मई दिवस और गणपति में सम्बन्ध ही क्या हो सकता है? दोनों की न तुक मिलती है और न ही अनुप्रास की छटा दोनों के पास–पास होने से बिखरती है. फिर गणपति शुद्ध हिन्दू देवता हैं, गणेश चतुर्थी के अवसर पर तो उनका नामजाप समझ में आता है, लकिन मई दिवस पर उनका आह्वान? इससे बड़ा दूषण हो ही नहीं सकता और इसका दंड उन्हें तो किसी न किसी रूप में भुगतना ही पड़ेगा. सो हुआ.
सती अनामंत्रित अपने पिता दक्ष के घर गई थीं और अपमान न सह पाने के कारण उन्हें यज्ञ वेदी में ही कूद कर जल मरना पड़ा . किसी भी जगह बिन बुलाए नहीं जाना चाहिए, इसकी सीख देने के लिए यह कथा वे सुनाते हैं जिन्हें इस समय भी कुछ कथाएँ याद रह गयी हैं. निश्चय ही त्रिथा को यह प्रसंग या तो पता न होगा या वे इसे भूल गईं जब मई दिवस पर जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में एक वामपंथी छात्र संगठन द्वारा आयोजित एक संगीत संध्या में मंच पर वे अनामंत्रित गाने चली गईं. एक तो वे स्वयं अनपेक्षित , अतः किंचित अस्वस्तिकर उपस्थिति थीं , दूसरे आयोजकों और श्रोताओं को , जो मई दिवस पर संघर्ष और क्रान्ति के जुझारू गीत सुन कर अपने शरीर के भीतर जोश भरने आये थे इसकी आशंका थी कि वे इस पवित्र अवसर पर जाने क्या गा देंगी. और आखिरकार उन्होंने इस आशंका को सही साबित कर दिया, जब वे शास्त्रीय संगीत के नाम पर वक्रतुंड, महाकाय …. गाने लगीं. थोड़ी देर पहले जो सैकड़ों शरीर ‘हिल्लेले हिलोर दुनिया ‘ पर झूम रहे थे, उनसे नहीं–नहीं का शोर उठा. इस छात्र जनता के नेता जन–भावना का आदर करते हुए मंच पर पहुंचे और त्रिथा को अपना गाना बीच में रोक कर मंच से जाना पड़ा. Continue reading मई दिवस और गणपति