But you are far more than that if one looks back at an age old criteria of what defines you in the eyes of others. ‘Yashyasti Vittam sa Narah Kuleenah—. Sarvey Gunah Kanchanaashrayanti’. As an Industrial Software developer, you are a gold mine owner. In our ‘deshbhakta’ eyes, you have all the praiseworthy qualities, but also admirable by those in the opposit camp. Gold can shine everywhere.

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