‘‘रामचरण मुंडा, उम्र 65 साल को विगत दो माह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन नहीं दिया गया था। हमारे अधिकारियों ने इसकी सत्यता की पड़ताल की है।’’
लातेहार, झारखण्ड के डिप्टी कमीशनर जनाब राजीव कुमार द्वारा लातेहार के दुरूप गांव के रहने वाले उपरोक्त आदिवासी की मौत पर की ऐसी स्वीकारोक्ति बहुत कम देखने में आती है।
अपनी पत्नी चमरी देवी और बेटी सुनिला कुमारी के साथ रामचरण गांव में ही रहते थे। उनके बेटे की मौत दो साल पहले टीबी के चलते हुई थी। राशन डीलर की बात मानें तो चूंकि इलाके में इंटरनेट की सेवा में दिक्कते हैं, और राशन वितरण के लिए ऑनलाइन बायोमेट्रिक सिस्टम कायम किया गया है, इसलिए रामचरण को अनाज नहीं दिया जा सका था।
इस मामले की असलियत कभी सामने आएगी इस पर संदेह है।
वैसे भूख से होने वाली मौतें अब देश में अजूबा चीज़ नहीं रही।
दो साल पहले झारखण्ड के ही सिमडेगा जिले के कारीमाटी गांव की 11 वर्षीय हुई संतोषी की मौत के बाद ऐसी मौतों पर लोगों एवं समाज की अधिक निगाह गयी थी। पता चला था कि पूरा परिवार कई दिनों से भूखा था और राशन मिलने के भी कोई आसार नहीं थे क्योंकि राशन कार्ड के साथ आधार लिंक न होने के चलते उनका नाम लिस्ट से हटा दिया गया था। अपनी मां के गोद में ‘भात भात कहते हुए दम तोड़ी संतोषी की दास्तां ने लोगों को विचलित किया था।
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