Periyar : Image – Courtesy velivada.com
क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार महज आस्थावानों के लिए ही लागू होता है ?
कभी कभी साधारण से प्रश्न का उत्तर पाने के लिए भी अदालती हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है।
मद्रास उच्च न्यायालय की – न्यायमूर्ति एस मनिकुमार और सुब्रहमण्यम प्रसाद की – द्विसदस्यीय डिवीजन बेंच को पिछले दिनो ंयह दोहराना पड़ा कि अभिव्यक्ति का अधिकार – जो भारत के संविधान के तहत मिले बुनियादी अधिकारों में शुमार है – सार्वभौमिक है और इसे समयविशेष के बहुमत के आंकड़ों के आधार पर तय नहीं किया जा सकता।
मालूम हो कि किन्ही दैवानायागम ने न्यायालय में यह जनहितयाचिका दाखिल की थी और कहा था कि तमिलनाडु के त्रिची में पेरियार की मूर्ति पर जो नास्तिकता के उद्वरण दिए गए हैं, वह ‘सार्विक ईश्वर’ को माननेवालों के लिए आपत्तिजनक हैं और उन्हें हटा दिया जाए। याद रहे रामस्वामी नायक / 17 सितम्बर 1879-24 दिसम्बर 1973/ जिन्हें ‘पेरियार’ नाम से जाना जाता है, वह आत्मसम्मान आन्दोलन के अग्रणी थे, द्रविड कझगम के संस्थापक पेरियार एक जुझारू किस्म के समाज सुधारक भी थे। याचिकाकर्ता ने मूर्ति पर लिखे उद्धरण के बारे में ‘‘कोई ईश्वर नहीं है, ईश्वर नहीं है और वाकई ईश्वर नहीं है..’ के पेरियार द्वारा कहे जाने पर भी सवाल खड़े किए थे। Continue reading ‘ईश्वर नहीं है’ कहने का अधिकार