Tag Archives: suhash palshikar

’बिगड़ैल बच्चे की खोज में’: हिमांशु पंड्या

“क्या आपको इस बात का अहसास है कि ताकाहाशी को ‘तुम्हारी पूँछ तो नहीं है?’ पूछने पर कैसा लगा होगा” बच्चे शिक्षिका का जवाब नहीं सुन पाए. उस समय तोत्तो चान यह नहीं समझ पायी कि पूंछ वाली बात से हेडमास्टर साहब इतना नाराज़ क्यों हुए होंगे क्योंकि अगर कोई उससे यह पूछता कि तोत्तो चान तुम्हारे क्या पूंछ है? तो उसे तो इस बात में मजा ही आता.
-‘तोत्तो चान’ (तेत्सुको कुरोयांगी, अनुवाद – पूर्वा याग्निक कुशवाहा)

दलित चेतना और कार्टूनों का पुनर्पाठ
इस कार्टून पर चली ऐतिहासिक बहस के बाद अब यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि साहित्य से आगे अभिव्यक्ति के अन्य क्षेत्रों में भी दलित चेतना ने दस्तक दे दी है। शायद हम कल चित्रकला और बहुत आगे संगीत में भी दलित चेतना युक्त दृष्टि से इतिहास का पुनर्पाठ देखेंगे। Continue reading ’बिगड़ैल बच्चे की खोज में’: हिमांशु पंड्या