Guest Post by Anant Prakash Narayan
जे.एन.यू. में 9 फरवरी को एक घटना घटी. घटना क्या थी अब उसके बारे में बहुत सी चीजे स्पष्ट हो चुकी है. सरकार का दमन चला जिसके परिणामस्वरुप एक आन्दोलन चला. कहा ये जा रहा है कि आन्दोलन के कारण सरकार बैकफुट पर है. ये आन्दोलन अभी भी चल रहा है. जब ये मुद्दा पुरे देश में गरमाया जा रहा था उस समय बहुत सारी चीजे डिबेट का हिस्सा बनी जैसे राष्ट्रवाद क्या है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Right to Freedom of Speech and Expression) को कैसे देखा जाये? आज़ादी की सीमा क्या होगी? क्या टैक्स से पढने वाले स्टूडेंट्स को “इतना बोलना” शोभा देता है? क्या जब सीमा पर जवान मर रहे है तो “ये काम” किया जा सकता है? ये सारे मुद्दे बहुत ही जोर–शोर से सरकार के पक्ष से या फिर इसके उलट लोकतंत्र के पक्ष में बात रखने वालों की तरफ से भी की जा रही थी. लेकिन इसी बीच में एक खतरनाक अवधारणा सरकार के तरफ से बात रखने वाले और जाने अनजाने लोकतंत्र की तरफ से भी बात रखने वाले टी.वी. चैनलो, अखबारों, इंटेलेक्चुअल, राजनीतिज्ञों की तरफ से रखी जा रही थी. वो अवधारणा थी कि राजनीति बहुत बुरी चीज है और छात्र राजनीति तो बदतर. यहाँ तक कि हमारी पैरोकारी करने वाला पक्ष भी यह बार-बार साबित करने का प्रयास कर रहा था कि ये सामान्य से पढने लिखने वाले छात्र है इनका राजनीति से कोई मतलब नही है. ये लोग तो बस कभी कभी कुछ यू हीं करते रहते हैं. क्या अगर हमारे बारे में यह टैग लग जाता कि हम राजनीति करने वाले लोग है तो हमारे पक्ष से बात रखना इतना मुश्किल हो जाता. जबकि यह सर्वविदित है कि जिन कुछ छात्रो के नाम राजद्रोह के तहत लिए जा रहे है वे वामपंथ की सक्रिय राजनीति का हिस्सा है. आने वाले समय में हम आन्दोलन को किस हद तक जीतते है और आगे ले जा करके इसको इस फासिस्ट सरकार के लिए कितना खतरनाक बना पाते है ये अभी तय होना बाकी है लेकिन “मुख्याधारा” की राजनीति करने वाली पार्टियाँ, जिसको प्रोग्रेसिव छात्र-आन्दोलन ने हमेशा उनके जन –विरोधी रवैये के कारण चैलेंज दिया है, एक बार इस मौके को राजनीति, खासतौर से अगर छात्र करे तो, बहुत ही गलत चीज है इसको स्थापित करने में लगी हैं. छात्रों का काम काज सिर्फ पढना-लिखना है और इसके इतर वो अगर कोई और काम करते है तो वो अपनी “सीमा” लांघते है. बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में छोटे-छोटे उम्र के कमाने वाले लोगों के साथ तुलना करके ये समझाने की कोशिश की गई कि आप जितनी कम उम्र में जितना ज्यादा कमा लेते है आप उतने ही सफल स्टूडेंट है. हम अभी लगभग बीस दिन के एक कैंपेन में थे. इस कैंपेन के तहत देश के विभिन्न हिस्सों खास तौर से उत्तर भारत के गाँवो और छोटे-छोटे कस्बो और कुछ शहरो में मेरा जाना हुआ. जिसमे जे. एन. यू. पर बात होती, भगत सिंह और डॉ. अम्बेडकर के विज़न पर बात होती. जब इन विषयों पर बात होती तो नैचुरली मोदी सरकार के ऊपर बात होती. उन कार्यक्रमों में कुछ ऐसे लोग भी मिलते जिनका कहना होता कि आप लोगों के साथ जो हुआ गलत हुआ लेकिन इस मैटर को लेकर अब आप लोग राजनीति कर रहे है. मोदी के खिलाफ आप लोग जो इतना बोल रहे है उससे अब आप लोग एक्सपोज हो गये है कि आप लोग राजनीति कर रहे है. क्या सच में राजनीति इतनी बुरी चीज है कि उससे स्टूडेंट्स को दूर रहना चाहिए? Continue reading जी हाँ, हम राजनीति करते हैं : अनन्त प्रकाश नारायण